दादा की स्मृति में – अदभूत व्यक्तित्व के स्वामीत्व सा आचरण था आपका..

.

रिंकेश बैरागी,

जिला पत्रकार संघ ने श्री यशवंत घोड़वत जी दादा की ग्यारवी पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें इंदौर से सुप्रसिद्ध कार्टुनिष्ट इस्माईल लहरी, वुमन प्रेस क्लब की प्रेसिडेंट शीतल रॉय और धार के छोटु शास्त्री जैसे अतिथियों ने कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम की रुपरेखा अति उत्तम रही जिसमें अधिकतम अंक पाने वाले विद्यार्थियों को सम्मानित किया साथ ही श्रेष्ठ कार्य एवम ग्रामीण पत्रकारिता में उज्जवल कार्य करने वाले पत्रकार को भी सम्मानित किया।

इस बार के कार्यक्रम में मेने भी सहभागिता की, पिछले एक दशक से आयोजिक किए जा रहे कार्यक्रमों में इसीलिए नहीं जा पाया था क्योंकि, शहर क्या राज्य से बाहर होता था। इस बार झाबुआ में ही था और लेखन कार्य फिर से शुरु कर दिया था, फिर मित्र के विशेष आग्रह पर कार्यक्रम में जाना तय कर लिया था, उसके बाद एक और मित्र ने बताया कि वे इस कार्यक्रम में बतौर अतिथि है तब उन्होंने भी वहीं पर मुलाकात करने की मंशा जताई तो एक कारण यह भी जुड़ गया।

कार्यक्रम में पहुंच कर लगा की जब दादा स्वर्गीय घोड़ावत जी के साथ सन् 2007 और 2008 में बैठकर ऐसे कार्यक्रम की चर्चा करते थे ये वैसा ही कार्यक्रम है। वो भी यही चाहते थे कि जिले के पत्रकार एकजुट रहें, और जिले क्या आसपास के सभी जिले जिसमें धार, बड़वानी, पंचमहल गुजरात, रतलाम सभी के पत्रकार एक दूसरे से सम्पर्क में रहें। उस समय आलीराजपूर झाबुआ जिले में ही था।

जिला पत्रकार संघ के कार्यक्रम में जाने के से दादा के साथ बिताए वो हर पल ताजा हो गए जो मेरी स्मृति में समय के चक्र के साथ हल्के धुंधले हो गये थे। युं तो जब भी किसी के साथ कुछ विषय पर गहन विचार पर वार्ता की जाती थी तो दादा का जिक्र मैं सदैव करता रहता लेकिन कार्यक्रम में पहुंचने से वो पल भी सामने आ गये जब हम कार्य समाप्ती के बाद साथ में बिताते थे, और उन पलो में दादा उनके अनुभव बताया करते थे, और फिर साथ में चाय पी जाती थी।

मेरे पापा के परम मित्र थे दादा और शायद इसीलिए मुझे वो जानते थे और समझते भी थे। उद्देश्य होते हुए भी युवा भटक जाते है मेरे स्थिति भी ऐसी ही थी, फिर एक शाम पापा से बातचित के बाद जाते समय मेरा उनसे सामना हो गया। उनके सभी प्रश्नों के उत्तर में मेने ना ही कहा फिर उन्होंने पुछ लिया, कम्प्युटर आता है, हिंदी टाइपींग आती है… मेने कहा हां। बस वो मुस्कुराकर चल दिये।

