भोजशाला के सर्वे का आदेश सुरक्षित, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में चार याचिका।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण धार की भोजशाला का सर्वे करेगा या नहीं इस बात पर सोमवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खण्डपीठ में बहस पुरी हो गई है। न्यायालय ने सभी पक्षकारों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया है। हाईकोर्ट में चार याचिकाएं चल रही है। हिंदु फ्रंट फार जस्टिस ने दायर की याचिका में मांग की है कि मुसलमानो को नमाज पढने रोका जाए। उन्होंने कहा है कि जब हिंदु यज्ञ में हवन कर उसे पावन करते है तो शुक्रवार को मुसलमान उन्हीं यज्ञ कुंडों में थुक कर उसे अपवित्र कर देते है।
बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ज्ञानवापी की तरह भोजशाला का भी सर्वे करना चाहिए। साथ ही लोगों को इतिहास समझना और जानना जरुरी है।
इतिहास की ओर देखे तो परमार वंश के राजा भोज ने सन् 1033 में भोजशाला का निर्माण कर सरस्वती सदन की स्थापना की थी। इतिहास स्पष्ट करता है कि, विश्व में पहली संस्कृत अध्ययन शाला थी जिसमें एक हजार विद्यार्थी एक साथ विद्या अर्जन करते थे।
बताते है की छल और धोखे की बुरी नियत से षड्यंत्रकारी मौलाना कलाम 1269 में भोज नगरी आया था। भिखारी के भेष में मौलाना ने धार नगरी में प्रवेश किया, यहां वहा घुमते फिरते मौका पाकर मौलाना ने गोपनीय जानकारी दिल्ली पहुंचाई। 1305 में मौलाना की जानकारी के अनुसार मुस्लिम अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया। राजा महलक देव और गोगादेव ने प्रतिकार किया वे युद्ध में हारे गये। सन 1456 में खिलजी ने मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करवाया।
साक्ष्यों के आधार पर के.के. लेले की रिपोर्ट में मकबरे में भगवान विष्णु के अवतार का उल्लेख है। संस्कृत में कई सारे श्लोक भी है।
हांलाकि देखा जाए तो सदियों पहले मुस्लिम ने छल बल से मंदिर तोड़ा और साक्ष्य मिटाने की कोशिश की, मगर बहुत से साक्ष्य वो मिटा नहीं पाये।
बहरहाल निष्पक्ष जांच पड़ताल करवाई जाए तो भोजशाला राजा भोज द्वारा बनाया गया सरस्वती सदन है। बाकि सब बरसो पुराना अतिक्रमण है जिसे हटाना चाहिए।