संकट में अतिथि विद्वानों के साथ उनके बच्चों का भविष्य।

” कोई भी राष्ट्रीयकृत बैंक नहीं देती अतिथि विद्वानों को लोन”

प्रदेश में जारी नहीं हुए दूसरें राज्यों की तरह सुरक्षित भविष्य के नियम ” ‌

मध्य प्रदेश में 17 जून और उसके बाद मेल पर हुए नियमित प्रोफेसरों के ट्रांसफर से 400 से 500 अतिथि विद्वान प्रभावित हुए हैं। जिसके कारण उनके बच्चों का भविष्य भी संकटमय दिखाई दे रहा है। अनेकों अतिथि विद्वानों ने अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करवाकर फीस तक जमा करवा दी है। अब फॉलेन आउट होने के कारण उनको अन्य जिलें या तहसील के महाविद्यालयों में अगले महीने तक अगर रिक्त पद पर च्वाइस फिलिंग द्वारा मेरिट से चयन होता है, तो ही एडमिशन दिला पाएंगे। 18 जून तक हुई च्वाइस फिलिंग में भी दूर – दराज के महाविद्यालयों में पद दिखाएं गए हैं।

वास्तव में पिछली शिवराज सरकार की अतिथि विद्वान पंचायत में दी गई सौगातें अब इनके लिए दिखावटी ही लग रही है। ज्ञातव्य है कि इनके परिवार की रोजी – रोटी एक मात्र अतिथि विद्वानी ही है। लेकिन जब यह किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में लोन लेने के लिए जाते हैं, तो बैंक मैनेजर इन्हें यह कहकर लोन अथवा ऋण देने से मना कर देता है कि आपकी नौकरी प्रति कार्य दिवस पर है, फिक्स भी नहीं है। अथवा लम्बे समय तक चलने की संभावना नहीं है। इसलिए हम आपको लोन नहीं दें सकते। वहीं इनके सुरक्षित भविष्य के नियम हरियाणा, बिहार, उप्र, पश्चिम बंगाल आदि की तरह अब तक जारी नहीं किए गए हैं। जिससे 4810 अतिथि विद्वानों का रोजगार संकटग्रस्त है। मध्य प्रदेश अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश संयोजक डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने इस संबंध में बताया कि वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की उपस्थिति में 11 सितंबर 2023 को अतिथि विद्वान पंचायत में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि अतिथि विद्वानों की संख्या ज्यादा नहीं है। इतने को तो हम प्रदेश के हृदय में समां सकते हैं। हम इनको सेवा से बाहर नहीं करेंगे, बल्कि इन्हें शासकीय सेवकों की तरह सुविधाएं देंगे। लेकिन अब अतिथि विद्वानों पर सरकार का ध्यान नहीं है।संघर्ष मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी इस बारें में बताया कि 25 साल से अतिथि विद्वान व्यवस्था जारी रहने से हम आर्थिक और मानसिक रूप से पिछड़ चुके हैं। पीएससी से सहायक प्राध्यापक भर्ती में कोई विशेष लाभ नहीं मिलने से नाममात्र के अतिथि विद्वान ही चयनित हो पा रहें हैं। इसका सबसे बड़ा कारण पिछली भर्तियों में अतिथि विद्वानों को लाभ नहीं देना और अधेड़ उम्र है।

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