सम्मान में महिलाओं की सफलता के अर्धसत्य पर प्रकाश- सत्यता के पीछे विरोधियों के झूठ का झंडा।

देश में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के सशक्तिकरण की अनगिनत कहानिया सोशल मीडिया न्यूज पेपर बहुत सी वेबसाइट पर पब्लिश की गई, जिसमें उनकी मेहनत, लगन को दिखा कर उनकी सफलता की कहानी को पेश किया गया, मगर इन सब कहानी में एक बात को महत्व दिया गया वो यह है कि हर सफल महिला को पुरुष से आंकते हुए उसे पुरुष से कम नहीं बताया गया। ऐसे ही अनेक वाक्यों को पढ़ कर दुख हुआ जो स्त्री और पुरुष के बीच एक गहरी खाई को पैदा कर रहे हैं।

सफल होने वाली स्त्री हो या पुरुष उसे बहुत से बलिदान देने होते है तब कहीं जा कर वह सफलता की श्रेणी में कदम रखता है या रखती है और उसकी सफलता उसके स्वयं के परिश्रम के साथ परिवार, मित्र और जीवन साथी के सहयोग की भी होती हैं।
फिर अक्सर क्यूँ ये प्रोपेगेंडा चलाया जाता है कि महिलाए पुरुषों से कम नहीं है वो पुरुषों की बराबरी कर सकती है वो पुरुषों से ज्यादा सशक्त है यदि मौका मिले तो वे पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है और बहुत से क्षेत्रों में महिला पुरुषों से बेहतर कार्य कर रही हैं, पुरुषों को धूल चटा रही है।
आखिर महिला और पुरुषों के मध्य ऐसी दूरी बनाकर गहरी खाइ क्यूँ बनाई गई यह बहुत ज्यादा विचारणीय प्रश्न है जिस पर गहन चिंतन की आवश्यकता है और उस पर इसका समाधान भी अतिआवश्यक है।
इस गहरी खाई के समाधान के लिए स्त्री और पुरुष को मित्र के रूप में सहयोग देना होगा जबकि वर्तमान में न्यूज चैनल पर आपसी सहयोग की वार्तालाप के बजाय डेबिट करवाया जाने लगा है। मंच पर महिला और पुरुष को दुश्मन बना दिया जाता है।

हालांकि महिला और पुरुष में कभी भी प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती है वे तो आपसी समझ से एक दूसरे के पवित्र एवं परम सहयोगी होते हैं। आदिकाल से महिला और पुरुष मुख्य कार्य के परस्पर सहयोगी होते है। जैसे कि कोई ऐसा कार्य जिसमें पुरुष की प्रधानता होती है तो उसमें महिलाओं की सहभागिता होती है वहीं बहुत से ऐसे कार्य होते है जो कि महिलाओं की प्रधानता के होते है उसमें पुरुषों की सहभागिता होती है। इस पावन सहयोग से आपसी प्रेम , रिश्ता, परिवार, कुटुंब, समाज, चलता था और बहुत ही सरल सुयोग होकर जीवन यापन होता था, मगर ऐसा क्या किया गया कि लोगों को ये रीति समझ नहीं आई और विरोधियों ने इसे तोड़ने के लिए परिवारो को बिखरने के लिए स्त्री और पुरुष के बीच खाई पैदा कर दी। महिलाओं को अधिकार मंगाने पड़े जिसके लिए विवादो का मायाजाल बना। ऐसे षड्यंत्रकरियो ने महिला दिवस की प्रधानता को प्रश्नो के प्रकरणों में पिरो दिया है।
वर्तमान में राजनीति में महिलाओं की सहभागिता प्रमुखता से है , प्रशासनिक क्षेत्र में, सेना में, इंजीनियरिंग में, डाक्टर और वैज्ञानिकी में हर क्षेत्र में वे आगे आई है जिसमें पुरुषों ने उनका सम्मान कर अपना सहयोग भी दिया है तो इस सहयोग को प्रतिस्पर्धा क्यूँ बनाया गया है। महिलाओं और पुरुषों को समझना चाहिए कि जो विरोधी सहयोग की दिशा को बदल रहे है वे अधर्मी है जो विवादों को जन्म देकर अलगाव करे वो धार्मिक नहीं हो सकता वो तो सिर्फ आपको बहला फुसला कर आपके आपसी समझ प्रेम और सहयोग को तोड़ कर उसे प्रतिस्पर्धा में बदल रहा है प्रतियोगिता कर एक दूसरे को हार जीत के चक्रव्यूह में फंसा रहा है वो अधर्मी को पहचान कर उसे सबक सिखाना होगा।
बहरहाल, हर विरोधी को उसी के स्तर पर परास्त कराने की क्षमता हम में है और हमें विरोधियों को खदेड़ना ही होगा उसे अपराध का दंड देना ही होगा तभी हमारे आपसी सहयोग जीवन का सुरमई और सुखमय होगा। बिना दंड दिए क्षमा करने पर तो ये फिर से वैचारिक मतभेद पैदा करने के लिए वैचारिक आक्रमण करेगे।
तो तैयार जो जाए न महिला पुरुष के साथ किसी प्रतिस्पर्धा में प्रतिभागी है और न ही पुरुष। हमारी सफलता की कहानियों में किसी से कम नहीं का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
सहयोग के भाव से सफलता के शिखर पर शास्वत रहा जा सकता है। आप सभी को इसे समझना होगा।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की समस्त सफल महिला और सहयोगी पुरुष को शुभकामनाएं।

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