मंत्रपुष्पांजलि का धार्मिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से अर्थ एवं विश्लेषण।
*बांगरू-बाण* श्रीपाद अवधूत की कलम से।
हमारे सनातन हिंदू धर्म में आरती करने के बाद मंत्र पुष्पांजलि गायी जाती है। यह यजुर्वेद, ऋग्वेद व अथर्व वेद के मंत्रों की ऋचाएँ हैं। इसमें देवताओं की स्तुति उनकी महिमा का गुणगान और समर्पण का भाव व्यक्त किया गया है। यह केवल एक परंपरा या रीति रिवाज नहीं है बल्कि धार्मिक आस्था, आध्यात्मिक उन्नति सामाजिक एकता एवं वैज्ञानिक स्वास्थ्य लाभ का सुंदर संगम है।
संस्कृत में होने के कारण अधिकांश लोग इसका अर्थ समझ नहीं पाते और मंत्रपुष्पांजलि को भी धार्मिक मंत्रपठन मान बैठते है। मंत्रपुष्पांजलि का असली अर्थ जानेंगे तो चकित रह जाएंगे। यह मंत्रपुष्पांजलि एक राष्ट्रगीत है, विश्वप्रार्थना है। उसमें राष्ट्रीय एकात्म जीवन की आकांक्षा है। हमारे ज्ञानी ऋषिमुनियों ने बहुत सोच समझकर मंत्रपुष्पांजलि गाने का संस्कार किया है। इस मंत्रपुष्पांजलि का अर्थ सामान्य जनों तक पहुँचे यह इस आलेख का प्रयोजन है।
मंत्रपुष्पांजलि का धार्मिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से अर्थ समझते हैं।
1. ध्वनि और तरंगों का प्रभाव
मंत्र पुष्पांजलि में वेद-मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, मंत्रोच्चारण करते समय ध्वनि तरंगें (sound vibrations) उत्पन्न होती हैं। नियमित और दीर्घ उच्चारण (जैसे “स्वाहा”, “स्वधा”, “नमो”) मस्तिष्क की अल्फ़ा वेव्स को संतुलित करते हैं। इससे साधक के भीतर शांति, ध्यान और एकाग्रता की स्थिति पैदा होती है।
2. श्वास-प्रश्वास पर प्रभाव
मंत्रोच्चारण के समय गहरी साँस लेकर लयबद्ध रूप से छोड़ना पड़ता है।यह क्रिया प्राणायाम है। इससे फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है, ऑक्सीजन की आपूर्ति अच्छी होती है और मानसिक तनाव कम होता है।
3. पुष्प अर्पण का वैज्ञानिक पक्ष
पुष्पांजलि में फूल अर्पित करना अनिवार्य है। वैज्ञानिक दृष्टि से फूलों में सुगंधित अणु (Aromatic Compounds) होते हैं, जो मस्तिष्क को शांति और स्थिरता देते हैं। जब हम देवता को पुष्प अर्पित करते हैं, तो उसके माध्यम से सकारात्मक भावनाएँ (positive affirmations) प्रकट होती हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में इसे साइको-थेरैप्यूटिक इफ़ेक्ट (Psychotherapeutic Effect) कहा जाता है।
4. ब्रह्मांडीय ऊर्जा का सिद्धांत
मंत्र पुष्पांजलि में सूर्य, अग्नि, जल, वायु आदि प्राकृतिक शक्तियों का आवाहन होता है। वैज्ञानिक रूप से ये ही जीवन के मूल आधार तत्व हैं: सूर्य → ऊर्जा का मुख्य स्रोत (photosynthesis, vitamin D) अग्नि → रूपांतरण और ऊर्जा का प्रतीक जल → जीवन का 70% वायु → श्वसन और प्राण-शक्ति इस प्रकार यह मंत्र वस्तुतः मानव और प्रकृति के सहजीवन का घोषणापत्र है।
5. न्यूरोसाइंस और भावनात्मक असर
जब समूह में एक स्वर से मंत्र पुष्पांजलि बोली जाती है, तो सामूहिक अनुनाद (resonance) पैदा होता है। इससे साधकों के मस्तिष्क की तरंगें एक-दूसरे से मेल खाती हैं और सामूहिक एकता और ऊर्जा का अनुभव होता है।आधुनिक विज्ञान इस प्रभाव को “Neuro-synchronization” कहता है।
मंत्र पुष्पांजलि आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी शरीर, मन और समाज को संतुलित करने वाला एक समग्र अभ्यास है। ध्यान रहे कि मंत्रों का मूल स्वरूप प्रतीकात्मक है, जिसे आधुनिक विज्ञान से जोड़कर समझना आवश्यक है। मंत्रपुष्पांजलि में कुल चार श्लोक है। तो आइये अब जानते हैं इनका सरल हिन्दी अर्थ एवं इनका विश्लेषण।
