जुआरियों की ज़मानत की जुगाड़ – जिले के हर थाना क्षेत्र में चल रहा जुआ और सट्टा।

समाज में सट्टा और जुआ एक ऐसा धीमा जहर है जो एक के बाद एक सामाजिक अपराध को जन्म दे कर जुआ खेलने की लत में पड़े व्यक्ति को असामाजिक बना देता है, और वह व्यक्ति धीरे-धीरे आपराधिक भी हो जाता है।
बीते दिनों झाबुआ पुलिस ने करीब आधा दर्जन लोगों को जुआ खेलते हुवे पकड़ा or उनसे करीब 55 हजार से अधिक धनराशि ज़ब्त की। ऐसे ही मेघनगर थाना क्षेत्र में भी पुलिस ने सट्टा खिलने वालों को दबोचा।
अब एक्का दुक्का दिन छोड़ कर हर दूसरे तीसरे दिन सट्टा या जुआ खेलते लोगों को पुलिस पकड़ेगी और जुआ एक्ट में कार्यवाही कर ड्यूटी पूूरि कर लेगी लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के तहत इस बीमारी का जड़ से अंत नहीं करेगी क्युकी ऊँचे स्तर पर बैठे लोग ये नहीं चाहते कि जुआ और सट्टा बंद हो जाए, इसलिए इसके कानून में भी बहुत लचीलापन है। पुलिस समाज के साथ मिलकर इस बीमारी को कम जरुर कर सकती है और इसमें शामिल होने वाले युवाओ को रोक कर उनके भविष्य में बदलाव लाते हुवे उनकी जिवन शैली को आपराधिक या असामाजिक होने से बचा सकती है।
लेकिन लोभी पुलिस इस और कदम उठाने से कतराती हैं। कोई भी माता-पिता यह नहीं चाहेगा की उसके वंश का कुल दीपक जुआ की आग में जल कर राख हो जाए। पुलिस समाज के साथ मिलकर ऐसे कदम उठाए की जुआ खेलते खिलाने के प्रत्येक स्थान पर छापामारी की जाए, युवाओ को सख्ती के साथ बाहर किया जावे और कानून की मदद से जुआ सट्टा खेलते खिलाने वालों को सलाखों के पिछले किया जाए।
हालांकि झाबुआ के बड़े बड़े जुआरि जंगलों में जुआ खेलते है और शहर जिले से बाहर भी जाते है। सीमा क्षेत्र में ऐसे फार्म हाउस भी है जहां जोरों से जुआ चलाता है जिसकी शुरुआती बोली लाखों की होती है।
बहरहाल सटोरिये और जुआरि पुलिस की आंखों में रोज धूल झोंक कर उनके सामने से निकल जाने है और पुलिस देखती रहती है। जब दबाव आता है तो उनमें से कुछ के केस बना कर इतिश्री कर देती है। मीडिया में जवाब भी देती है कि जुआरियों पर जुआ एक्ट में कार्यवाही कर मामले को न्यायालय में भेज दिया है।

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