बाबा कोकिंदा का मेला एक आध्यात्मिक यात्रा व पौराणिक आस्था का केंद्र

झाबुआ जिले में प्राकृतिक मंदिरों की अनेकों संख्या है लेकिन बाबा कोकिंदा पहाड़ की महिमा अनंत है। यह देव सात्विक देवों में गिना जाता है यह थांदला तहसील के मोरझरी गांव में स्थित है। यह विशाल पहाड़ पर स्थित है। जनजातीय समाज की आस्था और अस्मिता का केंद्र स्थल है।

इस विशाल पहाड़ पर भगवान शिव, भगवान रामदेव, राधा कृष्ण, माताजी सहित प्राकृतिक भीलों का थानक भी है जो आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इतिहास साक्षी है कि यहां पहुंचने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं सदैव पूर्ण होती है यहां पर प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा पर विशाल पांच दिवसीय धार्मिक मेला लगता है जो जनजाति समाज का सबसे बड़ा मेला होता है इस मेले में झाबुआ सहित आसपास के अन्य राज्यों जैसे गुजरात और राजस्थान से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।

यह मिला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक यात्रा भी है हिंदू धर्म में आत्मा की शुद्धि पापों की मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है।


अटूट आस्था रखते हैं जनजाति समाज बाबा कोकिंदा के प्रति
जनजाति समाज बाबा कोकिंदा के प्रति अटूट अविरल आस्था रखते हैं वह अपनी नई फसल का चढ़ावा सर्वप्रथम बाबा कोकिंदा को चढ़ाने के बाद ही ग्रहण करता है बाबा कोकिंदा के दरबार में आने वाले हर भक्त खाली हाथ कभी नहीं जाता। विद्यार्थी और नौकरी के लिए तैयारी करने वाले युवा भी बाबा कोकिंदा बड़ी संख्या में आते हैं तथा अपनी मन्नत लेकर जाते हैं और उनके मन्नत हमेशा सफल होती है। तो वही जनजाति समाज अपने बच्चों की शादी करने से पूर्व बाबा कोकिंदा पहाड़ पर मेला लेकर आते हैं ताकि बेटे- बेटी की शादी शांतिपूर्वक और धूमधाम से संपन्न हो सके तथा वही गाय, भैंस का दूध चढ़ाने के बाद भी परिवार का मुखिया ग्रहण करता है। अनेक आस्थाएं बाबा कोकिंदा के प्रति है। बारिश के समय पानी की भविष्यवाणी भी मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा की जाती है जो हमेशा सत्य साबित हुई है आधुनिकता के युग में बाबा कोकिंदा मेला झाबुआ अंचल का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक मेला बन चुका है। प्रतिवर्ष के अनुसार माघ पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालु ने बाबा कोकिंदा के दर्शन किए तथा आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस मेले ने प्रदेश स्तर पर ध्यान आकर्षित किया। यह मेला केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है साथ ही जनजाति समाज का ईश्वर के प्रति आस्था एवं गहरा संबंध भी है कुछ राजनीतिक चाटुकार देश के भोले भाले जनजाति भाईयों को धर्म से अलग करने की कोशिश कर रहे हैं उनके लिए यहां मुंह पर तमाशा था। जनजातीय समाज हमेशा प्रकृति और ईश्वर को मानते आया है। यह मेला धार्मिक और सांस्कृतिक एकता, समरसता का प्रतीक है जनजाति समाज के लिए महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व के रूप में जाना जाता है।
✍️लेखक:-निलेश कटारा,
ग्राम मदरानी तहसील मेघनगर जिला झाबुआ मप्र
मो 9685353501
Email nileshkatara121@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *