अतिथि विद्वानों का भविष्य अंधकारमय…

अब तो एक मात्र आजीविका का साधन है अतिथि विद्वान व्यवस्था :-” 1991 से लेकर 2017 तक नहीं हुई नियमित भर्ती “” एफिडेविट बाध्यता के कारण अन्य कोई रोजगार भी नहीं कर सकते “” अल्प मानदेय में करते आए हैं शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कार्य ” मध्य प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों के अतिथि विद्वान शैक्षणिक सत्र 2002 – 03 से समस्त शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कार्य पीरियड दर और वर्तमान में 2000 रूपए प्रति दिवस पर करते आए हैं। फिर भी इनका भविष्य अंधकारमय है। इन्हें उच्च शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार प्राचार्य द्वारा लिए गए कोर्ट एफिडेविट के अनुसार अन्य कोई कार्य नहीं करने की भी बाध्यता है।

सन 1991 से लेकर 2017 तक महाविद्यालयों में नियमित भर्ती नहीं की गई। 2017 के बाद 2022 और हाल ही में हुई सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2024 में ही सभी वर्गों के लिए भर्ती खोली गई। वर्ष 2017 की परीक्षा में मात्र 5 प्रतिशत, 2022 की परीक्षा में सवा दो प्रतिशत अनुभव अधिभार और 2024 की परीक्षा में 25 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण ( वह भी एक वर्ष और 25 वर्ष को बराबर ) और उम्र में छूट ही दी गई। जिसके कारण नाममात्र के अतिथि विद्वानों का पीएससी से चयन हो सका है। लगभग की उम्र 40 से लेकर 57 साल तक हो गई है। उचित समय पर भर्तियां नहीं होने का यह परिणाम है। अब उम्र में छूट देकर नवीन अभ्यर्थियों से कम्पिटीशन करवाना कहां तक उचित है। वर्तमान में 4700 अतिथि विद्वान कार्यरत हैं।पंचायत में की गई सभी घोषणाओं में से केवल 13 सीएल, 03 ओएल, ट्रांसफर सुविधा और 25 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण और मातृत्व अवकाश का ही आदेश जारी हुआ। 50 हजार हर माह वेतन, 10 प्रति अनुभव अधिभार, ट्रांसफर व नवीन नियुक्ति से फॉलेन आउट नहीं करना, शासन का अंग मानना आदि अब तक केवल घोषणा मात्र ही है। अनेकों राज्यों ने अतिथि विद्वान व्यवस्था के लिए कैबिनेट से उचित नियम बनाकर भविष्य सुरक्षा प्रदान कर दी है। लेकिन एमपी में अपनी एकमात्र आजीविका के साधन के लिए अतिथि विद्वान परेशान है।मध्य प्रदेश अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने कहा कि – वर्तमान में अल्प मानदेय में अतिथि विद्वान महाविद्यालय के सभी कार्य कर रहे हैं। उम्र जनित बीमारियों व पारिवारिक जिम्मेदारियों के बोझ के कारण पीएससी परीक्षा कैसे फ़ाइट कर पाएंगे। मोहन सरकार हमें भविष्य सुरक्षा प्रदान करें।

मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए बताया कि – सहायक प्राध्यापक परीक्षा में अतिथि विद्वानों को उचित समय पर उचित अवसर नहीं देने के कारण पर्याप्त अवसरों से वंचित रह गए। जबकि एमपी में ही आपाती और तदर्थ सेवा से सहायक प्राध्यापक बनाए गए हैं। लेकिन अतिथि विद्वान नेट, सेट, पीएचडी योग्यता लेकर भी सुरक्षित रोजगार पाने को तरस गए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *