भारतीय उपमहाद्वीप में जेन जी आंदोलन: बदलाव की नई दिशा और भारत में भूमिका और संभावनाएं

डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’

==============हाल ही में 2022 में श्रीलंका, 2024 में बांग्लादेश और सितंबर 2025 में नेपाल में जेन जी की अगुवाई में हुए आंदोलन के माध्यम से तीनों ही देशों में राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल हुई। इन आंदोलनों के अच्छे और बुरे परिणाम से भारत अछूता नहीं रहा सकता है, क्योंकि भारत के सभी पड़ोसी देश की राजनीतिक, आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत युगों से साझी रहीं है। श्रीलंका ( सिलोन), म्यांमार(बर्मा), पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) सीधे तौर पर और भुटान, नेपाल और अफगानिस्तान अप्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के पहले भी कई साम्राज्यों के काल में या तो एक ही रहे या अधीनस्थ रहे हैं। इसलिए आज ये राजनीतिक इकाईयों में अगल होते हुए भी सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामरिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से एक दूसरे के अटूट गवाह हैं। इस संदर्भ में भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के राजनेताओं और जनता को किसी दूसरे देश में उथल-पुथल देख बहुत ज्यादा खुश होने की आवश्यकता नहीं है । ऊंट कब किस करवट बैठ जाय, कहना मुश्किल ही नहीं बल्कि न मुमकिन भी है। लेह लद्दाख केन्द्र शासित राज्य इसका साक्षी बन चुका है!

आइए जानते हैं जेन जी क्या है? जिसकी आड़ में तीनों देश राजनीतिक और आर्थिक रूप से अस्थिर हो गये। असल में हंगरी के फोटोग्राफर रॉबर्ट कैपा ने 1960 के दशक के बाद पैदा हुए लोगों के फोटोग्राफ पसंद करने की आदत के आधार पर श्रृंखला तैयार करने के लिए पहली बार “जनरेशन एक्स” शब्द प्रयोग किया था। उसने “ऐक्स” नाम दे कर श्रेणीबद्ध कर वह जानना चाहता था कि पहले और बाद के लोगों की जीवन जीने के तरीकों में अंतर क्या है? इस पीढ़ी को नाम देने का कारण पीढ़ियों के आधार पर सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर को समझने का प्रयास करना था। इसी तर्ज पर अमेरिकी जनसांख्यिकीय विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों ने 20 वीं शताब्दी के आरंभिक दौर में पीढ़ियों को वर्गीकृत करना शुरू किया । सबसे पहले, “बेबी बूमर” (1946-1964) और फिर “जेन एक्स” (1965-1980) नाम दिया गया। 1980-1996 के बीच जन्मी पीढ़ी को “मिलेनियल्स” या ” जेन वाई” कहा गया। “जेन जी” का नाम इसी क्रम में आया, जिसका मतलब ” वाई” के बाद आने वाली पीढ़ी है।इसी आधार पर बाद में ऑस्ट्रेलियन शोधकर्ता मार्क मैक्रिडल ने 2008 में 21 वीं सदी में 2013 से 2025 बीच जन्में लोगों के लिए “अल्फा” और 2025 के बाद वालों को “बीटा” नाम दिया है।

“जेन जी” की पहचान तकनीक, इंटरनेट, और सोशल मीडिया से अत्यधिक जुड़ी हुई है। इस पीढ़ी का विकास स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, स्ट्रीमिंग सेवाओं अर्थात इंटरनेट के माध्यम से सीधे डेटा वीडियो या ऑडियो प्राप्त करना और उसे वास्तविक समय में चलाना और डिजिटल तकनीक के तेजी से बढ़ते युग में हुआ है। यही कारण है कि इस पीढ़ी को डिजिटल (नेटिव्स) स्वदेशी कहा जाता है। इसका प्रभाव व्यापक है, क्योंकि डिजिटल युग ने सामाजिक, सांस्कृतिक, और व्यावसायिक परिवर्तनों को प्रभावित किया है। यह पीढ़ी उपभोक्ता बाजार, रोजगार के तरीकों, राजनीति, और वैश्विक संस्कृति को नए सिरे से परिभाषित कर रही है।

