वीरता, योग्यता, बुद्धिमता, और चातुर्य की परिचाई है सिनगी दई।
सिनगी दई ने अपनी स्त्री सेना के बल पर मुस्लिम तुर्कों के आक्रमण को विफल कर दिया और अपने शौर्य का परिचय दिया, विकट स्थिति में सिनगी दई ने महिलाओं को प्रशिक्षित किया जिसके लिए उन्होंने उराँव समाज के शिकार उत्सव का आयोजन किया और सभी महिलाओं को युद्ध सिखाया। बिहार के रोहतासगढ़ के राजा रुईदास की पुत्री राजकुमारी सिनगी दई एक योग्य, वीर, बुद्धिमान और चतुर राजकुमारी थी।
जनजाति उराँव वीरांगना सिनगी दई का नाम सुनकर आज भी हम उनके शौर्य और पराक्रम से रोमांचित हो जाते हैं। उन्होंने अपने उराँव राज्य को उस समय सम्भाला जब संगठित सेना तुर्कों के साथ युद्ध में बिखर चुकी थी। लड़ने वाले पुरुष योद्धा राष्ट्र रक्षण में प्राण न्यौछावर कर चुके थे। वीरांगना सिनगी दई ने अपने समाज के शिकार उत्सव विशु सेन्दरा को चुना था जिसमें उन्होंने महिलाओं को प्रशिक्षित किया। आज भी उराँव गांव में सिनगी दई के शौर्य समर्पण की स्मृति में मुक्का सेन्दरा का आयोजन किया जाता है।