सोच का संक्रमण! राजनीति का क्षरण !!
बालारम परमार ‘हंसमुख’
राजनीति एक व्यापक शब्द है जो सरकार, शासन, और सार्वजनिक नीतियों से संबंधित है। यह शब्द यूनानी भाषा के ‘पोलिटिका’ शब्द से आया है, जिसका अर्थ है , नगर-राज्य के मामले। इसी के अनुरूप दुनिया के सभी देशों में राजनीतिक दल चुनाव में भागीदारी करते हैं। बहुमत आने पर सरकार बनाते हैं और अल्पमत में विपक्ष की भूमिका अदा करते हैं। प्रजातंत्र में राजनीति का उद्देश्य सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास राष्ट्रीय सुरक्षा, नागरिक अधिकारों को बढ़ावा देना है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति को लेकर दुनिया भर में राजनीतिक दल शासन व्यवस्था में भागीदारी निभाते हैं। दुर्भाग्य से हमारे देश की राजनीति में एक नई सोच की बीमारी फैल रही है, जिसका नाम है सोच का संक्रमण!!
भारतीय राजनीति में पिछले कुछ दशकों में परिवारवाद, क्षेत्रीयतावाद एवं जातिवाद सोच की संक्रमण बीमारी कोरोना वायरस की तरह इतनी खतरनाक होती जा रही है कि इससे न केवल नेताओं की सोच कुंठित हो रही है, बल्कि इसके कारण समाज कट्टर जातियों एवं वर्गों में विभाजित हो रहा है और प्रजातंत्र के निर्मल नभ को गंदी सोच वाली राजनीति से आच्छादित भी कर रही है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विपक्ष की राजनीति में इस संक्रमित बीमारी का प्रभाव सबसे ज्यादा दिखाई दे रहा है। नेता वोट बैंक को बढ़ाने के लिए अपने विरोधियों को बदनाम करने के लिए किसी भी स्तरहीन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जहां एक ओर सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर: कहा, वही अब ममता बनर्जी ने प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ को ‘मौत का कुंभ’ कह कर एक अरब सनातन हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुंचाने की कुचेष्टा कर डाली !!
कांग्रेस,समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल , तृणमूल कांग्रेस तथा शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट तथा एन सी पी शरद पवार गुट में इस प्रकार की सोच का संक्रमण ही है जो अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति के चलते उन्हें बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय की आस्था को अपमानित करने के लिए प्रेरित कर रहा है। शिवसेना उद्धव गुट का सोच कांग्रेसी रंग में ऐसा रंग गया है जिससे बाला साहब ठाकरे की सोच पर पानी फेर दिया !!
वामपंथी और द्रविड़ पंथी के साथ उठते-बैठते, खाते-पीते विपक्षी दलों में फैली इस बीमारी का एक प्रमुख लक्षण है – झूठ बोलना और तब तक बोलते रहना जब तक की जनता उन्हें चुनाव में सबक न सीखा दे !!
सत्ता सुख से वंचित राहुल गांधी, अखिलेश यादव, लालू यादव, उद्धव ठाकरे, ओवैसी भाईजान, शरद पवार तथा अरविंद केजरीवाल सहित तमाम नेता झूठ बोलने में माहिर हो गए हैं। वे अपने वादों को पूरा करने के बजाय, झूठे वादे करके लोगों को बरगलाने की कोशिश करते हैं। यह राष्ट्र विरोधी सोच का संक्रमण ही है जिसने इनकी विकासवादी सोच को लाइलाज़ बना दिया है !!
पिछले डेढ़ साल से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से लेकर महाकुंभ तक विपक्ष द्वारा नित्य नए अनर्गल अफवाह फैलाकर अपनी रूग्ण मानसिकता को लाइलाज़ बना दिया है? इसी संदर्भ में योगी आदित्यनाथ का विधानसभा में दिया गया वक्तव्य ‘ संक्रमण का तो इलाज किया जा सकता है परंतु संक्रमण सोच का नहीं ‘ विपक्ष पर हु-ब-हू लागू होता है !!
वर्तमान 39 दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन का अलोकतांत्रिक सोच यह दर्शाता है कि हमारे देश में राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि अब वहां से उपर उठना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, क्योंकि यह एक राजनीति से संक्रमित मानसिक बीमारी है। लेकिन मतदाताओं को सजग रहने की जरूरत है । जनता को इन नेताओं से सवाल पूछने चाहिए, कि आखिर किस मकसद से ये ऐसा कर रहे हैं? उन्हें जवाबदेह बनने की सलाह देते रहना चाहिए। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों का झूठ सुन सुन कर कान पक गए हैं। हर मतदाता की अंतरात्मा रह रह यही कहती है कि अमृतोत्सव काल में सभी राजनीतिक दल को मिलकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए काम करना चाहिए।
इस तरह, आम जनता इन नेताओं की सोच के संक्रमण का इलाज कर सकती हैं, और करना पड़ेगा। अब राजनीति को एक सकारात्मक दिशा में ले जाने की आवश्यकता है । इसके लिए जनता जनार्दन को एकजुट होना होगा, और अपने धर्म ,समाज और राष्ट्र हित में काम करने वाले राजनीतिक दलों के भाग्य विधाता बनना होगा।
नेताओं की सोच का यह संक्रमण जो हमारे सनातन समाज की संस्कृति, सभ्यता और राजनीति को प्रभावित कर रही है।
भारतीय प्रजातंत्र के निर्मल नभ का तकाज़ा है कि भारत को विश्व गुरु बनने के रास्ते में रोड़े अटकाने वाली सोच रखने वाले लोगों और नेताओं को धूल चटाना होगा । हमारी नई पीढ़ी की सोच को घुन लगने से बचाना होगा !!