नारी शक्ती का सराहनीय संघर्ष, 20 वर्ष पूर्व ईसाई मत स्वीकार करने वाले परिवार की हुई घर वापसी।

खुब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी, बुंदेलो हर बोलो के मुंह हमने सुनी जुबानी थी। इन पंक्तियों का स्मरण होता है जब कोई वीरांगना शौर्यवान कार्य को अपने बल पर स्वयं के सामर्थ्य के अनुरुप सफल परिणाम तक पहुंचाती है। भारत के मध्यप्रदेश में मालवा प्रांत के झाबुआ जिले में निवासरत एक किशोरी ने वो कर दिखाया जो किसी की कल्पना में नहीं था जिसकी कभी किसी को कोई उम्मीद नहीं थी। इस नव विवाहित किशोरी ने अपने ससुराल पक्ष को पुनः हिंदु धर्म के अनुसार जीवन जीने के लिए प्रेरित किया और 20 वर्ष पहले ईसाई मत को चुन चुके परिवार को अपनी गलती का अहसास करवाया फिर सर्व सहमति से अपनी स्व इच्छा से हिंदु जीवन शैली को अपनाने का प्रण दिलवाया। सूचना के अनुरुप संगीता भाबोर का विवाह 17 अप्रेल 2025 को आशीष मचार के साथ किया गया जिसकी रिति पूर्णतः हिंदु रिति थी, परंतु जब संगीता 18 अप्रेल को अपने ससुराल पहुंची तब उसने वहां हिंदु दैवी देवताओं की एक भी तस्वीर या मुर्ती नहीं पाई और परिवार को ईसाई मतानुसार कार्य करते देखा तब वह दंभ रह गई और उसने अपने स्वचित्त को संभालते हुए अपने निज धर्म की चेतना के बढ़ते हुए स्तर को चुन कर हिंदु दर्शन की महानता की शक्ति के साथ अपने पति से चर्चा की और उस समय उसे स्पष्ट हुआ कि जहां उसका विवाह किया गया है वह परिवार ईसाई मत को मानने वाला है। संगीता ने अपने स्व धर्म के लिए अपना ससुराल छोड़कर अपने घर लौट आई औऱ अपने पिता परिवार को सबकुछ बता दिया। जनजाति रिति के अनुसार बैठक की गई जिसमें भांजगड़िये ने पक्ष रखा तो स्पष्ट किया गया कि संबंध करवाने से पहले किसी ने पुछा नहीं कि कौन किस मत को मानता है। परंतु संगीत के मन में तो स्वधर्म को धोखे में रख कर उसका विवाह करवाया गया। उसने पाया कि, योजनाओं का लाभ लेने और दिखावे के लिए उसका ससुराल पक्ष स्वयं को हिंदु बताता आता रहा है। संगीता ने अपने पिता के साथ जा कर झाबुआ पुलिस कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवाई, जिसके फलस्वरुप आशिष और उसके पिता की गिरफ्तारी की गई और धोखाधड़ी के केस में दोनों तीन दिनों तक जेल में भी रहें। विवाह विच्छेद की जब बात सामने आई और अन्यत्र विवाह की बात कही गई तब संगीता ने हिंदु धर्म दर्शन का उल्लेख करते हुए कहा कि विवाह विच्छेद हिंदु धर्म में नहीं होता। जब समाधान नहीं सामने आया तब नव विवाहिता संगीता ने ही अपने ससुराल पक्ष को पुनः हिंदु धर्म स्वीकारने के लिए प्रेरित किया, और बहु को साथ रखने उसके संस्कार को अपनाने के लिए आशिष और उसके पिता ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ इस विचार को सांझा किया और अपने धर्म में पुनः लौट आए।

संगीता ने प्रण करवाया कि अब से कोई परिवार का सदस्य ईसाई मत को नहीं मानेगा और न ही चर्च जाएगा और किसी भी ईसाई प्रचारक को घर आने देगा। इस प्रण के साथ ससुराल पक्ष पुरा मान गया और घर वापसी कर हिंदु जीवन शैली को अपना लिया। ऐसी विरांगना जिसने अपने विचार का प्रचार प्रसार किया जिसने अपने स्वधर्म को नहीं छोड़ा उसे समास सम्मान तो दे ही साथ ही पुरुस्कृत भी करे ताकि अन्य बालिकाओं को भी संगीता से प्रेरणा प्राप्त हो औ वो भी अपने स्वधर्म के दर्शन को जागृत करे।