भा + भा = बाहर हुई भाजपा? – थांदला विधानसभा में बड़े-बड़े दिग्गज नेताओ के होते हुवें भी जिले की एक सीट भी नही ला पाई भाजपा। उठते सवालों पर चुप्पी या मौन स्वीकृति।
03 Aug 2022
जिला पंचायत चुनाव में जीत हार पर अभी भी चर्चा की जा रही हैं, वहीं हार पर विशेष रूप से समीक्षाओं का दौर भी चल रहा है। भाजपा में हार का गड्डा कहां से हुआ और क्यूं हो गया। कितने सारे सवाल है जिनके जवाबो पर प्रश्न चिन्ह भाजपाइयों को मुंह चिड़ा रहे हैं, मगर गुटबाजी के गणित में फंसी भाजपा को सवालो से क्या सरोकार।
दबी जुबां से कहने वाले सच्चे लोग अब भाजपा की हार को भाबोर भाबोर का मेलजोल बता रहे हैं। सवाल तो यहां, यह भी खड़ा हो जाता है कि जब पिछ्ली मर्तबा थांदला पेटलावद से जिले के लिये चार सीट भाजपा की झोली में थी तो ऐसा क्या हुआ कि थांदला में इस बार भाजपा को सीट नहीं मिल पाई। क्या अजजा मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष और प्रदेश मंत्री की वखत खत्म हो गयी या प्रसिद्धी पर पानी फिर गया।
विकास के पथ पर भाजपा लंगड़ा गयी या भाजपा के नेताओ की छवि धूमिल हो चुकी हैं, जो इस बार थांदला से सीट नही मिल पाई।
बुद्धिजीवी वर्ग में एक कटाक्ष और भी है कि, थांदला विधानसभा क्षेत्र में भाजपा पार्टी के बड़े-बड़े धुरंधर पदाधिकारी रहते है फिर भी एक सीट नही हो पायी। मसाला जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट भाजपा के पाले से बाहर हो कर कांग्रेस में आ गयी।
अजजा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष कलसिंग भाबोर, प्रदेश मंत्री संगीता सोनी, भाजपा जिलाध्यक्ष लक्ष्मण नायक। और भी बड़े-बड़े पदाधिकारी है जिनकी पकड़ मजबूत हैं लेकिन फिर भी भाजपा को सीट नहीं दिला पाये क्युंकि पकड़ उनकी जमीनी नहीं थी।
जिला पंचायत में भाजपा की हार का कारण अंतर्कलह और गुटबाजी के अलावा भी बहुत कुछ हो सकता हैं। क्युकिं सूत्रों के मुताबिक अजजा मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष, जिला पंचायत के जीते हुये दो विरोधी मुख्य प्रत्याशियों को प्रदेश में पार्टी के शीर्ष पद पर बैठे प्रदेश के प्रमुख्य व्यक्ति के पास ले गए थे। जब गोपनीय तरीके से यह हुआ तो सीधी बात है, दोनों जीते हुवें को पार्टी पक्ष के लिये मनाया होगा। या फिर उस बन्द कमरे में कौन सा बीज फुटा होगा। फिर ऐसा क्या हुआ कि खेल में सारी सारें पलट गयी।
क्या भाबोर की बात भाबोर से हो गई या भाई भाई के गीत गुनगुना दिये गये।
हालांकि, सवालों की सूची में सवालों का अंत नहीं, फिर भी कुछ मुख्य प्रश्नों के उत्तरो का दायित्व तो भाजपा का है ही। थांदला विधानसभा में बहुत से धुरंधर पदाधिकारियों के होने पर भी भाजपा को जिला पंचायत की सीट नहीं मिली। जब अजजा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष जिले के उन दो लोगों को प्रमुखता से हाई कमान तक ले गये फिर क्यूं कोई बात नहीं बनी और खजूरी गांव की सोनल भाबोर जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गई।
बहरहाल, गुटबाजी के गणित में गूँगी भाजपा गेम जीतते-जीतते हार गई। जब रेखा और मालू प्रदेश में पहुंच ही गये थे तो गड्डा किस गलियारे में हुआ। लोगों के आरोप में सांसद और मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष और जिलाध्यक्ष के मनमुटाव की भी खबरे भी हैं।
अब क्या भाजपा के वरिष्ठ जिले के बड़े-बड़े पदाधिकारियों से सवालों की सूची के कुछ कुछ सवाल करेगे या वो भो मौन को स्वीकार लेगे।