लगभग पंद्रह दिन के पश्चात फिर हम मिले वो अपनी एक्टीवा स्टार्ट कर रहे थे लेकिन हो नहीं रही थी मुझे देखते ही वो निश्चिंत होकर हाथ बांधकर खड़े हो गये, मैं पैदल सामने से आया उनके पास खड़ा हो गया, वो बोले तु आया नहीं, मेने कहा आपने बुलाया ही नहीं। फिर हंसने लगे, कुछ बातें हुई उसके बाद मेने कीक लगा कर एक्टीवा स्टार्ट की और वो चले गये। उसी रात भोजन के बाद जब हम गली में घुम रहे थे तभी पापा से मिलकर वो जा रहे थे तब उन्होंने मुझे पास बुलाया और कामकाज की बात शुरु कर दी, उधर सभी मित्र तरह-तरह के ईशारे कर रहे थे और बुला रहें थे। मैं भी कोशिश कर रहा था कैसे उनके चुंगल से फरार हो जाउ। दादा भी समझ तो गये थे लेकिन पता नहीं क्यु वो मुझे जाने नहीं दे रहें थे फिर मेने कह दिया कि मैं जा रहा हुं उन्होंने पुछा किस तरह का काम करना चाहता है तु… मेरा उत्तर था कि ऐसा कार्य जिसमें कोई बंधन न हो, स्वतंत्रता के साथ कार्य करना चाहता हुं। मैं चला गया और वो मुस्कुराते हुए आगे बड़ गये।

इस घटना के एक महिने के बाद की बात है, मैं घर पर ही था और फोन आया लेंडलाईन पर उस समय मोबाइल फोन बहुत कम हुआ करते थे। मेरी छोटी बहन दौडी फोन उठाया बात की और बोली ले तेरे लिए फोन है, फोन पर मेरा दोस्त था उसने बताया कि उसके कम्प्युटर में कुछ प्रोब्लम है मुझे बुलाया और ठीक करने का आग्रह किया। कुछ देर बाद मैं मित्र के पास चल दिया। मंदिर के आगे पहुंचा ही की दादा मिल गए, थोड़ी जल्दी में थे पर मुझे देख रुक गए, बात हुई फिर उन्होंने कहा चल बैठ… मुझे बैठाकर हाउसिंग बोर्ड वाले ऑफीस पर ले आये। रास्ते में उन्होंने बताया कि, किसी कारण वश उनका ऑपरेटर अब नहीं आएगा इसीलिए मुझे उनका पेज तैयार करना है, मेरे बहुत मना करने के बाद भी वे नहीं माने कहा तु कर लेगा और तु टाईपींग करना बाकी मैं जैसा बताउंगा वैसा वैसा करना।

सबकुछ हो गया फाइनल रिडिंग भी कर ली दादा ने कहा बस इसे अब भेज दो, मेने बोला दादा कुछ कहु… वो बोले हां। मुझे उनके कॉलम में कुछ लाइन नहीं जम रही थी मेने वो बता दी… दो मिनिट सोचने के बाद उन्होंने कहा तुरंत सही कर सकता है क्या… मेने कर दी।

हालांकि, उन्होंने मुझे कहा तु अब नियमित आना मेने कहा दादा मुझे टाइपींग नहीं करनी है तब पता चला की पेज सेट करने के लिए नया लड़का आने वाला है जो दो दिन के बाद से आएगा। एक सप्ताह बाद ऑफीस में हम 4 कर्मचारी हो गए एक पहले से ही था उसे मिलाकर पांच हो गए। अगले दिन जब मैं आया तो उन्होंने कहा जा कोई अच्छा समाचार लेकर आ।

बहरहाल गुरु बिन ज्ञान अधुरा रहता है इसीलिए गुरु की आवश्यकता होती है, और आपको यदि सही गुरु मिल जाए तो आपका पारस निखर जाता है। गुरु भी तब सिखाना शुरु करता है जब उसे पता चल जाता है कि सिखने वाला शिष्य बनने के स्तर पर है भी या नहीं। आज दादा हमसे बहुत दूर है, मैं सदेव नतमस्तक उनके समक्ष…

मुंबई मैं था जब एक मित्र का फोन आया कि, दादा नहीं रहें, उस दिन सबकुछ रुक सा गया। वो कहते थे…

कहो ऐसा जो श्रवणिय हो और लिखो ऐसा जो पठनिय हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *