धन्यं भारतवर्षम(स्वर्णिम भारत- विरासत व विकास)
लेखिका- निवेदिता सक्सेना
रत्नाकरधौतपादां हिमालयकिरीटिनिम्।
ब्रह्मराजर्षिरत्नद्यम् वन्देभारतमात्॥
भारत विश्व के सबसे प्राचीनतम देशों में से एक है, जहां की संस्कृति व सभ्यता अपना अटूट स्थान रखती है। भौगोलिक व राजनैतिक सीमाओं से परे जहाँ वेदों ने विज्ञान को दर्शाया ,वही भारत ने कई धर्मो को शरण देकर एक सूत्र में बांध अनेकता में एकता के दर्शन कराए ,जहाँ भगवत गीता ने जीवन क्या है कैसे जीना हैं इसका सत्य बताया। तपोभूमि का भारत एक जीता जागता स्थान रहा है ,आज हम महाकुंभ के देख रहे हैं देश ही नही विदेशों से करोड़ो लोग आज धर्म ,शांति व अध्यात्म को समझने व जाग्रत करने प्रयागराज की भूमि पर आए हैं। सन्तो की तपोभूमि आज भी उतनी प्रगाढ़ हैं आज के इस आधुनिक युग मे भी वहां प्रत्यक्ष देखने को मिल रहा है। हम 26 जनवरी 1950 के बाद से 76 वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं जिसका विषय स्वर्णिम भारत – विरासत व विकास ।
भारत मे 28 राज्य व 8 केंद्र शासित राज्य हैं ,जो अपनी विरासत व संस्कृति देश की समृद्धि व विविधता को दर्शाती हैं ।हम ये जानते हैं प्राचीन समय मे कई युगों के बाद भारत क्षेत्रफल की दृष्टि से विभाजित होता रहा है ।वही कई अमूल्य धरोहर धार्मिक स्थल ,आस्था के केंद्र, कई विश्व विद्यालय ,पुस्तकालय आक्रांताओं के प्रवेश व आक्रमण के दौरान जला दिए गए या जमीनों में दबा दिए गए या स्वरूप परिवर्तित कर दिए गए। खैर कई स्थल ऐसे थे जिन्हें नष्ट करना मुश्किल था जो आज भी आन बन शान से अपनी जगह पर स्थिर है ये जैसे राम सेतु, काशी विश्वनाथ, महाकाल नगरी , सोमनाथ , तिरूपति ,जगन्नाथपुरी आदि ।
अगर अंचलों में देखे तो भी हमे हजारों वर्ष पूर्व की विरासत व उनके प्रमाण देखने को मिलते हैं जैसे उतर प्रदेश के सम्भल के कल्कि विष्णु मंदिर से लेकर ,कई बावड़ियां व राजवंश के समय की छत्रियां जहाँ आज कई मंदिर सुरक्षा के अभाव संरक्षण हेतु बाँट जो रहे हैं ।जहाँ कई लोगो ने ने दबा कर या भूमिअधिग्रहण कर नगर बसा लिए या उन्हें अपने आस्था का स्थल बना दिया जैसे धार में राजा भोज के तपोस्थली स्वरूप भोजशाला माँ वाग्देवी की मूर्ति व स्थल अपने अस्तित्व की बांट जो रहा हैं। साथ ही वहाँ लाखो भक्तगण भोजशाला में माँ सरस्वती की स्तुति करने की आस में हैं ।
भारत मे जितने भी ऐतिहासिक स्थल हैं ये ना सिर्फ आस्था का स्थल हैं वरन रोज़गार व व्यवसाय का भी एक महत्वपूर्ण जरिया है जो न सिर्फ क्षेत्रिय लोगो को आर्थिक रूप से सम्पन्न करेगा बल्कि अपनी परम्पराओ, संस्कृति व वेशभूषा, बोली भाषा,पारम्परिक ,भोजन भजन को भी संरक्षित करेगा ।कुल मिलाकर ऐतिहासिक स्थलों का न सिर्फ संरक्षण अनिवार्य है वरन संवर्धन कर आर्थिक संपन्नता को बढावा देना हैं।
जिम्मेदारी हमारी
- हमे अपनी विरासत को संरक्षित कर भविष्य की स्वर्णिम गौरवशाली सीढ़ियों को चढ़ना हैं।जो आज के हर युवा को इतिहास को पढ़ना , समझकर उसे आधुनिक विकास का ध्येय बनाना होगा।
भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतँ संस्कृतिस्तथा
प्रजाराज्योत्सवं प्रजाराज्योत्सवः गणराज्योत्सवः इत्यपि कथयन्ति –