नशे में युवा पीढी स्वयं के भविष्य को कर रही दुर्बल, निर्बल, और क्षीणकाय- जिम्मेदार निष्क्रीय, असहाय, और लापरवाह।
नशा नाश की जड़ है, नशा वो क्षणभर का बीमार सुख है जिसे पाकर युवा अपने आने वाले वंश को कमजोरी और बीमारी देने की तैयारी कर रहे हैं। नशे में लिप्त मनुष्य अपने अंदर सारी कुसंगतों और कुकर्मों को अपना लेता है। वर्तमान के दौर में समाज का 80 प्रतिशत से ज्यादा युवा नशे की जकड़ में जकड़ा हुआ है, जिसे अपनी जिम्मेदारी भर का अहसास नहीं है और वह बेपरवाह होकर बेसुध बेवजह की कल्पनाओं के वश में अपने को बंधा हुआ पा कर नशे की सड़ती हुई स्वतंत्रता की ओर कदम ताल करता है। जबकि वह यह नहीं जानता है कि, जिस घीनौनी स्वतंत्रता को वह अपनी सुख और शांति के साथ जोड़ रहा है वह स्वतंत्रता है ही नहीं, वह तो सुखद अनुभूति की एक प्रकार की परतंत्रता है। ऐसी परतंत्रता जिसमें आगे कुकर्मों का काला काल है। जिसमें अपराध की अंधा कुआं है। जिसमें कुल का नाश है, जिसमें जगत का विनाश है। जिसमें जीवन का अंत और परिवार की समाप्ती है।
मध्य प्रदेश का प्रत्येक जिला इस सफेद नशे के काले अंधकार में लिप्त है, यहां तक कि, जनजाति क्षेत्र में भी इसका प्रभाव है, यहां ग्रामीण शराब के नशे में तो शुरु से अपना जीवन व्यर्थ कर रहे है मगर अब यहां ड्रग्स और अन्य नशीली दवाओ का भी उपयोग होने लगा है, साथ ही साथ शहरी क्षेत्र में जिस गति से नशीली दवाओ और ड्रग्स ने अपनी पैठ जमाई है उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, इन शहरो में 20 से 25 वर्ष के युवा जो कि जैन समाज या ब्राह्मण या क्षत्रिय से आते है वे भी स्वयं को नशे में धुर्त कर रहे है। जानकार लोगों की माने तो ऐसा कोई समाज ही नहीं बचा होगा जिसका युवक नशीली दवाओ या ड्रग्स की चपेट में न हो। सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकु, या बाजार में मिलने वाले तम्बाकु पान मसाला, इनका सेवन तो छोटे छोटे बच्चें तक कर रहे हैं।
झाबुआ आलीराजपुर के हर नगर हर शहर यहां तक कि यह नशा गांव में भी पहुंच चुका है। लेकिन जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी निभाने में असहाय असक्षम से महसुस होते दिखाई दे रहे है। या फिर यह कहा जा सकता है कि, छोटे से लाभ के लिए वे एक बड़ी त्रासदी को आमंत्रण दे रहे है। यहां हम झाबुआ जिले की बात करे तो सर्व व्यापी है कि जिले में ड्रग्स कहां कहां से आ रही है और नशीली दवाएं किस दिशा से शहर में मुड़ती है और फिर यहां कि शराब कहां कहां जा रही है। इन सब स्थिति का स्तर देखे तो लगता है जैसे झाबुआ जिला नशे के व्यापार का गढ़ बना हुआ है।
इस नशे से लड़ने के लिए न तो प्रशासन के पास कोई विकल्प है न ही पुलिस इस तरफ अपनी लाठी घुमाती नज़र आती है। और जब ये दोनों पंगु की तरह दिखाई दे रहे होते है तो जनता को समझ जाना चाहिए कि राजनीति इसमें पुरी तरह से सम्मिलीत है और उन्हीं राजनैतिक लोगों के संरक्षण में सारी नशीली दवा और ड्रग्स जिले में आसानी से आ जाती है। तभी तो न पुलिस कोई कार्रवाही करती है न ही प्रशासन इस ओर किसी कार्यवाही के निर्देश देता है।
इस तुफान से लड़ने के लिए एक अस्त्र है मगर वो भी अपने मियां मिठ्ठु बना फिरता है और वो है सामाजिक संगठन… लेकिन ऐसे सामाजिक संगठनों को तो बस कुछ प्रसंसनिय कार्य कर के समाचार पत्रों में फोटो और अपने नाम से सरोकार होता है। बरसात के मौसम में 10 लोग मिलकर एक पौधा लगाकर फोटो खींचवाते है, इस तरह पौधे 50 लगा देगे मगर बारिश के बाद उन पौधो का क्या होता है सभी जानते है। ये सामाजिक संगठन समाज की मूल समस्या पर न तो कभी विचार करते है न ही कभी उस समस्या के समाधान पर विमर्श खड़ा करते है। नशे के कारण से जब भी कोई अप्रिय घटना घटती है तो समाज में अपना वर्चस्व कायम रखने वाले कुछ सामाजिक लोग ज्ञापन के माध्यम से खेद जताते है और अधिकारी के साथ हंसते मुस्कुराते फोटो खींचवाकर अपनी पीठ थपथपाते है।
हालांकि, प्रदेश मुखिया ने एक आदेश पारित किया है जिसमें नाइट कल्चर को समाप्त करने की बात कहीं गई है। लेकिन उसे अभी इंदौर जैसे बड़े शहरो में ही लागु किया जा रहा है, और उस पर भी कुछ विरोधी प्रवृति के जन मानस रोक लगाने के लिए एड़ी चौटी का जोर लगा रहे हैं। लेकिन प्रशासन या पुलिस चाहे तो अपने बल बूते पर जिले में नाइट कल्चर पर रोक लगा सकती है जिससे रात को शहरो के मुख्य चौराहों पर जो लोगों की भीड़ जमा होती है चाय, गुटखा, पान मसाला या बीड़ी सिगरेट के बहाने से वह समाप्त होगी तो बाहर से आने वाला नशा भी प्रवेश करने में बाधित होगा जो कि अधिकतर रात में सफर करता है।
बहरहाल, पुलिस की गश्त, चाक चौबंद के बावजुद नशीले पदार्थ शहरों की सीमा में प्रविष्ट हो जाते है। जिसकी भनक तक पुलिस को नहीं लगती या पुलिस उस भनक को जानबुझ कर देखना ही नहीं चाहती, क्योंकि राजनीति संरक्षण और उपहार आंख बंद कर लेने पर मजबूर कर देता है।
झाबुआ में एक नशा बाहर से शहर के भीतर घुस रहा है तो एक नशा पुलिस और आबकारी की चौकसी होते हुए भी जिले से बाहर गुजरात में बैखौफ जा रहा है।
नशे के व्यापार में लिप्त लोगों की और भी बहुत सी कहानी है, पुलिस का रवैया, प्रशासन की लापरवाही, नेताऔ का सर पर हाथ और सामाजिक संगठनों की निष्क्रियता है जिसके लिए अगले अंक की प्रतिक्षा करनी होगी।
बहुत ही सही लेख लिखें हों।
thank you