अंधकार में बहुत भटक लिए, अब प्रकाश में आएं
डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’ सदस्य -मध्यप्रदेश पाठ्य पुस्तक निर्माण एवं देखरेख स्थाई समिति एवं विद्या भारती मध्य क्षेत्र, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ “”””””””””'””””””‘”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
जन्म के बाद इंसान समाजीकरण प्रक्रिया से गुजरते हुए संसारिक जीवन में प्रवेश करता है। माता-पिता और समाज से संस्कारित होकर जीवन उन्नत करने की आदतें विकसित करता है। बाल्यकाल की दहलीज पार कर जैसे ही युवावस्था की चौखट पर पैर रखता है, जाने क्यों ! आधुनिकता की चकाचौंध में भटकने लग जाता है। कुछ संभ्रांत समाज के लोग तो इतना अधिक अंधेरी गली में प्रवेश कर जातें है कि उसका भविष्य ऊहापोह के जंजाल से बाहर निकलना कठिन ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। इसी प्रकार कई लोग अपनेे ही धर्म में बुराईयां निकालने में लग जाते हैं । पिछलेेे कुछ दसकों से धर्मपरिवर्तन का प्रचलन सा हो गया है। वर्ण आधारित सामाजिक व्यवस्था के चलते एक ही धर्म के अनुयायियों में मतभेद और मनभेद की खाई गहरी होती दिखाई देती है। षड्यंत्र के तहत आर्य और अनार्य का अनर्गल सिद्धान्त प्रतिपादित कर हिंदू धर्मावलंबियों में फूट डालने का प्रयास किया और भोली भाली जनता का शोषण होता रहा। इस प्रकार फुट डालो और राज करो की नीति सफल हुईं।
इस प्रकार की संकट की घड़ी से निकालने के लिए हमारे पौराणिक ग्रंथों में जीवन को तारने वाले सुत्र बताएं गए हैं। उन्हीं को आधार बनाकर हमारे पूर्वजों ने ऊहापोह भरें जीवन में से कुछ पल परिवार और समाज के बीच हंसी खुशी से व्यतीत करने के उद्देश्य से तीज़ -त्यौहार की रचना कर मानव को सुख की अनुभूति करने का प्रावधान किया है।
दीपावली, प्रकाश का त्योहार है, जो अंधकार पर विजय का प्रतीक है। यह पर्व हमें जीवन में सकारात्मकता, ज्ञान और प्रकाश की महत्ता का स्मरण करता है ।दीपावली का त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा है, जिनमें सबसे प्रमुख हैं भगवान राम की अयोध्या वापसी और देवी लक्ष्मी की पूजा।
सनातन धर्म के परम आराध्य भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर नगरवासियों ने हर्ष और उल्लास की अभिव्यक्ति में दीप प्रज्ज्वलित कर उनका स्वागत किया था।
धनतैरस के दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों और पशुधन को, द्वापर युग में इंद्र देव के प्रकोप से बचाव के लिए अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सबकी रक्षा की थी। तभी से इस पर्वत को पूजनीय माना गया है और हर साल कार्तिक मास की अमावस्या के बाद पड़ाव तिथि पर विधि-विधान के साथ गोवर्धन और पशुधन की पूजा की जाती है।
दीये न केवल भौतिक प्रकाश देते हैं बल्कि आत्मिक प्रकाश भी प्रदान करते हैं। यह इंसान को अपने जीवन में सच्चाई, न्याय और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। दीपावली का प्रत्येक दीप आत्मा के भीतर के प्रकाश का प्रतीक है।
‘अंधकार में बहुत भटक लिए, अब प्रकाश में आएं । इस कथन के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद दर्शन देते हैं कि , “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
