भारतीय ज्ञान के द्वारा समाज में फैले झुठे विमर्श को करना होगा समाप्त।
रिंकेश बैरागी।
विश्वभर में शिक्षा पर इसीलिए जोर दिया जाता है, ताकि समाज में शिक्षा से उन्नति हो, उन्नति से विकास होकर मानव जीवन में सुख सुविधाएं बनी रहे। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में भी शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए अनेक प्रयास किए गए किंतु बहुत से परिश्रम विफल रहे और उस स्थिति के अनुसार वर्तमान में भी यह स्तर है कि भारत वर्ष में सभी नागरिक शिक्षित नहीं है, साथ ही 10 प्रतिशत से अधिक निरक्षर है। स्वतंत्रता के बाद किए गए प्रयासो की सार्थकता पर संदेह है जो कि सुस्पष्ट दिखाई देता है।भारतीय ज्ञान को विदेशी आक्रांताओ ने समाप्त करने की कोशिश की, जब वे पूर्णरुप से इसमें भी सफल नहीं हुए तब उन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति या भारतीय ज्ञान के सम्बंध में झुठा नेरेटीव फैलाना शुरु कर दिया, जिसके कारण बच्चों को जो भारतीय शिक्षा पहले घरों में ही प्राप्त हो जाती थी वह उनको मिलना धीरे-धीरे बंद हो गई, और प्रचलन में कुछ और ही समावेश होता गया। वर्तमान में बच्चा जब स्कूल जाता है तब वह शैक्षणिक पाठ्यक्रम में उलझकर रह जाता है, इस पाठ्यक्रम से शिक्षित हो जाता है, और रोजगार के लिए अपनी डिग्री लेकर नौकरी की तलाश में जुट जाता है। नौकरी मिलने पर कार्यालय के नए तौर तरिके सीखते हुए काम करते-करते आधा जीवन निकाल देता है। इस पूरे चक्र में वह बुद्धी से प्रबल नहीं हो पाता और न ही कभी ज्ञान के मार्ग पर चल भी पाता है।भारत को वैचारिकरुप से प्रभावित करने वाले अज्ञात शत्रुओं ने नैरेटीव बनाकर भारतीयों को ही भारतीय ज्ञान से दूर कर दिया जिसके कारण वे दूसरों के अनुरुप अपनी जीवन शैली को बनाने लगे और झुठे विमर्श के कारण वे अपने मुल्यों को तर्क और विज्ञान के अनुरुप समझ भी नहीं पाए। इसके बहुत से गलत परिणाम सामने आए है जिसमें मुख्य रुप से है, कि, अशिक्षत अन्य प्रलोभन में आ कर मतांतरित होते रहे। एक और मुख्य परिणाम है जो सामने दिखाई देता है वह यह है कि वर्तमान स्थिति में भारतीय घर रोगों का भंडार बनता जा रहा है। हर घर में कुछ ऐसे रोग है जिनके लिए वृद्ध अग्रेजी एलोपैथी दवाई का उपयोग प्रतिदिन करते हैं। इसके अतिरिक्त कभी बच्चा बिमार तो कभी बच्चे की मां बिमार रहती है, और भी बहुत से परिणाम ऐसे है जो झुठे नेरेटीव के कारण भारतीयों के लिए संकटमयी, और गलत साबित हो रहे हैं।झुठे विमर्श को त्यागना होगा और इसके लिए भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः विकसित करना होगा, जो कि बहुत कठीन कार्य नहीं है।
जानकारी के अनुसार केन्द्र और प्रदेश सरकार विद्यालय या महाविद्यालय से जुड़ी शिक्षा में पुरातन भारतीय ज्ञान को सम्मिलित करने जा रही है। पाठ्यक्रम में वैदिक गणित, सृश्रुत संहिता की शल्य चिकित्सा प्रक्रिया के साथ महाभारत काल में जिस गुणवत्ता से खेती की जाती है उसको भी रखा गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने अलग से एक डिवीजन बनाया है, जो शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में तेजी से जुटा हुआ है। साथ ही इसके स्कूल व उच्च शिक्षण संस्थानों में ऐसे खेल व गतिविधियों को भी आगे बढ़ाने की पहल की गई है जो भारत के ज्ञान पर केन्द्रीत है। समाज भी भारतीय शिक्षा पद्धति