स्वतंत्रता की महत्वपुर्णता सदा स्मरण रहें, जब देश पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहा था तब लाखों लोग विभाजन का दंश झेल रहे थे।
स्वतंत्रता की 78 वर्षगांठ आज भारत मना रहा है, स्वतंत्रता हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है इसका अनुमान लगाना अत्यंत कठीन है। आज हम खुली हवा में अपने पंख फैलाए खुशियों के साथ रहते है क्योंकि इस स्वतंत्रता के लिए, लाखों लोगों ने अपने जीवन की आहुति दी है, जिसे भूलाया नहीं जा सकता… मगर लोग भूल रहें हैं।
आज की युवा पीढ़ी को 15 अगस्त सन 1947 के दूसरे पहलु का अनुमान ही नहीं है, जब देश स्वतंत्रता के उजाले में तीरंगा लहरा रहा था तब उसके पीछे विभाजन के घाव से रक्त, पीप, स्वेदकर्ण, दर्द के साथ बह रहा था। मोहनदास करमचंद गांधी और जवाहरलाल नेहरु की हठधर्मी से लाखों लोग बेघर हो गये थे, प्रतिदिन हजारों मौत के घाट उतर रहे थे, माताएं अपनी बेटियों का गला घोटकर उन्हें मौत दे रही थी और उसके बाद स्वयं की जीवनलीला समाप्त कर रही थी। फिर भी दुराचारी अपने दुराचार से बाज नहीं आ रहा था उसने तो अपनी नफरत का प्रदर्शन करते हुए मृत देह से भी दुष्कर्म किया। लाखों युवतियों का अपहरण कर लिया गया, हजारों बच्चियों के साथ गलत किया, महिलाओं के साथ सामुहिक दुष्कर्म किया। ऐसी अनेकोनेक अंतहीन यातानाएं है जिसके बारे में जानकर समझकर विचार करना जरुरी है क्योंकि वह भी स्वतंत्रता को सच है…
आज के युवाओ को इन यातनाओं का कुछ प्रतिशत भी नहीं पता है, उन्हें जानकारी ही नहीं है कि, विसत्थापन के दर्द में कितनी कसक कितने गहरे घाव शरीर के किस-किस अंगो पर लगे। मेरा अनुमान है कि, आज की पीढ़ी को ऐसा कुछ ज्यादा नहीं पता होगा, क्योंकि हमने देखा है, बच्चें और युवा पीढ़ी इस दिन को छुट्टी मानकर पिकनीक मनाते है या आराम करते है या फिर शराब और मांसाहार के साथ पार्टिया करते है।
बीती सरकारों ने स्वतंत्रता की महत्ता को एक ऐसा उत्सव बना दिया है जिसमें भारतीय इस दिन को एक दिन का अवकाश मानकर आराम करते हैं, प्रशासन जिला, तहसील स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति करवाकर इतिश्री कर लेता है। हर सरकारी निजी कार्यालय पर भारतीय ध्वज फहराया जाता है। विद्यालयों में विद्यार्थियों को मिष्ठान या अल्पाहार देकर छुट्टी कर दी जाती है। इतना कुछ किया जाता है बस। बरसो बरस की हमारी पराधिनता से स्वतंत्रता के सैकड़ो वर्षों के इस लंबे पीड़ादायी, अत्याचारी, दुखःद, यात्रा को एक दिवस के कुछ घंटो का उत्सव मनाकर अवकाश की तरह छोड़ दिया जाता है। किसी के बताया नहीं जाता कि किस तरह पीड़ा के सहते हुए हमने पराधिनता की सीमा को पार कर स्वतंत्रता के आंगन में पैर रखा।
सरकारों ने क्यूं नहीं इसे महत्वपूर्ण समझा कि भविष्य में देश के प्रत्येक नागरिकों को स्वतंत्रता के संग्राम के इतिहास की बारिकियां उसकी गहराइयों को जानने उसे समझने की आवश्यकता होगी, इसलिए स्वतंत्रता का महोत्सव मनाया जाए… प्रत्येक शैक्षणिक संस्थाओ में इसे सात दिन के पर्व की तरह मनाया जाए, जिसमें नृत्य, कला, लेखन, नाटिकाएं, अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से हमारे देश पर सैकड़ो वर्षों की पराधिनता का उल्लेख हो और किस तरह संग्राम करते हुए हमने दुश्मनों को खदेड़ा, हमने ऐसी क्या गलतियां की क्यों विफल हुए जो हमें हजारो वर्षों तक पराधिन रहना पड़ा। फिर किन कारणों की वजह से हमने विरोध किया और हम लड़े, यातनाएं सहते हुए रक्तरंजीत हुए, भूखे प्यासे तिल-तिल मरते हुए भी हमने स्वतंत्रता के पथ को प्रबल बनाया, लाखों युवतियों और महिलाओ ने अपनी मर्यादा भंग न हो इसलिए स्वयं को मृत्यू की गोद में डाल दिया, और लाखो करोड़ो स्त्रियां बच्चियां उन नीच अधर्मी पापी असुरों की दुष्ट वासना का शिकार हुई। हमने शक्ति को किस तरह उपयोग कर स्वतंत्रता का सुरज देखा। इसे बताने के लिए हमें आज स्वतंत्रता महोत्सव की आवश्यकता है। यह सिर्फ एक दिन के उत्वस की बात नहीं।
हमें हमारे देश को अगर पापाचिरयों दुराचारियों आत्याचारियों से बचना है तो हमें स्वतंत्रता महोत्सव की आवश्यकता है… क्योंकि वर्तमान में भी हमारे देश के दुश्मन हमें अगल-अगल तरह से परतंत्रता की तरफ धकेलने की कोशश में लगे हुए है। वो धर्मांतरण करवाकर हमारी संस्कृति को धूमिल कर रहे हैं वो परिवार को तोड़ कर महिलाओ को अपनो से अपनो का विरोधी बना रहे हैं।
मैं इस लेख के माध्यम से वर्तमान सरकार से यहीं अनुग्रह करता हुं कि, हमें हमारे देश में स्वतंत्रता महोत्वस मनाना चाहिए जो सात दिवस तक पर्व की तरह शैक्षणिक संस्थाओं में चले, जिससे हमारी भावी पीढ़ी परतंत्रता से स्वतंत्रता के पथ को समझे।
इसलिए इस लेख को आपके माध्यम से सरकार तक पहुंचाने की आशा रखता हुं…