सरकार ने 50 हजार फिक्स वेतन का आदेश घोषणा के बाद भी नहीं निकाला
” 11 सितंबर 2023 को भोपाल में हुई थी अतिथि विद्वान पंचायत “
“झूठी दिलासा देकर किया जा रहा है सालों से शोषण “
एमपी के उच्च शिक्षा विभाग के 1336 कॉलेजों में विगत 25 सालों से अतिथि विद्वान सेवा दे रहे हैं। लेकिन सरकार की झूठी दिलासा और वादों ने इनको कहीं का नहीं छोड़ा है। पूर्व शिवराज सरकार में इनके लिए 11 सितंबर 2023 को मुख्यमंत्री निवास भोपाल में एक पंचायत बुलाई गई थी। उस समय हायर एजुकेशन मिनिस्टर वर्तमान सीएम डॉ. मोहन यादव ही थे। जिसमें प्रतिमाह 50 हजार रुपए फिक्स वेतन देने की घोषणा हुई थी। सरकारी सेवकों के समान अन्य सुविधाओं की भी घोषणा हुई थी। मगर 6 अक्टूबर 2023 को जब आदेश निकाला गया तो उसमें पूर्व से जारी 1500 रूपए प्रति कार्य दिवस मानदेय में 500 रूपए की वृद्धि करके आदेश जारी कर दिया गया। यानी इनको दैनिक मजदूर ही बना रहने दिया गया।
अतिथि के लिए कार्यभार लेकिन परमानेंट के लिए कुछ नहीं :
वहीं किसी विषय में तीन सहायक प्राध्यापक के रिक्त पदों में यदि एक परमानेंट या अतिथि विद्वान से भरा है तो उसमें दो पदों को यूजीसी मापदंड के अनुसार विद्यार्थियों की संख्या होने पर भी प्राचार्य कार्यभार का बहाना बनाकर फ्रीज करके रखते हैं। जिससे अतिथि विद्वान उन पर सेवाएं नहीं दे सकते हैं। मगर उन पदों को नियमित फैकल्टी या नवीन नियुक्ति से भर दिया जाता है। उनके लिए कोई कार्यभार उच्च शिक्षा विभाग नहीं देखता है। अनेकों विधि कॉलेजों में एक भी विद्यार्थी का एडमिशन नहीं होने के बावजूद हाल में विधि के सहायक प्राध्यापकों का ट्रांसफर किया गया है। उनका वेतन किस कार्यभार से निकाला जाता है। सोचनीय प्रश्न है।
हमारे पदों को भरा हुआ माना जाए :
मध्य प्रदेश संयुक्त अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश संयोजक डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने इस संबंध में बताया कि – अतिथि विद्वानों के लिए फिक्स वेतन का आदेश मोहन सरकार को वादें के मुताबिक तत्काल करना चाहिए और हमारे पदों को भरा हुआ मानकर उन पर न तो ट्रांसफर हो ओर न ही नवीन नियुक्ति।
संयुक्त मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी इस बारें में कहा कि – अतिथि विद्वान विगत 25 सालों से सरकार की लापरवाही और शोषणकारी व्यवस्था में रहकर ठगे जा रहे हैं। हम तो अध्यापन के अलावा परीक्षा ड्यूटी, मूल्यांकन कार्य, पेपर सेटिंग आदि कार्यों को भी बखूबी पूरा करते हैं। वहीं अतिथि विद्वानों के लिए भी कार्यभार का बंधन खत्म होना चाहिए।