को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए उसमें सहयोग कर झुठे विमर्श को समाप्त करने में सार्थक हो कर युवाओ को प्रबुद्ध बनाने में सफलता ला सकता है। समाजिक संगठनों को भारतीय ज्ञान परंपरा की कार्यशाला आयोजित करवानी होगी जिसमें महाभारत और रामायण के साथ श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान तार्किक रुप से वर्तमान परिवेश को जोड़ते हुए बताया जा सकता है, जिससे युवाओ की समझ बढ़ती जाएगी और वे बुद्धी के विकास की श्रेणी में आकर भारतीय ज्ञान, विज्ञान सीखकर प्रबुद्ध कहलाएगे।
शैक्षणिक संस्थाओं में सरकार भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत पाठ्यक्रम में महाभारत, रामायण, और गीता का अलग से एक विषय बना ले जो कि, पांचवी कक्षा से बारहवी कक्षा तक अनिवार्य कर दे तो विद्यार्थियों की बारहवी कक्षा तक बुद्धी विवेक का स्तर उत्तम हो जाएगा, जिससे वे शारीरिक और व्यवहारिक ज्ञान में परिपूर्ण होकर अपने कौशल को विकसित करते हुए ज्ञान, विज्ञान, या यांत्रिकी विषय को चुनकर अपने भावी जीवन को उच्चतम बनाकर सहज और सुखद जीवन शैली बना सकते हैं। इस उच्चतम प्रयोग से भारतीय युवा भारत को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक, प्रगति को एक नई ऊंचाई तक ले जाने की क्षमता रखने वाला प्रबुद्ध भारतीय युवा कहलाएगा, जिसमें आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय की शक्ति का भरपूर बल होगा।वर्तमान में राष्ट्रीय कौशल विकाश निगम और श्रम मंत्रालय के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत स्नातक युवाओं के पास रोजगार पाने के लिए व्यवहारिक कौशल नहीं हैं। अर्थात डिग्री और नौकरी के बीच के सेतु में हमारी शिक्षा और प्रशिक्षण व्यवस्था पंगु है। यही कारण होता है कि विधर्मी राजनीति में लोग युवाओं को भड़का कर उनका उपयोग कर सत्य, धर्म, और सरकार के सही निर्णय के सामने विरोध के लिए भी उनको लामबंध कर देते हैं। अधिकतर विपक्ष इसी अज्ञानता का लाभ लेकर युवाओं को जागरुकता की झोली से दूर कर देते हैं और अपनी-अपनी रोटियां सेक लेते हैं।
हालांकि मध्यप्रदेश सरकार गांव-गांव में निरक्षर लोगों की परिक्षाएं आयोजित करवाकर उन्हें साक्षर की गिनती में सम्मिलित करना चाह रही है, परंतु प्रौढ़ शिक्षा के इस प्रयोग से बुजुर्ग सिर्फ अपना नाम, पता लिखना सीखेगे और कुछ-कुछ पढ़ सकेगे। इसके लिए प्रदेश सरकार करोड़ो का बजट खर्च कर प्रौढ़ शिक्षा की परिक्षाएं आयोजित करवा रही है। प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश में करिब एक करोड़ 50 लाख के लगभग बुजुर्गो को प्रौढ़ शिक्षा की साक्षरता परिक्षा में सम्मिलित करने के लक्ष्य को लेकर चल रही है। इस लक्ष्य में जिला स्तर पर शिक्षा क्षेत्र के सभी विभागो को सहयोग करना है लेकिन कहीं-कहीं राज्य शिक्षा मिशन सर्व शिक्षा अभियान के अधिकारी कर्मचारी अपने सहयोग से पल्ला झाड़ रहे हैं। विशेष रुप से झाबुआ जिला ऐसा है जहां इसकी शिकायत सामने हमेशा से आती रही है।
बहरहाल जब सर्व गुण सम्पन्न ज्ञान की अविरल धारा भारतीय ज्ञान में प्रवाहीत होती है तो समाज की सभ्यता, और संस्कृति को पुनः स्थापित कर पाठ्यक्रम में महाभारत, रामायण, और गीता जैसे ग्रंथों का समावेश करना आवश्यक है, इससे विद्यार्थियों की बुद्धी का विकास उच्च स्तर से होगा और यथा सम्भव झुठे विमर्श (नैरेटीव) का विनाश होगा।