इस पीढ़ी को सजक, विविधता प्रिय, पर्यावरण के प्रति जागरूक और सामाजिक न्याय की हिमायती के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह पीढ़ी लिंग, यौन अभिव्यक्ति, नस्ल, और व्यक्तिगत जीवन शैली के मामलों में अधिक खुलीं और उदार मानी जाती हैं। वर्चुअल के रियल वर्ल्ड के साथ यह पीढ़ीअति-संज्ञानात्मक” है, जिसका अर्थ है कि संज्ञानात्मक कार्य (सोचना, ध्यान, स्मृति आदि) बहुत ज़्यादा या असाधारण रूप से सक्रिय हैं। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जहाँ विचार प्रक्रियाएँ बहुत तेज़ और तीव्र हो सकती हैं। संज्ञानात्मक (Cognitive): यह सोचने, ध्यान देने, याद रखने, समझने और तर्क करने जैसी मानसिक प्रक्रियाओं से संबंधित है।अति (Hyper): यह “बहुत ज़्यादा” या “असाधारण रूप से” का अर्थ बताता है।अति -संज्ञानात्मक इसका अर्थ एक ऐसी स्थिति है जहाँ इन संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का स्तर सामान्य से बहुत अधिक होता है। यानी इस पीढ़ी के युवा कई तरह के स्त्रोतों से जानकारी इकट्ठा कर फैसला लेते हैं। ये आशावाद के साथ ही साथ वास्तविकता , चिंताग्रस्त और विरोधाभासों भरी पीढ़ी है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार 89% जेन जी मानते हैं कि ‘काम में समाविष्ट उद्देश्य जरूरी है’। यह पीढ़ी पैसा और नाम कमाने के साथ-साथ सबकुछ अच्छे विकास पर फोकस करने पर जोर देती है। ऐ जिस दौर में पले बढ़े , वह समय आर्थिक संकट और कोविद-19 जैसी महामारी का रहा है। यही कारण है कि यह पीढ़ी वित्तीय रूप रूप में अधिक व्यवहारिक है।

भारत में इसका प्रभाव: भारत, जनसांख्यिकी दृष्टि से युवा देश है। जहां इसकी आबादी अनुमानित तौर पर करीब 37 करोड़ है जो देश की 27% आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। इसके विपरित न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका को चलाने, व्यवस्था देखने और सलाह देने वाले ‘जेन एक्स’ अर्थात 1950 से 1980 के दशक में जन्म लेने वाले हैं। जिनमें से भी 80 प्रतिशत लोगों ने अपने बाल्यकाल और युवावस्था में कम्प्यूटर, मोबाइल फोन और आधुनिक विमान देखे तक नहीं हैं। मुझे लगता है कि इसी विरोधाभास के चलते भारत में सभी स्तर पर जेन जी प्रभावित कर सकती हैं। सबसे पहले राजनीतिक स्तर पर लिए जाने वाले निर्णयों की अच्छाई और बुराई के प्रभावों को समझने का प्रयास करते हैं।

चुनाव आयोग के नवीनतम अधिसूचनाओं के अनुसार, देश में 6 राष्ट्रीय दल, : आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और नेशनल पीपुल्स पार्टी सहित 58 राज्य स्तरीय दल प्रायः केन्द्र व राज्य सरकार में सक्रिय भूमिका में हैं।

75 साल के शासनकाल में 60 साल कांग्रेस और कांग्रेस की छत्रछाया में शासन करने वाले दलों ने 75 बार संविधान संशोधन किया। जिसमें संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी” शब्द जोड़ना संशोधन भी शामिल है और राष्ट्र की सुरक्षा कभी भी कांग्रेस की प्राथमिकता नहीं रही और आज भी नहीं है। भारत के ‘जेन जी’ मानते हैं कि कांग्रेस मुस्लिम और अनुसूचित जाति जनजाति की पार्टी है। राहुल गांधी के 20 वर्षों के सार्वजनिक जीवन में देश व विदेश में व्यक्त विचारों से इसकी पुष्टि भी होती है। कांग्रेस का 60 साल तक शासन करने के सवाल पर उनका मानना है कि जनता के पास कोई विकल्प नहीं था। इसलिए कांग्रेस को एक छत्र राज करने का अवसर मिला।

17 वर्ष एनडीए गठबंधन के नेतृत्व वाली अटल बिहारी वाजपेई एवं नरेंद्र मोदी सरकार को देशभक्त , राष्ट्रवादी और विकास करने वाली सरकार मानते हैं। 65% जेन जी ऐसा मानते हैं कि वर्तमान एनडीए गठबंधन का नेतृत्व केवल दो – चार लोगों के हाथ में होने तथा निर्णय सामूहिक नहीं होने से प्रजातंत्र का निर्मल नभ को धूमिल हो रहा है। पिछले 12 साल में मोदी सरकार द्वारा अप्रत्याशित निर्णय इसकी पुष्टि करते हैं।

