100 शहरों के अफसर सीखेंगे इंदौर से, कैसे बना भिक्षुक मुक्त मॉडल।

इंदौर,

स्वच्छता में देश में नंबर वन बनने के बाद इंदौर ने भिक्षावृत्ति जैसी गंभीर सामाजिक समस्या पर भी अद्भुत काम किया है। यह पहला शहर बन गया है, जिसने सुनियजित रणनीति के माध्यम से खुद को भिक्षुक मुक्त बनाया है। अब इसी माडल को देश अन्य शहरों में लागू किया जाएगा। इसके लिए 11 जुलाइ को इंदौर में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। सामाजक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा स्माइल कार्यक्रम के तहत आयोजित इस कार्यशाला में देशभर के १00 शहरों से 350 अधिक अधिकारी हिस्सा लेंगे। इंदौर के अनुभवो और कार्यो को समझेंगे। कार्यशाला में इंदौर माडल को प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि अन्य शहरों में इसे लागू कर सफलता प्राप्त की जा सके।

इंदौर जिला प्रशासन ने शहर की सड़कों से भिक्षकों को हटाने के साथ-साथ उन्हें पुनर्वांस और रोजगार से जोड़ने के प्रयास किए। शहर की सड़कों से रेस्क्यू किए गए मिक्षुकों को रिहैब सेंटर में काउंसलिंग दी गई और स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि सितंबर 2024 से अब तक रेस्क्यू किए 1125 भिक्षुकों में से 800 रोजगार जुड़कर आमदनी अर्जित कर रहे हैं। रेस्क्यू किए गए 115 बच्चों को चाइल्ड केयर इंस्टिट्यूट में रखा गया है और लगभग 200 वयस्क भिक्षक सेवाधाम आश्रम उज्जैन में रह रहे हैं। भिक्षावृत्ति रेस्क्यू टीम के नोडल अधिकारी दिनेश मिश्रा का कहना है कि सतत अभियान चलाकर भिक्ष्कों को सडकों से हटाया गया और उनहें रोजगार से जोड़ने में मदद की गई है।

ये रही चुनौतियां”:

इंदौर शहर में भिक्षामुक्ति का अभियान आसान नहीं था। अभियान को सफल बनाने के लिए कलेक्टर आशीष सिंह ने स्वयं मोर्चा संभाला और महिला बाल विकास विभागों को अभियान चलाने की जिम्मेदारी सौंपी। रेस्क्यू के दौरान कई बार भिक्षक खुद को भिक्षुक मानने से इन्कार कर देते थे। ऐसे में टीम ने विडियो रिकार्डिंग से प्रमाण जुटाए। कई बार दल के साथ धकका- मुक्की और विरोध भी हुआ, पर टीम ने हार नहीं मानी और लगातार काउंसलिंग से मिशन को आगे बढ़ाया। बाहरी भिक्षकों को उनके राज्यों में वापस भेजा।

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