श्लोक १ : ॐ यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथामानि आसन् तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याःसंति देव: यजुर्वेद 31.16 श्लोक का अर्थ -देवों ने यज्ञ के द्वारा यज्ञरुप प्रजापति का पूजन किया। यज्ञ और तत्सम उपासना के वे प्रारंभिक धर्मविधि थे। जहां पहले देवता निवास करते थे (स्वर्गलोक में) वह स्थान यज्ञाचरण द्वारा प्राप्त करके साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते है। विश्लेषण:-यज्ञ = ऊर्जा-परिवर्तन (Energy Transformation)।यह श्लोक कॉस्मोलॉजी (सृष्टि-उत्पत्ति) का प्रतीक है। “धर्म” यहाँ नैसर्गिक नियम (Laws of Nature) का द्योतक है – जैसे गुरुत्वाकर्षण, ऊर्जा-संरक्षण। संदेश: ब्रह्मांड सतत् ऊर्जा-विनिमय से चलता है और सब नियमपूर्वक बंधा है।श्लोक २ : ॐ राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने। नमोवयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् कामाकामाय मह्यं। कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय/ महाराजाय नमः ऋग्वेद 10.187.1 श्लोक का अर्थ – हमारे लिए सब कुछ अनुकूल करने वाले राजाधिराज वैश्रवण कुबेर की हम वंदन करते है। वो कामेश्वर कुबेर मुझ कामनार्थी की सारी कामनाओं को पूर्ति प्रदान करें! विश्लेषण:- कुबेर = धन और संसाधनों के संरक्षक। प्राचीनकाल में “धन” केवल सोना-चाँदी नहीं, बल्कि अनाज, जल, भूमि, खनिज और ऊर्जा था। यह श्लोक हमें संसाधनों का संतुलित वितरण और प्रबंधन (Resource Management, Economics) का संदेश देता है।**विज्ञान कहता है कि संसाधन सीमित हैं, अतः कुशल प्रबंधन आवश्यक है
श्लोक ३ : ॐ स्वस्ति। साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं। समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात्। पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळ इति। अथर्व वेद 19.71श्लोक का अर्थ – हमारा राज्य सर्व कल्याणकारी राज्य हो। हमारा राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो। यहां लोकराज्य हो। हमारा राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित हो। ऐसे परमश्रेष्ठ महाराज्य पर हमारी अधिसत्ता हो। हमारा राज्य क्षितिज की सीमा तक सुरक्षित रहें। समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा दीर्घायु अखंड राज्य हो। हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित रहें! विश्लेषण:- यह श्लोक सामूहिक समृद्धि, स्वास्थ्य और भू-राजनीतिक संतुलन की कामना है। “सार्वभौम” = सर्वजन के लिए न्याय और अधिकार। वैज्ञानिक दृष्टि से यह सामाजिक विज्ञान (Social Science) और स्वास्थ्य विज्ञान (Public Health) का सूत्र है। “समुद्रपर्यंताया” → भौगोलिक एकता और प्राकृतिक संसाधनों का साझा उपयोग।
श्लोक ४ : तदप्येषः श्लोकोभिगीतो। मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।। ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ 8.21श्लोक का अर्थ – इस कारण हेतु ऐसे राज्य के लिए और राज्य की कीर्ति गाने के लिए यह श्लोक गाया गया है। अविक्षित के पुत्र मरुती, जो राज्यसभा के सर्व सभासद है ऐसे मरुतगणों द्वारा परिवेष्टित किया गया यह राज्य हमें प्राप्त हो यहीं कामना! विश्लेषण:-मरुत = वायु और वायुमंडलीय शक्तियाँ। वायु ही जीवन का आधार है – श्वसन, प्रदूषण नियंत्रण, जल-चक्र, कृषि सब पर निर्भर। यहाँ वायु को “विश्वसभा का अध्यक्ष” कहा गया → अर्थात् Environment is Supreme। आधुनिक विज्ञान भी मानता है – यदि वायु असंतुलित हुई तो जीवन असंभव। इस प्रकार, यह केवल धार्मिक पाठ नहीं बल्कि कॉस्मिक साइंस, इकोलॉजी, इकॉनॉमिक्स और सोशल साइंस का अद्भुत संलयन है। संपूर्ण विश्व के कल्याण की, आकांक्षा और सामर्थ्य की सबको पहचान करवाने वाली यह विश्वप्रार्थना है। सर्व मतपंथियों के प्रति, सर्व मतपंथों की प्रगति के लिए सबको समान संधि होने वाले, सर्वहितकारी राज्य तभी संभव है जब संपूर्ण मानवजाति में सहिष्णु समरस एकात्मता की भावना होगी। अतः अब आप जब भी यह मंत्र पुष्पांजलि गाएंगे तो इसका यह विश्लेषण आपके मनोमस्तिष्क में गूंजेगा और यह गाते समय आपकी श्रद्धा, आस्था और अधिक दृड़ होगी।
अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त