शिक्षक दिवस के अवसर पर… ** अध्यापक से मन की बात।


राष्ट्र निर्माता ख्यातिप्राप्त! बाल मन परत खोलने में माहिर!!
अभाव में जीवन व्यापन के आदि !!!
समाज- सरकार द्वारा साल में एक बार याद करने वाले !!!!

आदरणीय अध्यापक जी ,
शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर आपके द्वारा पढाए गये विद्यार्थियों एवं अभिभावकों की ओर से सादर प्रणाम।
कुशलोपरांत समाचार यह है कि आपने अपनी शिक्षण कला के माध्यम से अभी तक जो अध्यापन कार्य करवाया है, उसके प्रति मैं आपका संपूर्ण शिक्षा जगत की ओर से आभार एवं साधुवाद प्रकट करता हूं।
आदरणीय अध्यापक जी, शिक्षक जीवन में मैंने देखा परखा की हम अध्यापक समाज को केवल “शिक्षक दिवस” के दिन ही दिखावे के लिए मान सम्मान संबोधन सुनने को मिलता है। बाकी संबोधन शब्द से आप बखूबी वाकिफ हैं!! सेवा निवृत्ति के बाद समाज, सरकार और शिष्यों से इस तरह के रूखेपन के बारे में हृदय टटोलने पर जो उनके उदगार व्यक्त हुए। उन्हीं आभा- रेखाचित्रों को जनमानस के समक्ष उजागर करने के उद्देश्य से ऐसे ही मन में आया कि भारतीय अध्यापक समुह को पत्र के माध्यम से मन की बात सांझा करूं।
मन की बात कहने के पीछे मंशा बस इतना ही है कि हम अध्यापक शिक्षक दिवस के प्रकाश में आत्मावलोकन करें कि जाने अनजाने में कहां चुक हो रहीं है ? यद्यपि आप का पक्ष इसमें शामिल नहीं नहीं है, तद्यपि आज का दिन आत्मसम्मान का है। इसलिए एक पक्ष नज़र अंदाज़ किया गया है।
अध्यापक जी,
हमारी कक्षाओं में अभी भी छात्रों के लिए शिक्षक की ओर से कक्षा शिक्षण में वह नवाचार नहीं हो रहे हैं जिसकी 21वीं सदी और नई शिक्षा नीति की सफलता के लिए जरूरी है। कितना अच्छा हो की रोज अध्यापक अपने कक्षा कक्ष के सफलतम अनुभव से कक्षा शिक्षण में पठन-पाठन करें और आपस में पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से बांटें। हमारे सफलतम अनुभव को साझा करने से
अन्य अध्यापकों को अपनी शिक्षण शैली में सुधार करने का अवसर मिलेगा और हमारे विद्यार्थी लाभान्वित होंगे। नवाचार की फुहार यहां वहां बिखरेगी तो हो सकता है और नए नवाचार अंकुरित हों। सेवा निवृत्त प्राचार्य विचार यह है कि हैं हम शिक्षक समुदाय की ओर से सार्थक पहल हो जाए तो सरकार को भी आईना दिखाया जा सकता है।
कक्षा कक्ष शिक्षण में बाल मन परत खुलने लग जाएगी तो कौन जाने कोई फिर से अब्दुल कलाम मिसाइल मैन बन जाए। कौन जाने आज हमारी कक्षा मैं बैठा विद्यार्थी कल महान वैज्ञानिक बन कर मानवता की सेवा करने लग जाए। सेवा निवृत्त प्राचार्य विचार तो यहां तक कहता है कि अध्यापक गण मन में ठान लें कि वे अपनी शिक्षण कला में माहिर हो कर रोज़ विद्यालय में कुछ नया करेंगे तो हो सकता है अध्यापक समाज की
अपनी धूमिल प्रतिष्ठा पुनः लौट आए और अपना एक संसार बन जाए। जिसमें हमारे अपने बाग- बगीचे हों। फुल फुलवारी हों और हां,हों इठलाती बलखाती सुंदर सुंदर तितलियां।
अध्यापक साथियों, बस यूं ही बैठ गया आज सुबह-सुबह कक्षा शिक्षण में नवाचार की बात करने। क्या करूं शिक्षक हूं ना।
आदरणीय अध्यापक जी मैंने पाया है कि हम शिक्षक एक सुंदर संसार की रचना करने में पूर्ण सक्षम है। अमेरिका में चार कामयाब शिष्यों से मिलकर, उनसे बातचीत करके अनुभव है कि कक्षा का हर विद्यार्थी उच्च कोटि का ज्ञानार्जन कर्ता है। इस अध्यापक की सोच अच्छी लगे तो उठा लो कुछ नया करने का बीड़ा।उठा लो कलम और हो जाओ शुरू अपने अनुभव को इधर उधर ग्रुप में बिखेरने के लिए। शिक्षा जगत आपका ऋणी रहेगा। लो, मैं भी शिक्षक दिवस पर मन की बात कहां से कहां ले गया !! भावावैग में कहां-कहां बह गया?क्या कहने लग गया? गुरु गोविंद दोनों खड़े। मैं तो गुरु के ही लागु पांव। यही तो गुरु है जो करवाता है साक्षात्कार ज्ञान का, विज्ञान का। धरती का, आकाश का और समुद्र के पाताल का। अरे हां याद आया गुरु वशिष्ठ , गुरु ही तो द्रोण गुरु चाणक्य भी तो गुरु ही थे। गुरु तो साक्षात ब्रह्म है। अरे पंचतंत्र के रचयिता गुरु विष्णु शर्मा ही तो थे जिन्होंने नीति शास्त्र पठन-पाठन के माध्यम से मित्र भेद , मित्र लाभ, लब्ध प्रणाश और अपरीक्षित कारक की जानकारी पशु- पक्षी के माध्यम से शिक्षाप्रद बनाकर महिलारोप्य के राजा अमर शक्ति के उदंड ,अज्ञानी, मूर्ख और अविवेकी दुर्जन नीत पुत्र बहु शक्ति , अग्र शक्ति और अनंत शक्ति को मात्र छः महीने में विद्वान, गुणी और कलाओं में पारंगत करने में सफलता पाई थी।प्यासे कौवे को घड़े से पानी पीना सिखलाया था। आजकल तो हमारे पास अच्छे-अच्छे आधुनिक साधन हैं नवाचार से पढ़ाने के लिए।
जय हो अध्यापक संसार की।
जय हो कक्षा कक्ष शिक्षण सरकार की।।
विनित
एक सेवा निवृत्त अध्यापक
डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख ‘
मेरीलैंड, संयुक्त राज्य अमरीका से


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