माँ…यह एक शब्द नहीं सम्पूर्ण सृष्टि है। किसी बच्चे के लिए उसका सब कुछ

बांगरू-बाण श्रीपाद अवधूत की कलम से।

माँ….!!!!

…मां… सृष्टि के हर जीव के हृदय में बसे प्रेम, त्याग और ममत्व का दूसरा नाम है। जन्म के क्षण से लेकर जीवन की हर साँस तक मां अपने बच्चे के लिए ही जीती है….!!! मां के बिना बचपन नहीं होता लेकिन जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा होने लगता है मां के प्रति उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन होने लगता है…!!!नीचे लिखा घटनाक्रम प्रत्येक के जीवन में आया होगा। उसका अनुभव भी किया होगा लेकिन इस दृष्टिकोण से नहीं सोचा होगा। आज यह लेख पढ़कर एक बार शांति से अपने बचपन से लेकर आज तक के प्रवास को याद कीजिए। अगर आपकी मां जिंदा है तो कम से कम उनके प्रति आपके दृष्टिकोण में सोच में परिवर्तन आवश्यक है।वह नन्हा शिशु जब पहली बार आंखें खोलता है, तो सबसे पहले मां की गोद में ही उसे सुरक्षा और स्नेह का पहला आश्रय मिलता है। बचपन में बच्चा जब गिरता है, तो मां का हाथ उसे थाम लेता है। जब वह रोता है, तो मां का आँचल ही उसके आँसू पोंछता है। जब वह बीमार पड़ता है, तो मां की जागती रातें और ममता भरे स्पर्श से वह स्वस्थ होता है। बच्चे की पहली मुस्कान से लेकर पहली सफलता तक—हर पल में मां की आंखें प्रेम से भर जाती हैं, और उसका हृदय गर्व से भीग जाता है।जीवन के प्रारंभिक काल में मां ही बच्चे का संसार होती है। उसकी गोद में ही बच्चा अपनी पहली हंसी, पहला सपना और पहली आशा पाता है।

1. क्या किसी ने मेरी माँ को देखा है…??मुझे मेरी माँ चाहिए…कहाँ गयीऽऽ… मेरी माँ…??आयु – 2/5 वर्ष….

2. माँ…!!! माँ…!!! तुम कहाँ हो…??मैं स्कूल जा रहा हूं…!!!अच्छा टाटा…!!!मुझे स्कूल में तुम्हारी बहुत याद आती है…माँ….!!!!आयु – 5/7 वर्ष….

3. माँ…!!! लव यू…!!!आज टिफ़िन में क्या है…??मैडमजी ने आज स्कूल से बहुत सारा होमवर्क दिया है…!!! मेरी उसमें सहायता करोगी न माँ….!!!आयु – 7/9 वर्ष

4. माँ…!! माँ…!! माँऽऽआ…!!! माँ.. कहाँ है… पिताजी…?? स्कूल से घर आने पर अपनी माँ को न देखकर…!!!आयु – 9/12 वर्ष

5. माँ, आवोना मेरे पास बैठो ना…!!! मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं…!!!आयु-13/17 वर्ष

6. माँऽऽ….माँ… आप तो मेरी बात को समझो ना…!!! मेरी बात को कोई नहीं समझता। सब अपनी अपनी ही चलाते हैं। मुझे कुछ भी करने नहीं देते…!!!पापा से कहो कि मुझे पार्टी में जाने दें…!!!उम्र – 18/20 वर्ष

समय बीतता है, और वही नन्हा बच्चा धीरे-धीरे युवावस्था में कदम रखता है। उसकी दुनिया बदलने लगती है। स्कूल, दोस्त, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के बीच मां की गोद धीरे-धीरे पीछे छूट जाती है। मां देखती है कैसे उसका लाड़ला अब उसकी बातों से ज्यादा अपने रास्ते चुनने लगा है।

7. अरे… माँ …??? दुनिया बदल रही है…!!!तुम नहीं समझती, तुम कुछ नहीं जानती…!!!तुम तो रहने ही दो…..आयु – 20/228. ये क्या माँ…. जब देखो तब आप मुझे सिखाते ही रहती हो। अब मैं कोई छोटा बच्चा थोड़ी हूं….????आयु-23/27 वर्ष

युवावस्था में कदम रखते ही बच्चा अपने जीवन की नई राह खोजने लगता है। विवाह के बाद जिम्मेदारियाँ और नए रिश्ते उसे अपनी मां से दूर कर देते हैं। पत्नी का प्रेम और जीवन की भागदौड़ में वह मां के साथ बिताए पल भूलने लगता है…!!!

