भाई -बहन के प्यार का प्रतीक: भाई दूज “
🔏 डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’
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भारत भूमि विश्व में सबसे अलग और अनूठी वसुंधरा है, जहां सदैव तीज़ -त्यौहार और आनंदोत्सव मनाएं जाते हैं।
कार्तिक मास की अमावस्या के दो दिन पहले धन तेरस और दिपावली के दो दिन बाद भाई दूज त्योहार का महत्व ही निराला है।
भारत में भाई दूज पर्व मनाने की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है और यह हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे भाई-बहन के प्यार और स्नेह का प्रतीक माना जाता है।
भाई दूज त्योहार मनाने संबंधित प्रचलित कथाएं इस प्रकार हैं।
मान्यता है कि अपने शत्रु जरासंध को हराने के बाद द्वारिका पुरी लौटते समय बहन सुभद्रा का संदेश आया था कि युद्ध में व्यस्त रहने के कारण भाई से लंबे अरसे से भेंट न हो सकी। यह संदेश पा कर भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा के घर जाकर भाई दूज का त्यौहार मनाया था।
दुसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार यम और यमुना नाम के भाई-बहन थे। एक बार यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर बुलाया । दोनों भाई बहन लम्बे अरसे बाद एक दूसरे से मिले थे। भाई के आने की खुशी में घर- आंगन को सजाया गया और स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। यम बहन द्वारा आयोजित विशाल कार्यक्रम देख इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने बहन यमुना को वचन दिया था कि “जब तक वह जीवित रहेंगे। कार्तिक मास की अमावस्या के बाद दूज के दिन बहन के घर आकर मिलते रहेंगे।” और गांव वालों को वरदान दिया कि “जो भाई अपनी बहन के घर जाकर दूज मनाएगा। उनका खून का रिश्ता अमर रहेगा। तभी से भाई दूज पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने अपनी बहन लक्ष्मी के घर जाकर दूज का त्योहार मनाया था।
आजकल ऊहापोह भरी दुनिया में भाई दूज का महत्व जानना आवश्यक है। यह त्यौहार भाई-बहन के प्यार और स्नेह को प्रगाढ़ बनाता है और खून के रिश्ते को मजबूती प्रदान करता है। यह पर्व भाइयों को अपनी बहनों के प्रति जिम्मेदारी की भावना का अहसास दिलाता है।
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों के लिए विशेष भोजन तैयार करती हैं। भाइयों को तिलक लगाती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।
असल में यह पर्व भाई-बहन को एक साथ समय बिताने का अवसर प्रदान करता है। जिस कारण भाई- बहन बचपन में माता-पिता की उपस्थिति में एक साथ बिताए गए दिनों को याद करते हैं। फलस्वरूप बहन- भाई को असीम आंनद की प्राप्ति होती है।
आजकल पारिवारिक व्यस्तता के चलते भाई- बहन को मिले अरसा बीत जाता है। यह भी देखने में आता है कि अनेक राज्यों में कानून है कि ‘माता-पिता की चल -अचल संपत्ति में बहनों को भी हिस्सा देने का प्रावधान है । पारिवारिक संपत्ति विवाद के चलते भाई- बहन के रिश्तों में खटास उत्पन्न होने लगी है। कोर्ट कचहरी से संपत्ति का बंटवारा हो जाने के बाद भाई- बहन एक दूसरे के घर आना जाना नहीं करते। इस तरह की मानसिकता को अच्छा नहीं माना जा सकता। यह कल्पना से परे है। क्योंकि एक ही कोख में 9 महीने बिताने वाले भाई- बहन ही रिश्तेदारों जैसा व्यवहार करते हैं । ऐसा देख माता-पिता पर क्या बीतती होगी !
आजकल के युग को व्यस्तता का युग भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। व्यस्तता के जमाने में भाई दूज पर्व एक आशा की किरण लेकर आता है जो भाई-बहन के प्यार और स्नेह की पुनरावृत्ति कराने में सक्षम है। यह पर्व हमें अपने पारिवारिक रिश्तों को मजबूत बनाएं रखने की याद दिलाता है।
हमारे पूर्वजों ने बहुत ही सोच समझ कर इस त्योहार को मनाने की शुरुआत की होगी और परंपरा को कायम रखा है। समाज को भाई दूज पर्व की भावना को समझते हुए नयी पीढ़ी में इसका संचार करते रहना होगा। बच्चों के जीवन में मानवीय मूल्य बरकरार रखने की शिक्षा देते रहना होगा और पारिवारिक भाव प्रेम के साथ जीवन मूल्यों को मजबूती प्रदान करने में सहायता करनी होगी।
आज के दिन भाई बहन को यह गीत गुनगुना चाहिए।
भाई दूज का पावन त्यौहार है आया।
भाई- बहन के प्यार की खुशियां है लाया।।
रक्षाबंधन पर भाई से रक्षा का वचन लेती है बहन।
भाई दूज पर भाई की रक्षा का वचन देती है बहन।।
दोनों ही त्यौहार है भाई-बहन की लंबी उम्र की कामना के।
दोनों ही त्यौहार है भाई-बहन की पवित्र भावना के।।
भाई दूज भाई- बहन के प्यार को दर्शाता है।
इस दिन भाई बहन के घर आकर हर्षाता है।।
भाई दूज पर्व का अपना ही महत्व है ।
भाई-बहन गले मिलते, जागता ममत्व है ।।
यह पवित्र रिश्ता विष्णु और कृष्णा की है परंपरा।
भाई-बहन रिश्ता अनमोल , क्षाक्षी है वसुंधरा।।
भाई -बहन के प्यार का प्रतीक है भाई दूज ।
कलेवा का बंधन अटूट, कहता है हॅंसमुख।।
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