हादसे की जिम्मेदारी क्या प्रत्येक प्रशासनिक अधिकारी की है या हो सकती है।

विकास की राहें क्या इतनी कठिन हो सकती है कि उन राहों पर से गुजरने का खामियाज़ा कुछ इस प्रकार से भुगतना पड़े कि वहां से होते हुवे निकलो तो काल के ग्रास बन जाओ।

पांच दिन बीत चुके है उस सड़क हादसे को जिसमें नौ जीवन मृत्यु को प्राप्त हुवे थे सरकारी तंत्र दुख प्रकट करने के सिवा अभी तक कुछ भी नहीं कर पाया है … फिर डायवर्सन के निर्धारित मापदंड की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने के मामले में जवाबदारी तय करने-कराने की सरकारी प्रक्रिया चल रही है।

जिला कलेक्टर नेहा मीणा द्वारा एक जांच टीम बनाई है जो जवाबदेही तय करते हुए दस दिन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। इस जांच दल के अध्यक्ष अपर कलेक्टर जितेन्द्रसिंह चौहान रहेगे सदस्य लोक निर्माण विभाग कार्यपालन यंत्री आरिफ अहमद गौरी, उप पुलिस अधीक्षक कमलेश शर्मा, प्रोजेक्ट डायरेक्टर एनएचइआई रतलाम संदीप पाटीदार, डिप्टी चीफ इंजीनियर रेल्वे रतलाम डिविजन संजय त्यागी और इंचार्ज थाना प्रभारी यातायात आर सी भास्करे रहेगे। समिति को दस दिन में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है ।

हालांकि क्या जांच समिति इस बात पर भी गौर करेगी कि जिले के सभी अधिकारियों का सजेली फाटक के डायवर्सन मार्ग से निकलना होता था और वो सभी कर्मचारी और अधिकारी वहां की खामियों को नजर अंदाज कर निकल जाते, यदि किसी एक अधिकारी ने भी निर्माणाधीन ओवरब्रिज पर नहीं लगे संकेतक की लापरवाही पर जरा सा भी ध्यान नहीं दिया। अगर ध्यान दिया होता तो शायद हादसे में भयानक मंजर ना होता।

बहरहाल जिला कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक भी अनेकों बार वहा से निकले होगे किन्तु उन्हें भी शायद वहां की कोई कमी दिखाई नहीं दी होगी या उन्होंने देखना नहीं चाहा होगा।

मेघनगर-थांदला मगर पर हुए भीषण हादसे की पुनरावृत्ति ना हो, सुरक्षा की दृष्टि से निर्धारित मापदंड का सख्ती से पालन हो।

जानता कि जागरुकता में ज़ख्म दावा के बगैर ही नासूर बनता जा रहा है, प्रश्न सभी के मन मस्तिष्क में मचल रहा है, आखिर इस भयावह दुर्घटना का जिम्मेदार कौन है, और जो प्रशासनिक अधिकारी और निर्माण करने वाली कंपनी के अधिकारी या मुखिया जिम्मेदार पाए जाते है तो नौ मौत के हादसे की सजा किस रूप में दी जाएगी।

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