9. देखो माँ… वह मेरी पत्नी है…!!! तुम उसे समझती क्यों नहीं हो…???उसे सिखाने के बजाय, अब आप अपनी मानसिकता बदलें…!!!समय बदल गया है आपके समय जो होता था अब वह नहीं होता इसलिए आप भी अपने आपको बदल लो….!!! वह नए जमाने की लड़की है तुम्हारे जैसी दकियानूसी नहीं….!!!उम्र – 27/30 वर्ष

10. अरे… माँ… वह भी तो एक माँ है….!!!वह अपने बच्चों की देखभाल कर सकती है….!!!हर बात का बतंगड़ मत बनाया करो….!!!आयु – 30/50 वर्षऔर उसके बाद…माँ से कभी पूछा ही नहीं…माँ कब बूढ़ी हो गई, उसे पता ही नहीं चला…!!!माँ आज भी वैसी ही है… उसके लिए उसका बेटा आज भी वही नन्हा मुन्ना बच्चा है। उसे वह उतना ही प्रेम करती है….!!! जितना छुटपन में करती थी….!!! बदल तो बच्चा गया है….!!! पढ़ लिख जो गया है….!!! समझदार हो गया है इसलिए तो अपनी माँ को ज्ञान सिखा रहा हैं….!!! उम्र के साथ ही बच्चों का उसके प्रति व्यवहार बदल गया…!!!

फिर एक दिन…माँ . . माँऽऽ . . . . !!!! माँऽऽआ…..!!!!आप चुप क्यों हो…माँऽऽआ…??बोलो ना…??लेकिन माँ कुछ नहीं कहती.क्योंकि वह हमेशा के लिए चुप हो गई हैं..!!!!.उम्र – 50/60 वर्ष

बुढ़ापा धीरे-धीरे दस्तक देता है। शरीर कमजोर होता है, कदम थरथराने लगते हैं। अब मां को सहारे की जरूरत होती है—शारीरिक ही नहीं, भावनात्मक भी। वह चाहती है कि जैसे उसने अपने बच्चे को गोद में उठाया था, वैसे ही अब उसका बच्चा उसे थामे। पर यही वह समय होता है जब बच्चा दूरियों में खो जाता है—कभी जिम्मेदारियों के बोझ में, तो कभी नई प्राथमिकताओं में वो बूढ़ी माँ… 2 साल से 50 साल तक के बदलाव को समझ नहीं पाई…मां बूढ़ी हो जाती है, लेकिन उसका स्नेह कभी बूढ़ा नहीं होता। उसके हृदय के आंगन में आज भी वह बच्चा वैसा ही नन्हा है…!!! जैसा जन्म के दिन था क्योंकि एक मां के लिए उसका बेटा 50 साल की उम्र तक पहुंचने पर भी बच्चा ही रहता है।

बेचारी अंत तक बच्चे की छोटी-छोटी बातो के लिए वैसे ही तरसती रहती है, जैसे बचपन में उसके लिए तरसती थी…वह जन्म देती है…. पालती है….. संवारती है….. और अंत में चुपचाप, बिना शिकायत के….. अपने बच्चे को उसकी राह पर भेज देती है….और लड़का…??उसे एहसास तब होता है जब उसकी माँ चली जाती है…!!!उसने कौन सा अमूल्य खजाना खो दिया है…!!!लेकिन फिर रोने से कोई फायदा नहीं… इसलिए जब भी समय मिले… अपनी मां के पास कुछ पल ज़रूर बैठिए। उसके झुर्रियों भरे चेहरे पर हाथ फेरिए, क्योंकि वही हाथ हैं जिन्होंने बचपन में आपको सहारा दिया था। मां की आंखों में देखिए — वहां अब भी वही ममत्व, वही प्रेम चमकता है।अगर आप बूढ़े माता-पिता को समझ सकते हैं, तो समझ लीजिए…!!! उनका बड़बड़ाना उनका जरा जरा सी बात पर हाइपर होना….!!!

यह उनकी अधिक आयु के कारण हैं…. वे जानबूझकर ऐसा नहीं करते हैं…. सोचो जिसने संपूर्ण जीवन हर काम को बड़ी ईमानदारी से निष्ठा से बहुत अच्छे तरीके से किया हो जब उसके सामने वही काम कोई दूसरा उतनी अच्छी तरह से नहीं कर पा रहा है। तो, क्या उनका टोकना स्वाभाविक नहीं है…??? सोचिए…??? टोकता वही है जो परफेक्शनिस्ट होता है….!!! आप तो नए ज़माने के हो आपको सब चलता है इसलिए आपकी सोच भी चालू हो गई है…. लेकिन बूढ़े मां बाप ने जीवन में सब चलता है ऐसा कभी नहीं किया। अगर वो चलता है वाली वृत्ति अपनाते तो आप आज जिस मुकाम पर है…. उस मुकाम पर पहुंच ही नहीं पाते चिंतन कीजिएगा….!!!

आपकी बड़ी बड़ी डिग्रियां सब फेल है…. सब बेकार है…. शुद्ध सात्विक प्रेम के आगे और वह शुद्ध सात्विक प्रेम आपको सिर्फ और सिर्फ अपने मां-बाप से ही मिलता है अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलता।….!!!

थोड़ी तो कदर कीजिए उनकी….!!!अपने माता-पिता का सम्मान करो…!!!उनकी सेवा करो…!!!

अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव व्रत

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