निर्थक संवाद में संसदीय मर्यादा समाज विकास से दूर सतह पर होती धूमील।

रिंकेश बैरागी,

संसद के शीतकालीन सत्र में हमारे देश के संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर वार्ता, विचार विमर्श के लिए समय दोनों पक्षों द्वारा मिलकर तय किया गया था उसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष ने एक-दूसरे को लांछित किया और आरोप प्रत्यारोप के ऐसे दौर में संसदीय प्रक्रिया को ले आए जहां पक्ष विपक्ष के वैचारिक मदभेद से आपसी मनभेद बनकर लोकतंत्र के मंदिर में प्रदर्शित हुए। प्रधानमंत्री ने अवश्य ही 11 संकल्प लेने की आवश्यकता पर जोर देकर नागरिक और उनके प्रतिनिधियों की जिम्मेंदारी रेखांकित की।
लोकतंत्र के मंदिर में संसदीय मर्यादा को तार-तार करते सदन के सदस्यों ने हंगामा, शोरगुल और विरोध का ऐसा तांडव रचा जिसे देखकर प्रत्येक देशवासी के मनोभाव में पक्ष और विपक्ष के प्रति घृणित भाव उत्पन्न होकर अनेक विरोधाभाष हुए, क्योंकि यदि संसद हमारे लोकतंत्र का मंदिर है तो उसकी मर्यादा उसकी शुचिता और उसके प्रति शुद्ध आचरण की जिम्मेदारी सदन के सदस्यों की ही होती है।
संसद में जब संविधान पर सतही वार्ता और विचार पर दोनों पक्ष सहमत हुए थे तो विपक्ष को विरोध के स्वर में आरोप के आगे पहुंचकर लांछन लगाते हुए शोरगुल की सीमा को लांघते हुए धक्का मुक्की कर सदन की गरिमा का क्षरण नहीं करना चाहिए था। उसके इस कृत्य से समाज को संविधान के संबंध में कौन सा ज्ञान प्राप्त हुआ या राष्ट्र विकास में कौन से नए चरण सम्मिलीत किए गए। कांग्रेस के राहुल गांधी संविधान को खतरे में बताकर देश की जनता में भय का भूत फैलाते हुए नागरिको को बरगला रहे हैं उसमें कितनी सच्चाई है उसे साबित करने का उनके पास शीतकालिन सत्र में संविधान पर चर्चा कर बताने का बहुत अच्छा मौका था परंतु आरोप की आड़ में स्वयं को औऱ अपनी पार्टी की कमियों को छुपा भी नही पाए और सियासत में गिरावट के स्तर पर लाकर अपने पक्षधारो को खड़ा कर लिया।
विपक्ष का कार्य सिर्फ विरोध का ही नहीं होता अपितु विपक्ष सत्ता पक्ष को उसके द्वारा किये गए कार्यों की उन गलती को दर्शाता है जिसके कारण सरकार हानि में न जाए और सभी को लाभ का समान रुप मिले, वहीं देश में स्वार्थ और भ्रष्टाचार को समाप्त करने की धूरी पर कार्य संपन्न किया जाए। किंतु शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने अपने स्वरुप को ही बदल डाला, आपस में शत्रुता के भाव से लांछण लगते रहे। संविधान के अपमान की रट पकड़ते हुए विरोधाभाष के ऐसे कोने में जा पहुंचे जहां जातियों में भेदभाव की लहर को गाढ़ा करने लगे। संविधान खतरे में और संविधान का अपमान बता कर हल्ला मचाने वाले पक्ष ने नागरिको में सत्ता पक्ष द्वारा आरक्षण समाप्त करने का भ्रम भी बहुत तेजी से फैलाया मगर क्या जिस बाबा साहेब औऱ उनके संविधान के अपमान की बात करते विपक्षी यह क्यों भूल गए की उन्हीं बाबा साहेब ने एससी-एसटी के लिए दस वर्षो तक आरक्षण था क्योंकि स्वयं डा. आंबेडकर जी का मानना था कि, इस अवधि के बाद उसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका और आरक्षण जारी रहा। एक समय में तो स्वयं कांग्रेस ही आरक्षण की प्रबल विरोधी थी उनका भी मानना था की आरक्षण की भेंट से दूर वर्ग अपने उत्थान के लिए आगे आए, क्योंकि बहुत से ऐसे वर्ग भी है आरक्षण से वंचित रहकर अपने आर्थिक, सामाजिक उत्थान में सार्थक हुए है।
परिवर्तन संसार का नियम है, सन 1947 में जो कांग्रेस पार्टी रही होगी वह वर्तमान में नहीं है उसमें भी अनेक परिवर्तन व्याप्त हुए है। देश-दुनिया में लाखों परिवर्तन हुए है, आधुनिकता के दैर में मनुष्य में भी परिवर्तन हुए है और ये परिवर्तन सुविधानुरुप के गए है उसी तरह सत्ता पक्ष भी नागरिको की सुविधा और उनकी सहजता के साथ राष्ट्रहीत के लिए संविधान की मूलभावना को यथावत रखते हुए ऐसे परिवर्तन करती है जो सुविधाजनक हो, और ऐसा भी नहीं है की वर्तमान सरकार पहली बार ही संविधान में कोई परिवर्तन ला रही हो उसके पहले की सरकारों ने भी जिसमें मुख्यतः कांग्रेस सरकार ने अबतक सबसे ज्यादा परिवर्तन संविधान में किए है।
हालांकि सदन में यह पहली बार नहीं हुआ जब संसद में संविधान की मर्यादा तार-तार हुई हो, 26 अगस्त 2006 को लोकसभा में सांसदो का निम्न स्तर देखने को मिला था जब जद(यु) और आरजेडी के सदस्य हाथापाइ पर उतर आए थे, असंसदीय शब्दों का उपयोग किया गया था। 24 नवंबर 2009 को राज्यसभा में अमरसिंह और भाजपा के अहलुवालिया में हाथापाई हुई थी, 5सितंबर 2012 को बसपा सांसद अवतारसिंह और सपा सांसद नरेश अग्रवाल के बीच हाथापाई हुई थी, और 13 फरवरी 2014 को तो आंद्र प्रदेश पुनर्गठन को लेकर विधेयक के विरोध में सांसदो ने सदन में मिर्च स्प्रे फेंक दिया था।
बहरहाल संसद कोई भवन नहीं ये तो भारत की आकांक्षा विश्वास, और समर्पण का केंद्र है जहां भारत के नागरिको का प्रतिनिधित्व उनके चुने हुए सांसद प्रतिनिधि के रुप में करते हैं। लोकतंत्र की धूरी राज्यसभा और लोकसभा है, स्तंभ के रुप में पक्ष औऱ विपक्ष है, संवाद और प्रतिवाद के माध्यम से भारत के नवनिर्माण का स्वरुप तैयार किया जाता है और संसद में बैठकर सांसद, द्वारा समाज के प्रत्येक पायदान पर खड़े व्यक्ति के हीतों की चिंताकर जीवन स्तर में सुगमता लाने के लिए नीतियां बनाई जाती है, परंतु विपक्ष मनभेद कर शत्रुता के चरम पर जाकर देश में अपनी हार का बदला संसद को बाधित करके लेना चाहता है।

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