वर्तमान व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के स्वरूप, कार्य करने की इच्छाशक्ति, नियम लागू करने में लालफीताशाही से जेन जी असंतुष्ट है। उनका ऐसा मानना है कि इसके चलते महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। युवा मानव संसाधन की योग्यता का अवमूल्यन और पलायन हो रहा है।

श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में भ्रष्टाचार सत्तारूढ़ नेताओं और उच्च स्तर पर सबसे ज्यादा है। यही कारण है कि इन तीनों देश के जेन जी ने भ्रष्ट नेताओं को सबसे पहले निशाना बनाया। देश में तकनीकी प्रशिक्षित कार्यरत जेन जी के एक -दो समूह से प्रश्न पुछा गया कि – क्या राहुल गांधी की अपील पर भविष्य में पड़ोसी देशों की तरह क्रान्तिकारी आन्दोलन होने की संभावना है? इसके जवाब में आश्चर्यचकित तथ्य सामने आए हैं।

पहला – अधिकांश जेन जी का मानना है कि भारतीय संविधान में न्यायपालिका, व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के अधिकार और सीमाएं स्पष्ट रूप से निर्धारित है। जो खामियां हैं उन्हें अनुभव और समस्या के आधार पर समय स्वयं हल ढूंढ लेगा। प्रजातंत्र के इन स्तंभों के आपस में टकराव व मनमुटाव इनके मुख्याओं की धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्टभूमि का परिणाम है, न कि संवैधानिक संकट।

वर्तमान में चल रहे न्यायपालिका का कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की खिंचा तानी को दोनों तरफ से जानबूझकर भ्रम पैदा किया जा रहा है। जबकि प्रजातंत्र के प्रहरी चारों स्तंभ भली-भांति परिचित है कि “संविधान ही सर्वोच्च संस्था है और अगले कुछ दशकों तक रहेगा भी”।

नेपाल में जेन जी द्वारा राजनीतिक अस्थिरता का प्रमुख कारण भारतीय जेन जी का भी विश्व समुदाय से मिलता जुलता ही है। वहां राज परिवार का खात्मा और कम्युनिस्ट नेताओं द्वारा अकूत भ्रष्टाचार, हिंदू राष्ट्र की समाप्ति और चीन -पाकिस्तान का जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप प्रमुख है।

पड़ोसी बांग्लादेश में तख्ता पलट का कारण पूर्णतः धार्मिक और अमेरिका -चीन की विस्तार वादी नीति और पाकिस्तान की फिरका परस्ती जिम्मेदार है। वहां उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार के साथ हिंदू अल्पसंख्यकों को धार्मिक एवं सांस्कृतिक नुकसान पहुंचाना केंद्र में रहा है। वहां के जेन जी को शिक्षा के माध्यम से सरकारें बंगलादेश निर्माण में भारत के योगदान को बताने में नाकामयाब रहीं। फलस्वरूप एहसान फरामोश की संख्या बढ़ती गई।

आजकल मीडिया में अब जोर-शोर से चर्चा है कि अगला शिकार कौन ? भारत , पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार में से किसका नंबर लगने वाला है? पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ज्यादा उत्तरी अमेरिका की ओर ज्यादा इशारा है और इसका कारण भी साफ-साफ नजर आ रहा है कि 2.0 ट्रंप सरकार के निर्णय पेंडुलम की तरह अस्थिर है। जिसके कारण ट्रंप के मित्र भी उनका साथ छोड़ चुके हैं। अफगानिस्तान में तालिबानी शासन को फिलहाल जेन जी से कोई खतरा नहीं है, क्योंकि वहां के जेन जी धर्म वीरू हैं। अब पड़ोसी देशों में बचा पाकिस्तान और म्यांमार। वहां के जेन जी को सबसे बड़ा डर है कि यदि युवा शक्ति वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंकतीं है, तो उनके देश में इतना संसाधन नहीं है, जिससे वह अगली सरकार को बिना अरब देशों की मदद से चला सकें!

कुल मिलाकर भारतीय उपमहाद्वीप में जेन जी द्वारा ताकत आजमाने का खतरा बना रहेगा। भारत में निकट भविष्य में संभावना नहीं दिखती , क्योंकि यहां सरकार के तीनों अंग थोड़े बहुत मन मुटाव के बावजूद सुचारू रूप से कार्य कर रहे हैं।

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