कल्याणकारी योजनाओं का भविष्य अकल्याणकारी होकर युवाओं के लिए दुष्प्रभावी साबित न हो जाएं।

रिंकेश बैरागी,

संविधान में निर्दिष्ट राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में केंद्र और राज्य सरकारों को नागरिकों का जीवन स्तर सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश है परंतु सरकारों ने तो निशुल्क सुविधाएं चलाकर आर्थिक स्थिती को दरकिनार कर दिया। कुछ लोगों का मत है कि, जो अत्यंत निर्धन वर्ग के लोग है उन्हें सुविधाएं मिलती है तो ठीक भी है लेकिन प्रश्न यही है कि उनको भी कब तक निशुल्क सुविधाएं मिले, क्योंकि हमेशा देखा गया है सुविधाओं को पाने के लिए कामचोर लालची वर्ग अपने आप को गरीबी रेखा से नीचे दर्शाने के लिए अति निर्धन भी बन जाते है। फिर राजनैतिक दल अपनी रोटियां सेकने के लिए रेवड़ियों का साधन चुनते है और उन निर्धनों के साथ करोड़ो जनता को मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी देकर निठल्ला बनाते हैं। देश में सोने वालों की संख्या में बड़ोत्तरी होती जाती है और कामकाजी लोग कम होते जाते है, इस कारण ही जागरुकता की रैली में मुठ्ठीभर लोग ही शामिल हो पाते है।
राजनीति दलों में दावों के मुफ्त वादें नागरिको को आलसी, कमजोर, निर्लज, नाकारा, बना रहे हैं। देश के उच्चतम न्यायालय ने भी लोकलुभावन घोषणाओं में लोगों को प्रलोभन के जाल में फंसते देखा है, और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने राजनीतिक दलों को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि, राष्ट्रीय विकास के लिए लोगों को मुख्य धारा में लाने के बजाए रेवड़ी की राजनीति से देश में हम परजीवियों का एक वर्ग तैयार कर रहे हैं। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि, चुनाव से ठीक पहले घोषित रेवड़ियों से लोग काम करने के लिए तैयार नहीं होते। उन्होंने मुफ्त में मिलने वाली सामग्री, राशन और पैसो पर अपने जीवन को आधारित कर लिया है।
बहुत सी मुफ्त की योजनाओ में करोड़ो नागरिक लालच में स्वयं के स्वाभीमान को समाप्त कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरुप काम करने के लिए लोगों की कमी हो गई है, ध्यान रहे प्रलोभन लोगों को हतोत्साहित करते हैं। राज्यों के पास निठल्लो को देने के लिए पैसे और संसाधनो की कोई कमी नहीं है किंतु जब न्यायिक अधिकारियों को वेतन पेंशन जैसी सुविधाएं देने की बात आती है तो राज्य सरकारें अपने खजाने के खाली होने का रोना रोती रहती हैं।
भारतीय राजनीति में आरविंद केजरीवाल ने रेवड़ी राजनीति के सारे समीकरण बदल दिए, मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त परिवहन से मुफ्तखोरी की राजनीति को अलग स्तर पर ले गए, जो की जनकल्याण और देश के विकास पर बोझ है। कांग्रेस भले ही दिल्ली में अपने पैर जमा नहीं पाई हो लेकिन उसने भी चुनाव जीतने के लिए बड़े-बड़े वादों के दावे किए। भाजपा भी रेवड़ी संस्कृति के सम्पर्क से दिल्ली में 27 वर्ष बाद अपने ध्वज को फहराने मे सफल हुई और मध्यप्रदेश में भी भाजपा सरकार वर्षो पुरानी गलती फिर से दोहरा रही है मुफ्तखोरी की लत में मध्यप्रदेशवासी भी लालच में आ कर निठल्ले होते जा रहे हैं।
