निस्संदेह यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना थी और हताहतों की सोच कर दिल फट जाता है।

इसके बावजूद मैं, हमारे ( 55-60 वर्ष के तीन पुरुष और 1 महिला) कुछ अनुभव साझा करना चाहूंगा। वे अनुभव जो हमारे देश के हर वर्ग से अनेक कष्ट सहन करते हुए आए इन करोड़ों प्यारे लोगों के बीच जो यहां इस महाकुम्भ के पावन अवसर पर पधारे हैं। आसनसोल, आरा, हैदराबाद, बंगलुरू, कोयंबटूर, जलगांव, सतारा, अहमदाबाद, चूरू, त्रिवेंद्रम, गया, सागर, झांसी …..देश के प्रत्येक कोने से आए ये विशाल जन समूह जिनमें घुटने चलते नन्हे बच्चों से ले कर 70 वर्षों से भी अधिक उम्र के बुजुर्ग भी शामिल थे। युवा सदस्य अपने बुजुर्गों को अपना जन्म सार्थक करने में मदद करते हुए नजर आ रहे थे।

हम 27 जनवरी की रात 10 बजे महाकुम्भ पहुंचे। दिन में हम अयोध्या में रामलला के दर्शन कर रात को प्रयागराज पहुंचे थे।
27 जनवरी को हमने अयोध्या से प्रयागराज का सफर कार से तय किया। रास्ते ने ट्रैफिक जैम का सामना जरूर करना पड़ा और सामान्यतः 5 घंटों में तय होने वाला रास्ता, 8-9 घंटे में प्रयागराज पहुंचा पाया। परन्तु व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि रात 10 बजे हम ठीक सोमेश्वर घाट पर स्थित कैंप तक पहुंच गए। हमें सही मार्ग दिखाने वाले सभी पुलिस वालों का भी धन्यवाद जिनकी वजह से हम आराम से सही जगह पहुंच पाए! 28 जनवरी को सोमेश्वर घाट से दोपहर 3:30 पर निकल कर 28 किमी पैदल घूम कर रात 2 बजे हम सोमेश्वर घाट पर पुनः पहुंच गए थे। इस बीच रात 12-12:15 (तकनीकी रूप से 29 तारीख) हम संगम चोंच पर भी थे। निश्चित ही उस समय वहां करोड़ों लोग उपस्थित थे।

इस प्रचण्ड भीड़ में पुलिस सतत ऐलान कर रही थी कि कोई भी श्रद्धालु बैरिकेड्स के पास बैठे या सोए नहीं। यहां यह समझना आवश्यक है कि यदि बैरिकेड्स के पास बड़ी तादाद में लोग बैठ जाएं या सो जाएं तो दुर्घटना घटने की प्रबल संभावना बन रही थी। लोग वहां इसलिए बैठ / सो रहे थे ताकि ब्रह्म मुहूर्त में तुरंत उठ कर संगम स्नान का लाभ ले सके। या जब अखाड़ों का स्नान प्रारंभ हो तब उनकी शोभा यात्रा का दृश्य देख सके। इस स्थिति में, दुर्भाग्यवश, बैरिकेड्स से सट कर खड़े लाखों लोगों में से कुछ का धैर्य जवाब दे ही सकता था।

यहां यह उल्लेखनीय है कि व्यवस्थाएं गजब की थी परन्तु परिस्थितियां भी विकट थी। श्रद्धालु विराट संख्या में बड़े चले आ रहे थे। उनके लिए विकसित की गई सुविधाएं अतुलनीय थी। मैने जीवन में आज तक कभी इतनी शालीन और सहायता के लिए तत्पर पुलिस नहीं देखी। हमारी कुछ 50-60 पुरुष और महिला पुलिस कर्मियों से बातचीत हुई। उन्हें के बार हमें रोकना पड़ा और लम्बे रास्तों की ओर मोड़ना पड़ा, परन्तु सभी की नीयत और इच्छा हमारी सहायता करने की ही थी। वे हमारी परेशानियां दूर करना ही चाहते थे। निश्चय ही उन्हें इस सम्बंध में प्रशिक्षित किया गया होगा। उनके पास योजना थी और वे उस योजना को शानदार तरीके से क्रियान्वित भी कर रहे थे।