इसी तरह अंधकार से प्रकाश में लाने के लिए अन्य महापुरुषों ने भी मानव को समय-समय पर आगाह किया है। श्री अरविंदो कहते हैं, “प्रकाश ही जीवन है, और अंधकार मृत्यु।” अर्थात बिना सोचे समझे हम इधर-उधर भटकते रहेंगे। दुसरे के धर्म, समाज और धार्मिक रीति रिवाजों में बुराईयां निकालने में जीवन व्यर्थ गंवाते रहेंगे तो हमारा जीवन नर्क ही रहेगा। ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी दीप की लौ हमें बताती है कि आत्मा का प्रकाश अज्ञान के अंधकार को मिटाता है।
अज्ञानता के कारण मानव जीवन व्यर्थ गंवाने वालों का भ्रम तोड़ते हुए भगवान महावीर स्वामी का संदेश जो आज भी उतना ही प्रासंगिक बना हुआ है, “अपने आप को जानो, यही सबसे बड़ा ज्ञान है।” महापुरुषों के प्रवचन हमें आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि की प्रेरणा देते है, जिससे हम अपने भीतर के प्रकाश को पहचान सकें। सनातन संस्कृति का उजियारा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है। गुरु नानक देव कहते हैं, “सच्चा त्योहार वह है जो मन को शुद्ध करे और आत्मा को ऊँचा उठाए।” यह गुरूवाणी हमें हमारी धार्मिक भावनाओं को जड़ों से जोड़ती है। परिवार और समाज के बंधनों को मजबूत बनाएं रखने की शिक्षा देती है।
आज से 500 वर्ष पहले अंधकार में डूबे मानव समाज को प्रकाश दिखाने के लिए संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि,”दीपक बूझै नहीं, जब लग घट में सोइ।संतो देखो जग बौराना, साचे हाथ न आई”।।जब तक शरीर में आत्मा का प्रकाश है, तब तक आध्यात्मिकता का दीपक बुझता नहीं है। हे ! संतों, देखो संसार पागल हुआ है । माया में फंसा है। इसलिए उसके हाथ सच्चाई नहीं आ रही।
बृहदारण्यक उपनिषद में जीवन के अंधेरे को भगाने वाला अप्रतिम कथन “तमसोमा ज्योतिर्गमय” अर्थात मुझे इस अज्ञान के अंधकार से बाहर ज्ञान एवं चेतना के अनुभव के लिए प्रकाश में ले चलो।
“इस प्रकार आज हम देखते हैं कि समय-समय पर महात्माओं ने इंसान को आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक चक्षुओं को खोलने विषयक व्याख्यान दिया है। अब आज के कलयुगी इंसान पर निर्भर करता है वह किस तरह अपना वर्तमान जीवन सफल बनाएं।महापुरुषों के सदगमय ज्योतिर्गमय विचार का सिंहावलोकन करने पर ज्ञात होता है कि -स्वामी विवेकानंद , “विश्वास करो, तुममें अनंत शक्ति है” ,श्री अरविंदो “मनुष्य एक संक्रमणकालीन प्राणी है, उसका लक्ष्य दिव्यता है”, महावीर स्वामी “जीओ और जीने दो”, गुरु नानक देव “एक ओंकार सतनाम — एक ईश्वर ही सत्य है”, कबीर “संतो देखो जग बौराना, साचे हाथ न आया” और भगवान श्री कृष्ण “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” जैसे सत्य वचन के अनुपालन में इंसान जीवन व्यतीत करने की चेष्टा करता है या फिर लोभ, मोह और मद के माया जाल में फंसकर काल के गाल में समा जाने की ओर बढ़ता है!
हमारा भारत जटिलताओं का देश है। आजादी के पहले और बाद में यहां कई तरह के उन्माद होते रहे हैं। जिसमें सबसे बड़ा उन्माद धार्मिक एवं जाति आधारित होता है। अनुभव बताता है कि हमारे समाज में विकास मार्ग से ज्यादा भटकावों के मार्ग का अनुसरण किया जाता है। युवाओं में उनके समाज के अगुवाओं द्वारा निजी स्वार्थ के कारण उनके अंदर जाति, भाषा , धर्म, प्रांत आधारित भेदभाव का प्रदूषण फैलाया जाता है। उन्हें दिशा भ्रम किया जाता है।इस प्रकार हम देखते हैं कि समाज में जो उन्नति होना चाहिए, वह उन्नति नहीं हो पा रही है। इसलिए सभी आयु वर्ग के लोगों से हृदय स्पर्शी विनती है कि –
“अंधकार में बहुत भटक लिए, अब प्रकाश में आएं ” अपना और अपने परिवार का वर्तमान और भविष्य सफल बनाएं !!