सरकारों द्वारा सुविधा तो ऐसी दी जानी चाहिए कि, व्यक्ति उस सुविधा को पा कर अपने विकास की ओर अग्रसर होने की शुरुआत करे जिससे धीरे-धीरे वह सुधार की स्थिती में तो आएगा ही और बेकार लालची भी नहीं बनेगा। सुविधाएं लेने वालों को समझदार होने की तरफ जागरुक करना होगा अन्यथा इसका मुल्य किस तरह घातक हो सकता है आप और हम उस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। रेवड़ी राजनीति या मुफ्त सुविधाओं के परिणाम से होने वाली हानियों का फल राजनीतिक दल नहीं लेगे इसका घातक मुल्य जनता को ही चुकाना पड़ेगा साथ ही साथ उन युवाओं को चुकाना होगा जो मुफ्त की योजनाओं में अपने भविष्य को अकारण ही अंधकार में धकेल रहे हैं, और यह मुल्य ऐसा चुकाना पड़ सकता है कि अगली पीढ़ी को उचित स्तर के जीवन के लिए आवश्यक सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ेगा, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य का स्थान प्रमुख होगा।
मुफ्त की इन सुविधाओं से चुनाव तो जीते जा सकते हैं, मगर भविष्य में इसकी बहुत बड़ी किमत उन्हीं को चुकानी होगी जिन्होंने लोभ लालच में मुफ्त सुविधाओं के लिए मतदान किया। राजनीतिक दलों की ये आकर्षक स्कीम अस्थायी राहत देती है। मुफ्त सुविधाओं पर अध्ययन किया जिसमें सुविधाओं का आर्थिक, सामाजिक, नैतिक प्रभाव की जांच की गई तो इस विश्लेषण में लोगों की निर्भरता सुविधाओं पर बढ़ती हुई पाई गई। अध्ययन में यह भी पाया कि, इन मुफ्त सुविधाओं और योजनाओं के लिए संसाधन जुटाने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवाओं में कटौती की जाती है। दीर्घकालिन विकास में बाधा आती है और आत्मनिर्भरता के साथ रोजगार सृजन में भी कमी होती है। मुफ्त सुविधाओं को देने के लिए सरकार को अतिरिक्त धन की आवश्यकता होती है, जिसके लिए सरकारों को कर्ज लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है जिससे क्रेडीट रेटींग में गिरावट की संभावना रहती है। पंजाब में मुफ्त सुविधाओं की राजनीति इसका जीता जागता उदाहरण है।
हालांकि, सीधी सी बात है जिसे समझने की आवश्यकता है कि, चुवानी वादों में जहां मुफ्त सुविधाओं का लोभ लालच है उसका सीधा अर्थ है नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता का प्रभावित होना, जिससे अल्पकालिन लाभ और दीर्घकालिन आर्थिक स्थिरता का आना संभावित है। वर्तमान में सुविधा पाने पर व्यक्ति कुछ करता ही नहीं है, न तो शारिरीक रुप से न ही मानसिक रुप से।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने रेवड़ी राजनीति पर अपना पक्ष रखते हुए सरकार से प्रश्न भी किया था कि, क्या मुफ्त सुविधाओं को देकर हम परजीवियों का एक वर्ग तैयार कर रहे हैं। मुफ्त योजनाओं की राजनीति पर रोक के संकेत समझदारी के पक्ष की ओर दिख रहा है। मध्यप्रदेश में भी योजनाओं को बनाकर मुफ्त में पैसा बांटना परिवारों में पंगुता लाने जैसा है, जिसे ऐसा कुछ कर दिया जाना चाहिए कि जिसे आवश्यकता हो वह उसे योजनाओं का लाभ दिया जाए और वो भी कुछ तरह की लाभार्थी अपने व्यक्तित्व विकास की ओर अग्रसर हो, अन्यथा योजनाओं में मिलने वाली मुफ्त की वस्तु या पैसा सिर्फ भविष्य में युवाओं की स्थिति को गंभीर बना कर छोड़ देगी, जिससे उनकी बुद्धी अस्वस्थ्य रहेगी।

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