रात 8:00 से 12:30 तक हम संगम क्षेत्र में ही थे। पुलिस लगातार ऐलान कर रही थी…

“बैरिकेड्स के पास कोई बैठे या सोए नहीं”.. प्रारंभ में हम समझ ही नहीं पा रहे थे कि इस उद्घोषणा की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? रात 12 बजे जब संगम पहुंचे तब समझ आया कि “7:45 से ही अमावस्या प्रारम्भ हो चुकी है इसलिए आप स्नान कर लीजिए” इस घोषणा का उद्देश्य घाट पर भीड़ के दबाव को कम करना था। इसी प्रकार, खोया पाया केंद्र की उपलब्धता की सूचना सतत दी जा रही थी।

शौचालय, जल, पेयजल, प्रकाश व्यवस्था, चौड़े मार्ग, मार्गों की सफाई आदि की व्यवस्था अविश्वसनीय थी। शौचालयों की संख्या भी इतनी विपुल थी कि किसी को कोई परेशानी नहीं हो रही थी। हमने शौचालयों का उपयोग किया और वहां नियुक्त सफाई कर्मचारियों का व्यवहार और सौहार्द्र चकित कर देने वाला था।

पैदल चलते समय हमने कईं बार मूंगफली, भुने चने आदि खरीदे खाए। सफाई के स्तर की वजह से छिलके या कागज नीचे फेंक देने की हिम्मत ही नहीं हुई। हम सब जेब में रखते रहे। हर 50-100 मीटर पर कूड़ेदान उपलब्ध थे ही जहां यह कचरा डालते आया।

करोड़ों के इस जनसमुद्र में यातायात के लिए दोपहिया वाहन या e रिक्शा ही विकल्प थे। हमारी 40 किमी की पदयात्रा के दौरान हमने भी 6-7 बार इन वाहनों का उपयोग किया और इस दौरान 15 से अधिक वाहन चालकों से हमारी बातचीत हुई। इनमें से एक ने भी हमें ठगने का प्रयास नहीं किया या हमसे किसी प्रकार की बदतमीजी नहीं की।
किशोर वयीन बच्चियां, छोटी बड़ी खाद्य सामग्री और अन्य सामान की दुकानें चला रही थीं, जिन्हें देखना एक सुखद अनुभव था। कईं दुकानों थी जिन्हें पुरुष और महिलाएं चला रही थी और सभी पर बेहतर उत्पाद और सेवाएं मिल रही थी। एक बार भी कोई दुकानदार किसी को परेशान कर रहा है या दुर्व्यवहार कर रहा है, ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला।

निश्चय ही कुछ चीजें बुरी तरह अखरने वाली थी। VIP गतिविधियां पूरी तरह प्रतिबंधित होना चाहिए। ये गतिविधियां सीमित ही थी परन्तु वे भी अत्यन्त तकलीफ़देह थे। जब कभी हमने जनप्रवाह में बाधा अनुभव की वह VIP गतिविधियां की वजह से ही थी। ई रिक्शा और दोपहिया के लिए समर्पित लेन होती तो बेहतर होता।

करोड़ों भारतीय हृदय में अपार श्राद्ध लिए गंगाजी के तीर पर पहुंच रहे हैं। हम प्रार्थना करते हैं कि अब आगे कोई दुर्घटना न हो। यह भी अपेक्षा करते हैं कि प्रशासन के निर्देशों का पालन किया जाए। यदि हम निर्देशों कपोलन करेंगे, आचार संहिता के अनुरूप व्यवहार करेंगे तो सर्वाधिक लाभ हमारा ही होगा।

हर हर गंगे 🙏🙏
हर हर महादेव 🙏🙏

संजीव बेडेकर
04/02/2025

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