अतिथि विद्वानों ने दूसरों का भविष्य बनाया, स्वंम के भविष्य के लिए भटक रहें अब।

” सहायक प्राध्यापक परीक्षा पास करने लायक नहीं बची उम्र ”

“ट्रांसफर और पीएससी की नियुक्ति से रोजगार पर खतरा

“नियमित पदों की एवज में अतिथि विद्वान वर्षों से कालखंड और प्रति कार्य दिवस पर शासकीय महाविद्यालयों में पढ़ाते आए हैं। इन्होंने अब तक लाखों करोड़ों छात्र – छात्राओं को ज्ञान बांटा है, जिससे वे अनेकों ऊंचे – ऊंचे पदों पर पहुंचे है। लेकिन अब अपने खुद के नियमितीकरण के लिए भटक रहे हैं। सरकार ने इन्हें चुनाव के समय सार्वजनिक मंच और पंचायत आयोजित करके आश्वासन भी दिए मगर सत्ता मिलने के बाद इन्हें भूला दिया जाता है। सहायक प्राध्यापक भर्ती में भी न्यायसंगत लाभ नहीं दिया गया। अब इनमें से अनेकों अतिथि विद्वानों की पीएससी पास करने की आयु नहीं बची है।

वहीं 10 जून तक इनका रोजगार ट्रांसफर से और उसके बाद एमपीपीएससी से सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति से छीन लिया जाएगा।

हरियाणा, बिहार, कर्नाटक आदि राज्यों ने ऐसी व्यवस्था में ही नीतिगत निर्णय लेकर भविष्य सुरक्षित कर दिया है। वहीं एमपी में सन 2002 से सतत सेवा देने के कारण 48 से लेकर 55 साल की आयु तक अतिथि विद्वान पार कर गए हैं। नेट, सेट, पीएचडी योग्यता होने व वर्षों का अनुभव होने के बाद अगर इन्हें बेरोजगार किया जाता है तो अब ये कहां जाएंगे। कैसे अपने परिवार का पालन पोषण करेंगे। मध्य प्रदेश अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने दुःख जाहिर करते हुए बताया है कि – शासन हमारे लिए अन्य राज्यों की तरह नीतिगत फैसला लेकर भविष्य संवारे। उच्च न्यायालय भी सरकार को अतिथि विद्वानों के लिए नीतिगत नियम बनाने का आदेश जारी कर चुका हैं। संघर्ष मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी इस बारे में कहा है कि – नाममात्र के मानदेय में अतिथि विद्वान सालों से सेवा देते आए हैं। जबकि काम नियमित फैकल्टी की ही तरह करते हैं। अब तो हमारे लिए मोहन सरकार को कैबिनेट से ठोस निर्णय ले लेना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *