”मीना बाजार: पुरानी परंपरा का पुनर्मूल्यांकन”

डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’

देश के अनेक शहरों में प्रति वर्ष लगने वाला “मीना बाजार” एक ऐसा आयोजन है जिसकी जड़ें क्रूर और सनातन संस्कृति को धूमिल करने वाले मुग़ल शासकों के इतिहास से जुड़ी है। कालांतर में जिन्हें अक्सर सनातनी परंपरा के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी कुछ और है!!

👉🏻अकबर की अयास्सी और मीना बाजार का उद्गम👇🏻

आयने अकबरी में लिखा हुआ मिलता है कि मीना बाजार की शुरुआत मुगल बादशाह अकबर ने की थी। यह आयोजन उनकी अयास्सी (नौरोज़) के लिए आयोजित किया जाता था, जिसमें विभिन्न समुदायों की महिलाएँ और कारीगर अपनी कला और हस्तशिल्प का प्रदर्शन करते थे। यह एक ऐसा मंच था जहाँ अकबर अपनी प्रजा के साथ संवाद करता था और खुबसूरत स्त्रियों को अपने हरम के जबरजस्ती उठवाता था। इस धिनौनी आदत का उसकी औलादों ने बादस्तुर जारी रखा।

👉🏻 बना राजे रजवाड़ों की शान शौकत👇🏻समय के साथ, यह परंपरा हिंदू राजे रजवाड़ों के बीच भी प्रचलित हुई, जिन्होंने इसे अपनी शान और शौकत दिखाने का एक माध्यम बनाया। यह आयोजन उनकी सामाजिक और अंग्रेजों के सामने आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित करने का एक तरीका बन गया था।

👏एक पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता✒️

आज जब हम कुछ शहरों में मीना बाजार का सरकारी खर्चे पर आयोजन को देखते हैं, तो यह जरूरी है कि हम इसके ऐतिहासिक संदर्भ और इसके पीछे के उद्देश्यों की असलियत समझें। इसे सीधे सनातनी परंपरा के रूप में मानने से पहले इसके उद्गम और विकास को समझना आवश्यक है।मुग़ल शासक के पहले मीना बाजार लगने का पौराणिक ग्रंथों में कहीं वर्णन नहीं मिलता है। अलबत्ता देवी-देवता की जात्रा, पंचकोसी परिक्रमा, कांवड़ यात्रा, सिंहस्थ कुंभ मेला जैसे हिन्दू धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। हम सब सनातन धर्मियों के लिए 2025-26 *संघ शताब्दी वर्ष* एक ऐसा अवसर है जब हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को तोड़ने की साजिशों को गहराई से समझ सकते हैं और इसके विभिन्न पहलुओं पर शोध एवं बोध परख विचार कर नयी पीढ़ी को आगाह कर सकते हैं।

सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक परिप्रेक्ष्यमीना बाजार जैसे आयोजन हमारी सनातन सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा नहीं हैं। कुछ सौ वर्षो पहले मुगलों और अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए आयोजनों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है? हमें यह समझना होगा कि कैसे ये परंपराएँ हमारे हिन्दू समाज को प्रभावित करती हैं और कैसे हम इन्हें अपने वर्तमान और भविष्य के संदर्भ में देख सकते हैं!!मीना बाजार एक ऐसा आयोजन है जो मुग़ल शासक के घिनौने इतिहास और भद्दी संस्कृति के कई पहलुओं को समेटे हुए है। इसे समझने के लिए हमें इसके पीछे की मानसिकता को जानना होगा और इसे एक व्यापक दृष्टिकोण में देखना होगा। पिछले 100 सालों में संघ प्रवर्तक युग पुरुषों और हिंदू सम्राटों ने आक्रांताओं द्वारा सोची समझी रणनीति के तहत स्थापित अनेक बुराइयों को दूर करके भारतीय समाज को एक आदर्श समाज बनाने का प्रयास किया है और वर्तमान में परम् पूज्य डाॅ मोहन भागवत के मार्गदर्शन एवं सानिध्य में अनवरत जारी है।

ऐसे हम लेखकों और पत्रकारों का भी धार्मिक और सामाजिक कर्तव्य बनता है कि “रज में से भी तज” निकाल कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अंग बनाने का प्रयास करें। ऐसा आग्रह है।

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