सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय- राज्य को एससी, एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण का अधिकार। निर्धनो और वंचितो को सरकार देगी लाभ।

समाज में आरक्षण का महत्व इतना अधिक है कि, इससे अच्छे अच्छो की राजनीति चल जाती है और बहुत से नेता भी इससे अपनी रोजी रोटी चलाते है। बहुत से स्थानों पर इसी मुद्दे के कारण चुनाव के परिणाम भी बदल जाते है। सुप्रीम कोर्ट ने बदलाव की एक बहुत बड़ी घड़ी को सामने ला कर रख दिया है अब यह निर्णय समाज में समय की आवश्यकता पर खरा उतरेगा।

संसद में आरक्षण और जातिगत जन गणना की बहस पर कांग्रेस और उसके समर्थित दल बहुत जोर लगा रहे है और इसी मुद्दे पर राजनीति जंग भी हो रही थी तभी सुप्रीम कोर्ट ने देशहीत में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया जिसमें राज्य सरकारों को आरक्षण में उपवर्गीकरण का अधिकार दिया गया है। जो कि आरक्षण की स्थित वर्तमान व्यवस्था को प्रभावित करेगा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर आरक्षण का अधिकार होगा… जिससे उन लोगों को लाभ मिलेगा जो एससी, एसटी वर्ग के होने पर भी सरकारी योजना की सुविधाओ से अभी तक वंचित है और क्रीमी लेयर को चिन्हीत किया जायेगा साथ ही इसको एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर को चिन्हीत कर उन्हें बाहर किये जाने पर भी बल दिया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने 20 वर्ष पुराने 5 न्यायधीशों के इवी चिनैया (2004) मामले में दी गई व्यवस्था को गलत बताया जिस निर्णय में 5 न्यायधीशों ने कहा था कि, एससी एसटी वर्ग एक समान समूह वर्ग है, जिसका उपवर्गीकरण नहीं हो सकता। वर्तमान में उच्चतम न्यायालय की सात न्यायधीशों की संविधान पीठ ने 6-1 से कोटे में कोटा का निर्णय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर एससी एसटी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में उसी वर्ग के आरक्षण का लाभ पाने से वंचित रह गए, वर्गो को लाभ देने के लिए उपवर्गीकरण किया जा सकता है। जैसे कि, एससी एसटी वर्ग की जो जातिया ज्यादा पिछड़ी रह गई है, और उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है या उनका सरकारी नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है उनको उपवर्गीकरण से उसी कोटे में प्राथमिकता दी जा सकती है जिससे उन्हें लाभ पहुंचे और उनका उत्थान भी हो सके।

हालांकि, निर्णय की मुख्य बातें है जिसमें कहा गया है कि, एससी एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए नीति बनाई जाए। वहीं उपवर्गीकरण वाली जातियों को सो प्रतिशत आरक्षण नहीं दिया जा सकता, साथ ही वर्गीकरण तर्क संगत सिद्धांत पर होना चाहिए। कम प्रतिशत और ज्यादा जरुरतमंद साबित करने वाले आंकड़ो को एकत्र करने की जरुरत है।

बहरहाल, भूल से भी विपक्ष इसका विरोध करता है तो वह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा काम करता है। आरक्षण और जातिगत जनगणना के मुद्दे पर वह औंधे मुंह गिर सकता है।

देश में वर्षो पश्चात ऐसा निर्णय आया है, जिससे समाज सर्वस्पर्शी बनेगा क्योंकि पहले की धारणाओ से परे यह निर्णय परोक्ष रुप से संदेश देता है कि, पिछड़ापन वस्तुतः आर्थिक मुद्दों पर होता है।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पूरे देश की राजनीति को बदल देगा। जानकारो ने बताया कि, क्रीमी लेयर भारतीय राजनीति में एक पिछड़े वर्ग के उन सदस्यों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द है, जो सामाजिक, और आर्थिक और शैक्षणिक रुप से अत्यधिक उन्नत है।

अति प्रसन्नता वाले इस निर्णय में आरक्षण वर्गो के अंदर क्रीमी लेयर की पहचान होगी और वंचितो लाभ मिलकर आगे आने का मौका मिलेगा जिससे अज्ञानता का अंधकार दूर होगा और जागरुकता का अलख जागेगा।

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