जनजातीय लोक संस्कृति, सनातनी परम्पराओ का एक अनोखा पर्व है भगौरिया: राजेश मैंड़ा”

राजेश मेड़ा।


आदिवासी संस्कृति के भगोरिया पर्व एक आनन्द का उत्सव हैं, जहां गीत,संगीत ओर मस्ती के साथ आदिवासी समाज होली का स्वागत करते है….।।
“हमारे जिले (झाबुआ) सहित धार,अलीराजपुर, बड़वानी, खरगोन,रतलाम के अंचलों में इन दिनों भगोरिया उत्सव की महाधुम रहता है”
“भगोरिया
हाट के भगोर शब्द की उत्पति “भगोर गोत्र” से हुई है भगोर जाति के बाहुल्य लोगों का निवास स्थान जो भगोर गांव में है!
मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में हाट के साथ मेले आयोजन करना शुरू किया धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जो कि आज विश्व प्रसिद्ध भगोरिया हाट के नाम से विख्यात हुआ है।


“भागोरिया हाट” धीरे-धीरे प्रचलन में आया भगोरिया हाट के अन्य नाम जो हम सुनते है जैसे कि भोंगर्या हाट, भगोरिया हाट, भोंगरियू हाट, भगोरियो हाट ये सभी नाम राठवी, पालवी, बारेली क्षैत्रिय बोली के अनुसार रखें गये है जिनका उच्चारण अपने अपने क्षैत्र के अनुसार आदिवासी समुदाय के लोग करते हैं। जिसे मनाने हेतु वर्ष भर अपने काम, के व्यापार व्यवसाय के लिए अन्यत्र स्थान पर पलायन के रूप में गए हुए, समाज के बंधु होली के 7 दिन पूर्व अपने आसपास के कस्बा क्षेत्रों में आयोजित होने वाले साप्ताहिक भगोरिया हाट: 7 मार्च से 13 मार्च तक (होली की खरीदारी) अपने आप में एक अलग ही साझा संस्कृति का केंद्रीकरण दिखाई पड़ता है, भगोरिया हाट-बाजार का केंद्र न बनकर, यह एक तरह से जनजातीय समाज का प्रति वर्ष लगने वाला कुम्भ मेला है जहां पर, जनजातीय समुदायों की संस्कृति परंपरा रीति रिवाज को आज भी संजोए रखकर, वर्ष में एक बार सबके साथ मिलकर अलग-अलग रीति रिवाज परंपराओं का समावेश देखने को मिलता है। भगोरिया हाट में अनेकों प्रकार की संस्कृति का भी समावेश होता है अपने ही अंदाज में गीत गाते नृत्य करते जनजाति समाज के युवायुवती इस दिन सजधज कर आते हैं भगोरिया हाट सामाजिक समरसता का पर्व है इसे अब देखने में आता है कि कुछ राजनीतिक दल अपनी शक्ति प्रदर्शन का केंद्र बनाकर इसकी वास्तविकता को समाप्त करने में लगे हैं उन्हें लगता है की यही एक मौका है इसे भी भुना लिया जाए और संस्कृति सभ्यता मान्यताएं परंपराएं अलग स्तर पर छूट जाती है, यह पर्व आपसी मतभेद मिटाने का है किन्तु इसका भी राजनीतिक लाभ लेने का विचार बना लेना यह उचित नहीं है यह समाज के जागरूक लोगों को इस पर विचार करना होगा और इसे एक सामाजिक समरसता का पर्व बने इस हेतु समाज के हर वर्ग को प्रयास करना चाहिए।


भगोरिया त्यौहार मिलने-जुलने व नाचने-गाने का, खुशियों में सबको शामिल करने का पर्व है
यह पर्व होली के आगमन ओर चिंताओं के समापन का है..।
आज इसकी लोकप्रियता इतनी है कि विदेशों से लोग इसके दर्शन करने हाट पहुंचते हैं, गाते नाचते हैं…!!
भगोरिया'(भोंगर्या) समझ लीजिए कि एक हाट, बाजार का मात्र है जिसमें होली से पूर्व आदिवासी समाज पूजवा सामग्री खरीदने के लिए जाते हैं यह परंपरा पाषाण काल से या आदि अनादि काल से चली आ रही हैं।
यह मूलतः_जनजातीय (आदिवासी) अंचलो के आदिवासी इलाकों में बेहद बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है

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