डिजिटल इंडिया में पिछड़ता प्रदेश, एआई के दौर में प्रदेश की 59 हजार विद्यालय कम्प्युटर विहिन।

रिंकेश बैरागी,

शिक्षा की जागृति और परिवर्तन के परिवेश में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होकर शिक्षा के अलख को जगाए रखना ही संसार के साथ चलना होता है अन्यथा कुछ कदम पीछे हुए तो बहुत पीछे रह जाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रहने का अर्थ है विकास की गति को धीमें कर देना क्योंकि भावी पीढ़ी शिक्षा के उस स्तर को छु नहीं पाएगी जहां अन्य देश पहुंच गए है। ऐसी ही स्थिती मध्य प्रदेश में सामने आई है जहां एआई के दौर में तेजी से आगे बढ़ती दुनिया और पिछड़ता हुआ प्रदेश दिखाई दे रहा है।

मध्य प्रदेश के करीब 59 हजार स्कूल में कम्प्युटर नहीं है, और अधिकारी, कर्मचारी, नेता, मंत्री, के जवाब गैर जिम्मेदाराना आ रहे हैं।केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रक्ट इंफारमेशन सिस्टम फार एजुकेशन (युडाइस) द्वारा जारी शैक्षणिक सत्र 2024-2025 की रिपोर्ट ने प्रदेश में डिजिटल इंडिया की सच्चाई सामने लाते हुए जांच प्रस्तुत की है जिससे पता चलता है कि, प्रदेश में एआइ की शिक्षा को देने के लिए जो पाठ्यक्रम लागु किया था उसे संचालन करने में प्रदेश पूरी तरह से पिछड़ा साबित हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेशभर में ऐसे 59,797 स्कूल है जहां पर कम्प्युटर पहुंचे ही नहीं है। इन सारे कम्प्युटर का बजट कहां गया किसने उसे समाप्त किया इस पर मंत्री और जिम्मेदार अधिकारी मौन बैठे है।

रिपोर्ट में और भी बहुत से खुलासे हुए है जिससे यह स्पष्ट होता है कि मध्य प्रदेश में शिक्षा की स्थिती अत्यंत दयनिय है, और मामला इतना गंभीर है कि एआइ की शिक्षा से वंचित होते विद्यार्थी तेजी से आगे बढ़ती कम्प्युटर की दुनिया में बहुत पीछे शर्म से सर झुकाए खड़े है। रिपोर्ट में और भी आंकड़े है जो जारी किए गए है वो चौकाने वाले है लेकिन इतनी कमी बताने पर भी उन जिम्मेदारो की आंखों में लाज, शर्म नाम की कोई चिज नहीं है सरकार का पैसा खा कर लोग डकार भी नहीं लेते।

रिपोर्ट के अनुसार 10,800 ऐसे स्कूल है जहां बिजली पहुंची ही नहीं है, और बड़े ही शर्म की बात है 15 हजार के करीब ऐसे स्कूल है जहां बिजली की आपूर्ति नहीं है। प्रदेश सरकार शिक्षा की जागृति के दावे तो बड़े-बड़े करती है मगर धरातल पर सुविधाए रेगती भी दिखाई नहीं देती। क्या प्रदेश सरकार द्वारा बिजली सुविधा या बिजली आपूर्ति के लिए कभी कोई बजट नहीं पास किया गया होगा, और यदी किया है तो वह बजट आखिरकार कहा गया। प्रदेश के बच्चें जिन्हें पढ़-लिख कर समाज को उच्च और श्रेष्ठ बनाना है उन्हें सुविधाओ से दूर रखा जा रहा है जबकि सरकार द्वारा उनके लिए पर्याप्त बजट दिया जा चुका है।

66 हजार 255 स्कूल जहां इंटरनेट नहीं है, अब कैसे विद्यार्थी डिजिटल इंडिया की नीव को शक्तिशाली कर पाएगे। 2301 विद्यालय बिना लाइब्रेरी के चल रहे हैं। वहीं 1 लाख 19 हजार 412 स्कूल जहां डिजिटल लाइब्रेरी नहीं है। 6213 स्कूल में खेल का मैदान नहीं है। 564 विद्यालय जहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। 1365 विद्यालय जहां पीने के पानी की सुविधा तक नहीं है और ऐसे में कैसे मध्यप्रदेश का विद्यार्थी शिक्षा का उचित अध्ययन कर उच्च शिक्षित होगा। असुविधाओ में शिक्षा कैसे फलीभूत होकर विकासशील होगी इसका उत्तर प्रदेश सरकार के पास नहीं है। 4 हजार से ज्यादा स्कूल ऐसे है जहां बालिकाओ के लिए शौचालय नहीं है अन्य 5 हजार स्कूल जहां बालको के लिए शौचालय नहीं है। 39 हजार से ज्यादा विद्यालय में बाउंड्री वॉल नहीं है। गंभीर बात तो यह है कि, ऐसे 10 हजार से ज्यादा स्कूल है जहां अभी तक बिजली नहीं है। रिपोर्ट के आंकड़ो को देखते हुए तो लगता है कि प्रदेश सरकार शिक्षा के नाम का पैसा अपनी जैब में रख कर भूलती जा रही है। जो रिपोर्ट इस वर्ष आई है उसमें जितनी कमियां पाई गई है क्या वो सारी कमी सिर्फ एक वर्ष की कमियां लगती है। नहीं बिल्कुल भी नहीं।

प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार कर अपने लाभ के लिए प्रदेश के बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है, उनके शिक्षा के अधिकार का हनन कर रही है, और इन सब में भागिरदार प्रदेश का प्रशासनिक अमला भी शामिल है। जिसके कारणवश प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिरते ही जा रहा है प्रत्येक वर्ष शिक्षा की उचित व्यवस्था के लिए बजट जारी किया जाता है मगर उसका उपयोग भ्रष्टाचारियों में बंट जाता है और बच्चें असुविधा की झोली ढोते हुए अगले दिन के सवेरे की प्रतिक्षा करते ही रह जाते हैं। प्रदेश में इतनी बुरी तरह से शिक्षा के आंकड़े सामने आएगे जिसकी कल्पना करना भी आसान नहीं है। सरकारी विद्यालयों में इतनी असुविधाओ के कारण ही प्रदेश के बच्चें शिक्षा ग्रहण करने के लिए मजबूरी में आकर निजी स्कूलों में जा कर अधिक से अधिक फीस जमा कर पढ़ते है और उनके माता-पिता कर्जा लेकर उस फीस को भरते हैं।

बहरहाल, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रक्ट इंफारमेशन सिस्टम फार एजुकेशन (युडाइस) द्वारा जारी शैक्षणिक सत्र 2024-2025 की रिपोर्ट ने इतना तो सबित कर ही दिया कि प्रदेश में शिक्षा का स्तर और उसमें सुविधा का स्तर धुमिल है। अब शिक्षा मंत्रालय को इस बात की भी जांच करनी होगी कि, प्रदेश सरकार द्वारा जो भी बजट शिक्षा और उसकी गुणवत्ता या विद्यालय की सुविधाओ को बढ़ाने के लिए जारी किया गया उस बजट का बंटवारा कहां-कहां हुआ। उसके बाद उन सभी भ्रष्टाचारियों से 10 गुना अधिक वसुली की जाए साथ ही साथ उन्हें सजा भी दी जाए, ताकि फिर कभी कोई बच्चों की शिक्षा और सुविधा का पैसा अपनी जेब में न रखे।

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