पचास हजार प्रतिमाह वेतन की घोषणा प्रति कार्य दिवस की मजदूरी में बदल गई।
अतिथि विद्वान अपने बच्चों के प्रवेश फॉर्म में लिखते हैं प्रति दिन की दिहाड़ी “
” प्रधानमंत्री कॉलेजों से उच्च शिक्षा विभाग इन्हें करना चाहता है बाहर “
प्रदेश के सरकारी कॉलेजों के अतिथि विद्वानों की दुर्दशा का आलम यह है कि इनको पूर्व बीजेपी सरकार में वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंचायत करवाकर कहा था कि अतिथि विद्वानों को शासकीय सेवकों के समान तमाम सुविधाएं देते हुए 50 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन किया जाता है। लेकिन जब मंत्रालय उच्च शिक्षा विभाग से आदेश जारी हुए तो उसमें 2000 रूपए प्रति कार्य दिवस कर दिया गया। जिसके कारण अब तक इनका भविष्य अंधकार में है। दूसरी ओर इनके पास नेट, सेट, पीएचडी की योग्यता होकर भी जब किसी सरकारी, प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों का एडमिशन करवाने जाते हैं, तो स्कूल के एडमिशन फॉर्म में लिखा रहता है कि पिता का व्यवसाय अथवा नौकरी क्या हैं। क्या सरकारी नौकरी हैं या प्राइवेट। मजबूरीवश उस कॉलम में अतिथि विद्वान को प्रति दिवस की दिहाड़ी मजदूरी जैसा लिखना पड़ता है। जो कि सरकार शोषणकारी नीति का परिणाम है। इतना ही नहीं प्रदेश के 68 प्रधानमंत्री कॉलेजों से उच्च शिक्षा विभाग इन्हें बाहर करना चाहता है। इनके स्थान पर 6 माह पहले ही 616 रिडिप्लायमेंट कर दिए गए हैं। जबकि प्रधानमंत्री कॉलेजों की पदस्थापना नियमावली में सहायक प्राध्यापकों को तीन साल पढ़ाने का अनुभव और नेट, सेट, पीएचडी में से कोई भी एक योग्यता होना बताया गया है। परंतु अब भी कई आपाती और तदर्थ सेवा के सहायक प्राध्यापक बगैर नेट, सेट, पीएचडी के इन कॉलेजों में सेवारत हैं।
उन्हें अन्य कॉलेजों में भेजने की बजाय यूजीसी आहर्ताधारी अतिथि विद्वानों को इन कॉलेजों से हटाने पर सरकार आतुर है। वहीं पीएम कॉलेज झाबुआ में एकल पद से रिडिप्लायमेंट सहायक प्राध्यापक भी मौजूद है। पीएम कॉलेजों के लिए स्वीकृत 1750 शिक्षकीय पदों का आईएफएमएस अब तक नहीं हुआ है। पूर्व स्वीकृत एवं रिक्त पद जिन पर अतिथि विद्वान सेवाएं दे रहे हैं, उन पर ही अधिकाधिक रिडिप्लायमेंट किए गए हैं। अनेकों विषयों में तो वर्षो से पद रिक्त हैं, उन पर न तो अतिथि विद्वान कार्यरत है और न ही पीएम कॉलेज नियमावली से अब तक रिडिप्लायमेंट हुआ है।मध्य प्रदेश संयुक्त अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश संयोजक डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि अतिथि विद्वानों को एक बेहतर भविष्य देने के लिए पूर्व बीजेपी सरकार की पंचायत की सभी घोषणाएं अब तक लागू नहीं की गई। उल्टा अतिथि विद्वानों के स्थान पर तबादलें करके फॉलेन आउट का झुनझुना पकड़ा दिया गया। मोहन सरकार द्वारा लगातार हम उच्च शिक्षितों को अनदेखा करना न्यायसंगत नहीं है।
संघर्ष मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी इस शोषणकारी अतिथि विद्वान व्यवस्था पर दुःख जाहिर करते हैं कहा कि कॉलेजों में अध्यापन कार्य, प्रवेश कार्य, परीक्षा ड्यूटी, मूल्यांकन, रूसा, एनसीसी, एनएसएस आदि में हम तन-मन-धन से काम करते हैं। लेकिन अचानक हमें नवीन पोस्टिंग या तबादलें से बेरोजगार कर दिया जाता है। सरकार को ऐसी शोषणकारी व्यवस्था को खत्म करके अन्य बीजेपी शासित राज्यों की तर्ज पर हमारा भविष्य सुरक्षित करना चाहिए।