सृष्टि के नौ चरण, छः ऋतुओं की अभिव्यक्ति है हिंदू नववर्ष। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा सृष्टि के आरंभ का सांकेतिक स्वरुप है।

हिंदू नववर्ष, चैत्र नवरात्र…

भारत देश उत्सवों, उल्लासों और पर्वों का देश है, जिसकी संस्कृति, सभ्यता में सदृढ़ सदाचार के साथ-साथ संस्कृति के प्रत्येक क्रम में ज्ञान-विज्ञान का उपक्रम व्यक्ति के बौद्धिक स्तर को नभ की नीलिमा से भी अधिक ऊंचाई पर ले जाता है। हिंदू नव वर्ष ऐसे ही वैज्ञीनिक दृष्टिकोण को स्वयं में समाये हुए सृष्टि के आरंभ का स्वरुप है, जो कि नवीनता का पल्लव है, और जीवन क्रम की वर्षभर में अनुभूति है।

सदृढ़ सभ्यता की भारतीय संस्कृति के समस्त पर्व और त्यौहारों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाया हुआ है। हिंदू नव वर्ष या चैत्र नवरात्र हमारी सृष्टि के सृजन और आरंभ का प्रतीक है। चैत्र प्रतिपदा पर ही इस सृष्टि का आरंभ हुआ था। प्रकृति भी इसी दिवस से अपने स्वरुप में बदलाव करती है, और नये रुप में हमें खिलखिलाती हुई दिखाई देती है। आनंदमयी प्रकृति में इस दौरान पेड़ पौधौ में पल्लव होता है, फूलों से खिली धरा सौंदर्या स्वरुप नव जीवन को जन्म देती है।

विस्तार और लय की तरफ हम जायें तो देखते हैं कि, हमारी प्रकृति में छः ऋतुएं होती है, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर, और वसंत। पृथ्वी की परिक्रमा के फलस्वरुप हमें ऋतुओं में परिवर्तन देखने को मिलता है। सभी ऋतु एक-दूसरे से अलग है और सभी ऋतुएं प्रकृति पर अपने अलग प्रभाव का सामर्थ्य रखती है। हिंदु वर्ष ऋतुओं में क्रमबद्ध जीवन चक्र को समझाता, हमारे हिंदु वर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस से प्रारंभ होता है। कैसे ग्रीष्म ऋतु में संचार होता है और फिर वर्षा ऋतु में पल्लव और भोजन के बाद शरद ऋतु में कलाओं के उत्साह के साथ महालक्ष्मी का जन्म, ऋतु हेमंत में बसाहट के साथ शिशिर ऋतु में ठंड से सब स्थिर हो जाता है जिसके पश्चात वसंत ऋतु में रस की उत्पत्ति होती है, और मदनोत्सव के साथ युग्म होता है और प्रकृति संचार करती है और फिर से नव जीवन प्रारंभ होता है।

सृष्टि के सृजन की तरफ जायें तब हम पाते हैं कि, सर्वप्रथम सब कुछ शुन्य था, पूर्ण ब्रह्म था। उस काल में शिव शक्ति शुन्य थे, जाग्रत और चैतन्य थे इसलिये वे किसी आकार या आकृति के स्वरुप में नहीं थे। शक्ति पूर्णरुपेण शिव में समाई हुई थी, अर्थात वह गति में नहीं थी।
आत्म-स्वतंत्रता के बोध से सृजन की इच्छा को लेकर जब शक्ति शिव से प्रथक हुई, फिर शक्ति अलग होते हुए दूर हुई। शक्ति और शिव अब शुन्य से दो हो गये, दूर हो जाने पर शक्ति और शिव में परस्पर आकर्षण पैदा हुआ। इस आकर्षण से शिव और शक्ति के मध्य काम का जन्म होता है, जिसके बाद शिव और शक्ति के युग्म से बिंदु या अण्ड का निर्माण होता है। शक्ति अपने अण्ड या बिंदु में स्वयं का संचार करती है और फिर उस बिंदु में महा विस्फोट होता है जिसके कारण ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती है। यह समय माह चैत्र शुक्ल पक्ष का कहलाया, जहां से जीवन की शुरुआत हुई। यह चैत्र मास सृष्टि के आरंभ का सांकेतिक स्वरुप है, जहां से नव जीवन और चैत्र नवरात्र का शुभारंभ होता है।
नवरात्र में नौ दिनों तक शक्ति की ही आराधना की जाती है और इस आराधना के नौवें दिन प्रभु श्रीराम का जन्म होता है।

