सामाजिक जीवन में युवाओं की आत्महत्या व्यक्तिगत समस्या कैसे? विद्यार्थी वर्ग की कमजोर मानसिकता का कारण सामाजिक ।
समस्या को समझने से पहले ही हम उसके समाधान की तरफ जाएगे तो शायद ही हम समस्या के मूल समाधान तक पहुंच पायेगे। विद्यार्थियों का प्रतियोगिता परीक्षा में असफल होने पर स्वयं को दोषी मानते हुए आत्महत्या कर जीवन लीला समाप्त कर लेने के कितने कारण हो सकते हैं इस बात पर न तो विस्तृत रूप से चर्चा हो पाई है और न ही ये हमारे शोध के विषयों में शामिल है।
बीते दिनों कोटा शहर में अध्ययनरत एक विद्यार्थी बालिका ने सुसाइड नोट में माता-पिता से माफी मांग कर आत्महत्या कर ली, क्यूकीं वो जेईई नहीं कर पाई। इस घटना के पहले नीट की तैयारी कर रहे युवा विद्यार्थी ने असफलता के परिणाम स्वरूप जीवन को काल का ग्रास बना दिया।
आंकड़ो के आंकलन अनुसार विगत एक दशक में भारतीय युवाओं की आत्महत्या में निरंतर वृद्धि हो रही हैं, क्योंकि National Crime Record Bureau एनसीआरबी की रिपोर्ट के पिछले दशक में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या में 70% बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसे ही अमेरिका में बीते दो दशक में आत्महत्या की दर 62% की वृद्धि हुई है।
ऐसे कौन से कारण है जिनको जानने पहचानने में हम गलती कर रहे हैं। हम बच्चों के मन की महत्त्वाकांक्षाओं का मरण कर अपनी उम्मीदों की आकांक्षाओं को लादकर थोप देते हैं जिसके बोझ तले वो अपनी अनकही पीड़ा लेकर माता पिता के स्वप्न अनुरुप चलने लगते है जब वह इस बोझ को ढो नहीं पाते हैं तब वह खुद को खुद से हारा हुआ महसूस करते हैं फिर एक दिन जब वो माता-पिता के सपने को पूरा नहीं कर पाते तो वह माफी मांग कर स्वयं की जीवन लीला समाप्त कर देते हैं।
मनोचिकित्सक कहते हैं कि, ‘हम व्यक्तिगत स्तर पर लक्षणों को कम करने पर बहुत ध्यान देते हैं, लेकिन प्रणालीगत कारणों की अवहेलना कर रहे हैं जो की सामाजिक संरचना की वास्तव में अनदेखी कर रहे हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, “जिस आत्महत्या को हम अमूमन व्यक्तिगत क्रिया मानकर विश्लेषित करते हैं वह एक सामाजिक क्रिया है।” समाजशास्त्री एमिल दुर्खीम की लिखी पुस्तक सुसाइड में गहन शोध के बाद स्पष्ट किया है कि सामाजिक तानाबाना और परिस्थितियां किसी को भी आत्महत्या करने पर विवश कर देती है। इसी अनुसार बच्चों पर सफलता का दबाव बनता है यह दबाव अभिभावक की तरफ से होता है साथ ही जिसमें परिवार के लगभग सभी सदस्य शामिल होते हैं, रिश्तेदार के साथ जान पहचान के सामाजिक लोगों का भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दबावों भरा संदेश होता है। ऐसे में विद्यार्थी अवसाद में चला जाता है। अवसाद आंतरिक होता है जिसकी जड़ अकेलापन है जिसमें समाज का दबाव लक्ष्य के प्रति भ्रम बना देता है। ये जो उपलब्धी की जिद, जो की विद्यार्थियों पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का दबाव बनाती है जिससे वो उस प्रतिस्पर्धा की रेस में सम्मिलित हो जाते हैं जिसमें जिवन से अधिक सफलता को देखा जाता है। अभिभावक बच्चों को मशीन बना देते है, हर समय पढ़ाई का बोझ जिसमें बच्चों को जरा भी फुर्सत नहीं होती, तब ये विद्यार्थी आत्मसात करते है कि, उनकी उपलब्धियों के अलवा उनका कोई मूल्य नहीं हैं।
इन विद्यार्थियों पर अभिभावक के साथ सम्पूर्ण समाज अगल-अलग स्तर पर एक दबाव समूह की तरह कार्य कर रहे हैं। लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के इस दबाव में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है। उस पर भी यह दुखद बात है कि अभिभावक व्यवस्थाओं को कोसते है और भूल जाते हैं कि बच्चा अपने आप में विशेष है। आत्महत्या का कारण सिर्फ उस एक बच्चें की कमजोर मानसिक स्थिति नहीं होती है। कारण तो वह भी है जो बच्चों को बचपन से कमजोर बनाते आए हैं।
हालांकि अभिभावक अवसाद में जाते हुए अपने बच्चें की अनुभूतियों को अनुभूत करे और अपनी आंखों से उपलब्धि की पट्टी हटाकर अपने बच्चों में पनपती प्रतिभा को उभारते हुए पढ़ाई की पराकाष्ठा पर पहुंचाए।
बहरहाल सफलता खुशी का मापदंड नही है, क्योंकि अगर ऐसा होता तो बहुत से सफल विद्यार्थी या उच्च स्तरीय अधिकारी आत्महत्या का रास्ता नहीं अपनाते।