सीमा से सटे शहरों में शासन प्रशासन की आंखों के सामने से होती है सीमा पार शराब तस्करी।

रिंकेश बैरागी,

प्रदेशभर में नशे का करोबार इस तरह फैला है जैसे वायुमंडल में कार्बनडाय आक्साइड, चारो ओर नशे में युवा नशीली दुनिया बना रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को स्वतः ही नष्ट कर रहे हैं। समाज में रहने वाले समाज के दुश्मन वो ज्यादा है जो इन बच्चों के हाथों में सफेद नशा थमाते हैं और देश धर्म और समाज के उससे भी ज्यादा दुश्मन वो लोग है जो इस नशे को बनाते हैं।

हाल ही में एटीएस गुजरात, एनसीबी दिल्ली की संयुक्त कार्यवाही में भोपाल की बंद फेक्ट्री में 907 किलो ड्रग्स बरमाद की गई जिसका मुल्य 1814 करोड़ रुपए है। साथ ही इसके 5 हजार किलो कच्चा माल बरामद किया। पुलिस ने जिस आरोपी को पकड़ा है उसका नाता भाजपा के साथ जुड़ा हुआ प्रतित हो रहा है, वहीं आरोपी के फोटो जिसमें वह प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के साथ है वो सभी फोटो वायरल भी हो रहे हैं।

गांधी जयंति के अवसर पर जिस तरह मद्य निषेध सप्ताह मनाकर विद्यालयों और महाविद्यालयों में विभिन्न प्रतियोगिता आयोजित कर बच्चों को मदिरा से होने वाली हानियों के बारे में बताया और समझाया। वैसे ही मादक पदार्थ से होने वाले नुकसान के बारे में अभियान चलाया जाना चाहिए। ताकि विद्यार्थियों को शराब से शरीर को होने वाली क्षति के बारे में पता चलने के साथ ड्रग्स के नुकसानो के बारे में भी जानकारी हो जिससे वे स्वतः ही शराब और मादक पदार्थ या ड्रग्स से दूरिया बना ले।

प्रदेश सरकार गांधी जयंति पर ड्राइ डे मनाने के साथ सप्ताहभर स्कूल कॉलेज में मद्य निषेध की विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन करती है, लेकिन इस पूरे सप्ताह में शराब के अवैध परिवहन या अवैध व्यापार पर किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाती न ही इतने वर्षों में इस पर कोई कार्य योजना बनी है। यह चिंतन का विषय है, मध्यप्रदेश के समीप राज्य गुजरात जहां मदिरा प्रतिबंध है वहां आसानी से शराब मिल जाती है। गुजरात राज्य में शराब पहुंचाने में मध्यप्रदेश के वो जिले शिर्ष पर है जो सीमा से सटे हुए है। इन जिलो से प्रतिदिन लाखो रुपयो की शराब का अवैध परिवहन किया जाता है, बताते है कि, इस अवैध परिवहन में सरकार के नुमांदों के साथ प्रशासन के बाशिंदों का सहयोग पर्दे के पिछे से पूरा-पूरा रहता है। वहीं पुलिस की जानकारी से अछुता ऐसा एक भी रास्ता नहीं है जहां से गुजरकर शराब गुजरात नहीं जाती, लेकिन जेब में हाथ और आंखों में माया का नशा कार्रवाही करने में लापरवाही करवा देता हैं।

मध्यप्रदेश में मुख्यतः दो जिले जिनका उल्लेख शराब तस्करी में प्रथम स्थान पर है इन जिलो में पुलिस के हाथ जेब में रहते है तो आबकारी के हाथ पीछे बंधे होते है। झाबुआ और आलीराजपुर गुजरात सीमा के समीप बसे मध्यप्रदेश के जनजाति क्षेत्र के जिले है जहां जंगल की अधिकता और जनजाति समाज में जागरुकता का अभाव इसी का लाभ उठाते हुए अवैध शराब के व्यापारी शराब का अवैध परिवहन करते है।

शराब ठेकेदार इन जिलो की मदिरा दूकानों का टेंडर जब भरते है और बोली में यह दूकाने लाखों की नहीं करोड़ो की बिकती है। यह विषय चिंतनिय है ऐसे जिले जिसमें भोलेभाले जनजाति के लोग रहते है जो शिक्षा के क्षेत्र में पिछे है जो विकास के अभाव में है जिनको जागरुकता का फल दूर दिखाई पड़ता है, ये भोलेभाले अपनी मदिरा अपने महुए के फल से तैयार करते हैं उन जिलो के सीमा से सटे नगरो में स्थित शराब दूकाने आसमान छुने वाले भाव पर बिकती है और उन दूकानों पर जनसंख्यां के अनुरुप अधिक मदिरा का सप्लाई होता है फिर वे दूकाने हर दिन उजाले में शराब के नये ट्रक खाली करती है और हर रात अंधेरे में शराब की ट्रक भरकर गुजरात सीमा में प्रवेश करवाते हैं।

हालांकि, शराब के अवैध व्यापारियों के राजनैतिक संबंध की मजबूती का आधार धन होता है अनेक कार्यक्रमों में सहभागिता और सहयोग से शराब व्यापारी सामाजिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर समाजसेवी बनकर अपना नया स्थान बनाते है। सरकार को मद्य निषेध सप्ताह के दौरान अवैध शराब के व्यापार, व्यवसाय, और परिवहन को पूर्णतः प्रतिबंधित करना चाहिए और यह कठोरता के साथ किया जाना चाहिए तभी तो युवाओं में मद्य निषेध सप्ताह के कारण मदिरापान से दूर सुखद पथ पर चलने के सुअवसर मिलेगे।

बहरहाल, कोई कम्बल ओढ़ खीर पी रहा है, की कहावत को चरितार्थ करते सीमा से सटे हुए जिलो में अवैध शराब व्यापार और परिवहन पर खुलकर सहयोग करते शासन प्रशासन और राजनैतिक लोग अगर चाहे तो आने वाली पीढ़ी को मद्य निषेध सप्ताह को सफलता पूर्वक पूर्ण करने का श्रेय ले सकते है। जिस प्रकार से भोपाल की बंद फेक्ट्री में ड्रग्स का चालु कारखाने को बंदकर आरोपी को पकड़ने में एटीएस गुजरात और एनसीबी दिल्ली के साथ एम.पी. पुलिस का सहयोग लगा वैसे ही अवैध शराब परिवहन पर भी कड़ी कार्रवाही की जानी चाहिए।        

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