हिंदू नव वर्ष को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही मनाया जाता है, क्योंकि हम देखते है कि, चैत्र मास से पहले जो महीना आता है वह फाल्गुन माह होता है, यह फागुन रस का महीना है जिसके देवता कामदेव होते है। कामदेव को मदन के नाम से भी जाना जाता है और इसी के कारण होली के त्यौहार को मदनोत्सव भी कहा जाता है। जब रस की उत्पत्ति होती है और कामदेव का उत्सव होता है तो आकर्षण का वेग प्रचंड होता है, जिसके बाद मदनोत्सव में मिलन होता है और युग्म बनता है। वह युग्म अंड या बिंदु से स्वरुप में आता है और प्रकृति जिसमें स्वयं का संचार करती है। संचार के बाद जब बिंदु में विस्फोटन होता है तब प्रकृति खिलखिला उठती है, चारों ओर नये फूलों से, नई कोपलों से, नये जीवन से, प्रकृति नव वर्ष का स्वागत कर रही होती है, तब वह दिन होता है चैत्र मास के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिवस।

आराधना की तपस्या को देखें तो तंत्र यह कहता है कि, जब शुन्य से शिव शक्ति अलग होकर दो हुए तब आकर्षण के कारण काम का जन्म हुआ, और युग्म से बिंदु और बिंदु में शक्ति का संचार फिर इस संचार से विस्फोट और ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। दरअसल सृष्टि नौ चरणों में है तभी नौ दिनों तक शक्ति के नौ रुपों की उपासना की जाती है। क्योंकि इस ब्रह्मांड का निर्माण शक्ति के संचार से ही हुआ, इसलिए शक्ति के इस ताप को आराधना एवम उपासना से मर्यादित करने के लिए नौ दिनों की उपासना की गई जिससे शक्ति का प्रचंड वेग धीरे-धीरे समाप्त हो और आराधना से शक्ति नौवें दिन सिद्धदात्री बनती है, जिससे सारे संसार के लिए जीवन संभव हो जाये। तद्पश्चात शक्ति सौम्य होती है और उससे फिर मर्यादा जन्म लेती है याने कि प्रकृति में प्रभु श्री राम का जन्म होता है, जो सभी को मर्यादीत कर देते हैं।
अब ब्रह्मांड में काम का वेग प्रचंड होता है और जब काम की गति चरम पर पहुंचती है तो इस प्रचंड वेग से बिंदु क्षरण होता है, इस क्षरण से सृष्टि उत्पन्न होती है… इसलिए भी यह सृष्टि शिव और शक्ति की संतान कहलाती है, और जब संतान उत्पन्न होती है और शक्ति का वेग जब नियंत्रण में आता है तो पहली बार मर्यादा जन्म लेती है। मर्यादा के जन्म लेने से काम के प्रचंड वेग के कारण सृष्टि जो पागलों की तरह भाग रही होती है वह वेग समाप्त हो जाता है, और सृष्टि मर्यादित हो जाती है। जब मर्यादा याने कि, श्रीराम जन्म लेते हैं तब सुर्य उच्च राशि में होता है और यहीं से ग्रीष्म की शुरुआत होती है।
ग्रीष्म ऋतु से तेज ताप बनता है, फिर ऋतुओं का वही क्रम चक्र चलता है इसे ही सृष्टि के आरंभ क्रम कहते हैं।

भारत में सदियों से विक्रम संवत पर आधारित चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा पर नव वर्ष मनाया जाता है।
हिंदु नव वर्ष सभी समुदायों के लिए नवीनता का प्रतीक है, साथ ही नये वर्ष के शुभ अवसर पर नवरात्र के प्रारंभ में सभी नये संकल्प के साथ जीवन की नयी शुरुआत करते हैं। इसी प्रकार विक्रम संवत पुर्णतः वैज्ञानिक गणना पर आधारित है। इसके ऐतिहासिक कारण में बताया जाता है कि, भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा शकों को पराजित किया और चैत्र में राज्याभिषेक किया गया। इस अवसर पर प्रतिवर्ष नववर्ष चैत्र में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।

हिंदु नव वर्ष और चैत्र नवरात्र हमारी सनातन संस्कृति में सभ्य समाज की सामर्थ्यता को समावित करती है।

रिंकेश बैरागी

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