भारत की पाकिस्तान पर विजय -क्या सीजफायर ट्रंप की मध्यस्थता से हुआ? इस प्रश्न का सीधा और स्पष्ट उत्तर है – नहीं!
मध्यस्थता किसे कहेंगे?
मान लीजिए कि एक मोहल्ले में दो पड़ोसी नित्य प्रतिदिन झगड़ते रहते हैं। मोहल्ले के बाकी बाशिंदे उन्हे जब तब, सुलह-शान्ति की सलाह देते रहते हैं। अन्ततः दोनों पड़ोसी एक दिन आपस में बातचीत कर ही लेते हैं। इस पर कोने वाले चांद मियां पूरे मोहल्ले में यह कहते फिरते हैं कि मैंने सुलह करा दी! जबकि, एक पड़ोसी कह रहा है कि कोई मध्यस्थ नहीं था, सामने वाले ने मुझसे बात की और हम दोनों ने ही सुलह की। दूसरा मोहल्ले के चांद मियां से लेकर शुक्ला जी तक कईं लोगों को सलाह के लिए शुक्रिया अदा करता है। इसका मतलब क्या हुआ? ट्रंप इन्हीं चांद मियां की भूमिका में हैं।
प्रेस वार्ता में भारतीय DGMO ले. जनरल राजीव घई ने स्पष्ट किया है कि उन्हें पाकिस्तान के DGMO का फोन आया था, जिस पर दोनों पक्षों में सीजफायर को लेकर सहमति बनी। इस दौरान कोई तीसरा पक्ष शामिल नहीं था। यह मसला द्विपक्षीय है, और दोनों पक्षों की सहमति से ही निर्णय लिया गया है। इस वक्तव्य का पाकिस्तान के DGMO द्वारा कोई खण्डन नहीं किया गया है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री द्वारा अमेरिका, तुर्की, चीन, सऊदी अरब, कतर सहित कुछ देशों को इस सुलह के लिए शुक्रिया अदा किया गया है। इनमें से ट्रंप के अतिरिक्त किसी भी नेता द्वारा मध्यस्थता का श्रेय नहीं लिया गया है।
स्पष्ट है कि, विश्व में कहीं भी युद्ध जैसी परिस्थिति बनती है, विशेषतः दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों में, तो विश्व की सभी शक्तियां चिंतित होंगी और अपने अपने स्तर पर शांति सुलह के लिए आग्रह भी करेंगी! यह मध्यस्थता नहीं कहीं जा सकती।
रहा ट्रंप के दावों का प्रश्न। तो ट्रंप सतत यह सिद्ध करते आयें हैं कि वे अस्थिर मन:स्थिति वाले व्यक्ति हैं और उनके वक्तव्य भी अक्सर हल्के और गैरजिम्मेदार होते हैं। अपने 5 माह के कार्यकाल में उन्होंने इस प्रवृत्ति के कईं संकेत दिए हैं। वे रूस-यूक्रेन युद्ध के सीजफायर का भी ऐलान कर चुके हैं, जबकि युद्ध आज भी जारी है। अमेरिका के आयात पर करों को ले कर उन्होंने कईं एक पक्षीय निर्णय लिए और उनमें से अधिकांश पर उन्हें कदम पीछे खींचने पड़े। भारत पाकिस्तान के सम्बंध में भी उनके बयान बदलते रहे हैं। बमुश्किल चार दिनों पूर्व ही उन्होंने इसे भारत-पाक का आपसी मामला बता कर स्वयं को किनारे कर रखा था। बांग्लादेश और पाकिस्तान के संदर्भ में वे कईं बार यह दोहरा चुके है कि मोदी ने उन्हें आश्वस्त किया है और इसलिए ये मसले उन्होंने मोदी पर छोड़ दिए हैं। इस संदर्भ में वे इन मुद्दों को एक हजार वर्ष पुराना बताते हैं, जो कि हास्यास्पद ही कहा जा सकता है। इन तमाम तथ्यों के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि भारत-पाक मसला द्विपक्षीय ही है और ट्रंप के दावे उनकी अपरिपक्वता और अस्थिर मनोबुद्धी का एक और उदाहरण मात्र है। यह भी कि सीजफायर का निर्णय भारतीय सेना द्वारा, पाकिस्तान की गुहार पर, वैश्विक हित में लिया गया है न कि ट्रंप या किसी और के दबाव में। कल की वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की वार्ता से यह भी स्पष्ट हो गया है कि इस संघर्ष में भारतीय सेना ने न सिर्फ पाकिस्तानी हमलों को रोक लिया, बल्कि उनकी सीमा में घुस कर मनमाफिक प्रहार किए और दुश्मन को भारी नुक़सान पहुंचाया।
पाकिस्तान द्वारा सीजफायर की गुहार जहां उसकी घबराहट का सबूत है, वहीं भारतीय पक्ष के लिए यह एक प्रत्यक्ष और मनोवैज्ञानिक विजय है। इसे ऐसे ही देखा जाना चाहिए।
श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर।