यातायात प्रबंधन प्रणाली पाठ्यक्रम का एक विषय बने।स्कूल में एक दिन की समझाईश यातायात जागरुकता के प्रति ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर।

रिंकेश बैरागी,

सड़क हादसे जिंदगी पर भारी पड़ते है, भारत में सड़क हादसों में होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिस पर सरकार से प्रत्येक प्रयास असफलता की सुची को लंबी कर रहे हैं, उसी प्रकार परिवहन की परिभाषा और यातायात की जागरुकता शुन्य के आसपास है। परिवहन के प्रकारो और यातायात की जानकारी से अनभिज्ञ नागरिक अधिकतर सड़क हादसों में अपनी जान गवां रहे हैं जिनके ऊपर परिवार की प्रमुखता से जिम्मेदारी होती है, इस कारण हादसे में होने वाली मौत से परिवार पलभर में पूरी तरह से टुट जाता है, परिवार आर्थिक रुप से असक्षम होकर असमय अनेक समस्याओं से घिर जाता हैं, और जब उत्पादक व्यक्ति सड़क हादसे में काल का ग्रास बन जाता है तब देश को क्षति पहुंचने के साथ अर्थव्यवस्था को भी हानि उठानी पड़ती है।
सरकारों ने सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए बहुत से नियम, कानून भी बनाए किंतु जिस स्तर पर सफलता प्राप्त होनी थी वो नहीं मिल पाई। सड़क दुर्घटना की समस्या पर चिंतन कर समाधान भी किए परंतु प्रतिफल कुछ नहीं निकला और हादसों में वृद्धी होती रही, लोग दुर्घटना का शिकार होकर अपनी जान गवांते रहें। सरकार द्वारा समझाईश के सारे उपाय फीके रहते हैं, इसके लिए तो सरकार को ऐसे ठोस कदम उठाने होगे जिससे सड़क हादसों की संख्या में कमी आए, और प्रतिवर्षानुसार दुर्घटनाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी न हो।
राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा माह की शुरुआत 1 जनवरी से हो चुकी है, केन्द्र और राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा के प्रति जनता के मध्य जागरुकता कार्यक्रम की सूची लंबी है, जिला स्तर से तहसील स्तर पर यातायात प्रमुख स्कूली बच्चों को एक घंटे में यातायात के बारे में समझा कर आ रहे हैं और सोचते हैं की पुलिस ने यातायात समझाईश के क्षेत्र में बहुत ही उन्नत कार्य किया है, परंतु पुलिस का यह समझाईश कार्यक्रम पूर्ण रुपेण निर्रथक प्रतित होता है, क्योंकि किसी भी एक दिन में कोई भी विद्यार्थी एक घंटे की समझाईश को ग्रहण नहीं करता, और यदि विद्यार्थी ग्रहण करता भी है तो आने वाले एक घंटे के पश्चात उसके मष्तिष्क से पुलिस द्वारा बताए गये नियम कानून अस्थिर विचार की तरह समाप्त हो जाते हैं।
विद्यार्थियों के मन मष्तिष्क में यातायात के प्रति जागरुकता बन जाए वें परिवहन की परिभाषा को समझ जाए… इसके लिए सरकार को यातायात के नियम कानून को विद्यालयिन पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना होगा… आवश्यक है कक्षा 6वीं से 12 तक सामाजिक विज्ञान या हिंदी विषय में एक पाठ यातायात की जागरुकता पर हो जिसके प्रश्न परिक्षा में भी पुछे जाए। इससे इतना तो होगा की बच्चों में यातायात की समझ आने लगेगी और एक पीढ़ी ऐसी आएगी जिसमें यातायात को सुचारु करने का ज्ञान होगा।
सड़क सुरक्षा के लिए सरकार ने निश्चिंत ही अनेक समाधान खोजे किंतु वे सब समस्या के आसपास तक ही सीमित रह गये, क्युंकि देशभर में देखा जाये तो कुछ ही वर्षों में सड़क दुर्घटना में 15 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई है। सड़को की खराब स्थिति, ओवरलोड वाहनों की आवाजावी, सवारी बसों का अनिश्चित समय और अनिश्चित स्थान पर असमय रुक जाना, वाहनों की अनियंत्रित गति, छोटे सवारी वाहनों का नियमों को तोड़कर लहराते हुए वाहन चलाना, बाइकर्स का बेहिसाब गति से चलना, और मदिरापान कर या करते हुए वाहन चलाना, साथ ही मोबाइल फोन पर बात करते हुए वाहन चलाना… इन मुख्य कारणों से अधिकांश दुर्घटनाएं होती है और ऐसी होती है कि कईबार तो व्यक्ति स्पॉट पर ही मृत हो जाता है।
अब सरकार के प्रयासो में समस्याओं का समाधान सफलता के आंगन तक भी नहीं पहुंचता और वह समाधान पंगु हो जाता है। बहुत से कानून बनाने के बाद भी तंत्र में कहीं न कहीं कमी रह जाती है फिर उस कानून के अनुरुप पुलिस किसी को पकड़ती है तो नेता मंत्री या रसुखदार फोन लगाकर छुड़वा देता है।
कुछ हादसें ऐसे भी होते है जहां दोपहिया वाहन, और पैदल चलने वालो की दुर्घटना में मौत हो जाती है वहां सड़क यातायात इंजीनियरिंग और नियोजन के समय ध्यान नहीं दिया जाता इसीलिए समस्या बनी रहती है। उसी प्रकार निगरानी के बुनियादी ढांचे के अभाव में वाहन दुर्घटनाग्रस्त होते है, ऐसे 75 प्रतिशत बाइकर्स जो दुर्घटना के शिकार होते है वे हेलमेट नहीं लगाने के कारण होते है। फिर सबसे बड़ी समस्या यातायात नियमों के उल्लंघन की है। इस पर आंकड़ो की माने तो 76 से 80 प्रतिशत सड़क हादसे ओवर स्पीड, रॉग साइड चलाना, अनियंत्रित गति से ओवरटेक करना जैसे बहुत से यातायात के नियमों के उल्लघंन से होते है। इसके बाद आपातकालिन चिकित्सा सुविधा का भी देश में अभाव है। वहीं ड्राइविंग स्कूल की कमी भी उन समाधानों में से है जो सफलता के आंगन में नहीं पहुंचते।
बहरहाल, यातायात की जागरुकता कार्यक्रम और समझाईश के साथ परिवहन की परिभाषा समझाने के लिए स्कूलो में एक दिन की कक्षा मायने नहीं रखती, देखा जाए तो जागरुता के विषय में विद्यर्थियों के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। सरकार इस पर अवश्य ही विचार करे कि, यातायात नियमों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करे जिससे आने वाली पीढ़ी यातायात के प्रति जागरुक होकर सशक्त हो और देश में होने वाली दुर्घटनाओं में कमी आए।

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