एक मुस्लीम मित्र के घर पर विवाह में प्रश्न के उत्तर में झुक गई उसकी आंखे।
रिंकेश बैरागी,
संभागिय स्तर के एक कार्यक्रम में एक मित्र से मुलाकात हुई बहुत खुश हुआ वो मुझे वहां पा कर, क्योंकि अक्सर में कार्यक्रमों में जाने से परहेज रखता हुं, लेकिन उन दिनों कुछ साथियों के साथ कार्यक्रम में सम्मिलित हो गया। उस मित्र से जब मिला तो बहुत पुरानी एक बात याद आ गई… जो कुछ इस प्रकार है…
मित्र का एक बड़ा भाई और एक छोटा भाई है, दो बहन भी है, मित्र ने फोन लगाया पुछा कहा हो… अभी मिलना है, मेने स्थान बताया तो कुछ देर में वो वहीं आ गया, उसने गाड़ी से पत्रिका निकाली और दे दी बोला शादी में आना जरुर… समय था नहीं तो ज्यादा बात नहीं हो पाई, फिर वो चला गया। हमने भी ज्यादा लोड नहीं लिया, रिशेप्शन का स्थान देखा और पत्रिका गाड़ी में रखा दी फिर हम हमारी वार्ता में व्यस्त हो गए।
उस दिन से लगाकर रिशेप्शन तक वो बहुत बार मिला कुछ काम हमने करवाएं भी। और फिर उस शाम हम रिशेप्शन पर गये, भोजन किया दुल्हा दुल्हन को गिफ्ट दिया… हम दो मित्रों में एक बात को लेकर बहस हो गई, क्योंकि जो मैं कह रहा था वो उसका विरोधाभाष कर रहा था। तब मेने कहा भाई जिसके घर पर विवाह है उसी मित्र से सारी बातें पुछ लेते हैं हम क्यों बिना काम के बात को बड़ा रहे हैं। लेकिन उस समय तो उस मित्र के पास फुर्सत नहीं थी वैवाहिक कार्य में व्यस्तता थी मेहमान नवाजी का भी लोड था। हम जाने लगे तो मिले तब उसने बताया कि, अगले दिन का भी भोजन है जो स्पेशल है जिसमें हम भी इनवाइट है। हम अगले दिन भी चल आए, आज उसके बड़े भाई के घर भोजन का कार्यक्रम था। अब वो फुर्सत में हमसे मिला… मेरे साथी ने पुछ लिया भाईजान ये बताओ शादी किसकी-किसकी थी। वो बोला छोटे भाई की बेटी की और बड़े भाई के बेटे की।
हे राम ये कैसा अनर्थ है,
हमने कहा वो तो भाई-बहन हुए न तो फिर शादी कैसे हो गई। उसने जवाब दिया हमारे यहां ये सब चलता है। फिर हमने उससे पुछा भाई तु पढ़ा लिखा व्यक्ति है, तुझे पता है कुटुम्ब में विवाह इसीलिए नहीं करते है क्योंकि आने वाली पीढ़ी को कोई भी जेनेटीक समस्या न हो, या कोई नया रोग उत्पन्न न हो। फिर तुम यहीं बरसो बरस से रह रहें हो, सारे त्योंहार साथ में मनाते आये हो.. अरे इतने वर्षो में जाने कितनी बार लड़की ने लड़के को भाईजान कहकर पुकारा होगा, कभी रक्षाबंधन का महत्व स्कूल में समझ कर उसे भाई माना होगा… भाई ने भी तो कभी बहन माना होगा… फिर रिश्तो का क्या… जो कल तक सगे भाई थे वो आज सम्बधी बन गये… फिर काका किसे बुलाएगे और मामा किसे बुलाएगे, अरे बुए का क्या होगा और फिर वो अपनी ही बहन को साली कहेगा…
मित्र निरुत्तर था उसकी आँखों में शायद वो दृश्य आ गया होगा जब बचपन में बहन ने भाई की कलाई थाम कर रास्ता पार किया था… और तकलीफ आने पर भाईजान को ही बताया था। लेकिन मित्र के पास कोई जवाब नहीं था चुप रहने के बाद वो बोला तुम लोग भोजन कर लो यार इन बातों पर बहस करने के लिए यह समय उचित नहीं है। हमने भोजन नहीं किया हम चले आये… मित्र से कहा कि, आज भोजन नहीं करेगे। वो भी कुछ नहीं बोला… और हम चले आये।