आंक्राताओं के अत्याचारो की अंतहीन सूची है विभाजन की विभीषिकाः- उन्माद से उपजे आतंकवाद को समझना होगा तभी उन्मुलन का स्थाई मार्ग मिलेगा।
विस्थापन का दर्द रक्तरंजित इतिहास को स्मरण करवाता है, बहुत से लेखक जो उस दौर से गुजरे है उन्होने ने लिखा है, जिसने उन यातनाओं को झेला वो ही उसे समझ सकता है, लेकिन विस्थापन की उस पीड़ा को देश के सभी नागरिको के मन मष्तिष्क तक पहुंचनी चाहिए ताकि, युवा पीढ़ी विस्थापन के दर्द में मची लूट, मारपीट, दुष्कर्म, व्याभीचार, अत्याचार, दर्दनाक पापाचार, अपहरण, और लाखों की संख्यां में की गई हत्या को जाने और समझे जिससे आंक्राताओं के साथ संबंध के ऐतिहासिक झुठ का उनको पता चल सके।
विस्थापन की पीड़ा कभी न भरने वाला घाव है जिसमें स्त्रियों और बालिकाओं के साथ किए गए अत्याचारों की अंतहीन सूची है। लाखों महिलाओं और युवतियों की मर्यादा का हनन हुआ। स्वतंत्र भारत के उत्सव में छिपा, हिंदु, सिख माता बहनो की अस्मिता को क्षीण करने वाला असूरो का उत्पात, पीड़ा से बिलखते नवजात और लाखों भारतीय पुरुषों के रक्त में पड़े शवों का काला सच है जिसे स्मृति पटल से हटा पाना अत्यंत कठीन है।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का अर्थ यही है कि, हम उस पीड़ा की अनुभूति करे और अपनी प्रत्येक पीढ़ी को उस काल के काले दृश्यों को बताए ताकि मानवता को शर्मशार करने वाले उस रक्तरंजीत इतिहास को वो समझे। उसमें यह समझे किस तरह वो साम्प्रदायिक उन्माद भारत के हिंदु और सिखों को रौंधता रहा। जब नई पीढ़िया उस उन्माद को समझेगी उस पर विचार और विमर्श करेगी तभी तो उसके उन्मुलन के रास्ते हो कर उसका स्थाई समाधान खोज पाएगी।
इस इतिहास के बारे में बताया जाता रहा है कि, जम्मू कश्मीर के महाराजा हरिसिंग के विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने में देरी के कारण नरसंहार हुआ क्योंकि वो जम्मू कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे, मगर यह बात सच नहीं है इसे बताने या फैलाने के पीछे कांग्रेस और मुस्लिम प्रेमियों का षड़यंत्र रहा क्योंकि उस देरी के पिछे के रहस्य को उजागर नहीं होने दिया मगर इतिहास साक्षी है कि, कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरु अपनी जीद पर अड़े रहे, जिसके कारण विलय पत्र पर हस्ताक्षर में देरी होती रही। जानकारी के अनुसार तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु उनके परम मित्र शेख अबदुल्ला को जम्मू कश्मीर के प्रशासन की बाग दौर सौंपने की जीद पर खड़े थे। महाराजा हरिसिंग यह नहीं चाहते थे। इधर पाकिस्तान सेना और मुस्लिम कबायलियों ने जम्मू कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था। हजारों हिंदुओ सिखो को मार दिया था, महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुई थी और बेटिया भी… जिनकी चीखे दरख्तों को चीर कर आसमान तक पहुंची थी।
बहुत जोर जबरदस्ती के बाद महाराजा को देशभक्ति के कारण नेहरु की जीद को मानना पड़ा, फिर समझौते पर 26 अक्टुबर 1947 को हस्ताक्षर हुए, और जम्मू कश्मीर का भारत में विलय किया गया, लेकिन तब तक पाकिस्तानी सेना और मुस्लिम कबायली श्रीनगर पहुंच चुके थे। भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ना शुरु किया, जब तक जम्मू कश्मीर को मुस्लिम आंक्राताओ से मुक्त करवाया जाता उससे पहले ही देश के पहले प्रधानमंत्री कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरु ने संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया और पलक झपकते कश्मीर का बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास रह गया। उधर मोहनदास करमचंद गांधी ने पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने के लिए दबाव बनाया, क्योंकि केंद्र की कमेटी इस निर्णय पर पहुंच रही थी कि, पाकिस्तान ने जब आक्रमण कर दिया है तो उसे किस बात के लिए आर्थिक मदद दी जाये। विस्थापन की पीड़ा में प्रतिदिन सैकड़ो हिंदु सिखों की हत्या की जा रही थी और महिलाओ, युवतियों के साथ व्याभीचार हो रहा था, मुस्लिमों द्वारा छोटी बच्चियों तक से दुष्कर्म किया जा रहा था और इधर देश के महात्मा गांधी केन्द्र कमेटी के विरोध में आमरण अनशन पर बैठ गये थे, गांधी की जीद थी कि पाकिस्तान को जल्द से जल्द आर्थिक मदद दी जाये। इसी समय जवाहरलाल नेहरु की जीद ने देश की अस्मिता को तार-तार कर दिया।
मन में प्रश्न यहीं उठता है कि, महाराजा हरिसिंग शेख अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर के प्रशासन की कमान क्यों नहीं सौंपने देना चाहते थे… क्योंकि 1946 में इसी शेख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में जनमत संग्रह की बात पर एक आंदोलन शुरु किया जिसमें मुसलमानों से जिहाद में शामिल होने का आव्हान किया, इस आंदोलन का मुख्य आधार था कि, मुसलमान किसी हिंदु महाराजा के अंतर्गत नहीं रहेगे। तब महाराजा ने इस अधर्मी शेख अब्दुल्ला को राज्य में अराजकता फैलाने के अपराध में जेल में डाल दिया। इस बात की सूचना होते ही कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरु तुंरत ही इस अधर्मी शेख अब्दुल्ला की पैरवी करने के लिए जम्मू कश्मीर रवाना हुए किंतु महाराजा ने नेहरु को अराजकता फैलाने वाले शेख अब्दुल्ला की पैरवी के लिए राज्य में प्रवेश नहीं दिया इस बात पर नेहरु नाराज हो कर उल्टे पांव लोट गये और जीद पकड़ ली कि शेख अब्दुल्ला को ही वो जम्मू कश्मीर की राजनैतिक कमान दिलाएगे।
विस्थापन के समय नेहरु की हठधर्मीता के कारण ही मुस्लिम कबायलियों और पाकिस्तानी सेना ने मौके का फायदा उठाया और जम्मू कश्मीर को हड़पने की मंशा से आक्रमण कर दिया, जिसमें भंयकर नरसंहार किया, दुष्कर्म किया और तो और महिलाऔ की मृत पड़ी देह से भी मुस्लिम व्याभीचार करने से हटे नहीं।
बहरहाल, जो इतिहास से नहीं सीखता वो वर्तमान को बिगाड़ते हुए भविष्य में फिर से इतिहास को दौहराता है। वर्तमान में बाग्लादेश में ही देख लो विरोध शासन का हो रहा था उसमें मुस्लिम अत्याचारियों ने हिंदुओ से साथ क्यूं अत्याचार किया, क्यूं हिंदु मंदिर तोड़े गये, क्यूं हिंदु युवतियों और महिलाओ के साथ दुष्कर्म किया, क्यूं उसी इस्कॉन मंदिर को तोड़ा गया जिसने एक समय पर बाग्लादेश की आर्थिक और सामाजिक रुप से सहायता की थी वो भी उस समय जब बाग्लादेश में बसे मुस्लिमों को खाने के लाले पड़े थे।
इन घटनाओं से पीछले एक हजार साल के मुस्लिम आंक्राताओ के अत्याचारों की समानता को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि, इन आंक्राताओं से संबंध इतिहास का एक झुठ है… और हिंदुओ या किसी भी गैर मुस्लिम के लिए अभिशाप है।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के माध्यम से ही सही इन दुराचारियों के दुष्कर्मों को याद किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में हमारी पीढ़ी के किसी भी स्तर के साथ, धोके से भी कोई अर्धमी अत्याचार नहीं कर सके। युवा पीढ़ी इनके आतंक को समझे और इस पर विचार कर इसका ऐसा समाधान निकाले कि वह स्थाई हो जाये।