नवरात्रि में नवयुवको के बीच नशे का बढ़ता संचार- पुलिस अंजान बनकर होती जिम्मेदारी से परे।

रिंकेश बैरागी,

संपूर्ण देश में नवरात्र की अखण्ड साधना की जा रही है, आराधना और उल्लास के इस आनंददायी उत्सव में भक्त शक्ति की आराधना में परम पावन हो कर पराकाष्ठा को छु रहा है। युवा शरदीय नवरात्रि की हल्की ठंडक में गरबो की लय के वशीभूत होकर नृत्य का आनंद ले रहे हैं, परंतु युवा पीढ़ी का एक भाग इस उत्सव में आकर इसमें मिलने वाली छुट का गलत उपयोग कर रहा है। वो स्वयं को नशे के जंजाल में फंसा रहा है और नशे की गुमराह दुनिया में दौड़ रहा है। जिम्मेदार इसमें लपरवाह होकर अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ रहे हैं।

नवरात्रि की इन रातों में अधिकतर देखा गया है, युवा घर से तो गरबा रास के लिए पाण्डालों का कहते हुए माता-पिता से अनुमती लेते है और पाण्डालो में न पहुंचकर सुनसान राहों में या एकांत स्थान पर जाकर दोस्तों के साथ मादक पदार्थो का सेवन करते है। शुरुआती नशा जैसे तम्बाकू सेवन तो वे भीड़ से कूछ दूरी पर जा कर लेते हैं या बीड़ी सिगरेट के लिए पहचान वालों से अलग कहीं कोने में या अंधेरे में सेवन कर लेते हैं किंतु इससे अधिक ऊपर का नशा चाहे वह मदिरापान हो या फिर गांजा, अफीम, सफेद पावडर, ड्रग्स या फिर नशीली दवाओ का सेवन, जब युवा ऐसा कोई नशा करता है तो वह पाण्डालो में न पहुंचकर अनिर्धारित स्थानों पर छुपछुपा कर नशे में लिप्त होते है। शहर के अनेक स्थानों पर संचालित होते ढाबो पर बहुत ही सरलता से शराब मिल जाती है। अब ऐसे स्थानों पर पुलिस या आबकारी विभाग इसलिए कार्रवाही नहीं करता क्योंकि ढाबा संचालक टेबल के नीचे से प्रणाम करता है। ड्रग्स के नशे के लिए युवा ऐसे सुनसान स्थान का चयन करते है जहां पहुंचने के लिए गंदगी के होकर गुजरना होता है या फिर जहां कोई आता जाता न हो ऐसे स्थानों पर युवा नशीली दवा का भी सेवन करते है। खेल मैदान के पीछले नीचले हिस्सों में इंजेक्शन के माध्यम से नसो में नशा भरते हैं।

हर शहर का यहीं हाल है, युवा नशे में डुब कर कुछ पल के आनंद के लिए पूरा जीवन और जीवन से बनने वाले जीवन की जींदगी को खराब कर रहें हैं। पुलिस देख कर भी अनदेखा कर जाती है वह इन दिनों और रातों को अपनी ड्य़ुटी के सरोकार रखती है, पाण्डालों में होने वाले गरबा रास की ड्युटी कर के थक जाती है। माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों का अपडेट लेते रहें और आयोजनकर्ताओ की भी जवाबदारी है कि वो अगर ऐसे तत्वों को देखे तो तुरंत पुलिस को सूचित करे और उसे उसी समय सामाजिक रुप से भी उजागर करे।  

हालांकि, पुलिस की गलती तो है ही क्योंकि नशे में जब बच्चा अपने आप को धकेल रहा है तो उसके पीछे परिजन उसे क्यों नहीं रोक टोक कर रहे हैं। माता-पिता क्युं जानते हुए भी, चाहते हुए भी अपने बच्चें को नशे की गिरफ्त से दूर नहीं कर रहें। परिजन बच्चों को क्यों शिक्षा नहीं देते कि, नशा घातक है उसके दुष्परिणाम है और नशा शरीर के लिए हानिकारक है साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए नश्वर है।

बहरहाल पुलिस चाहे तो नवरात्र के अंतिम दौर में नशे में लिप्त युवाओं के माध्यम से नशे के व्यापारी तक पहुंच सकते है या फिर इन नशिले युवा को ट्रेस कर सामाजिक संगठनों के माध्यम से उनके घर परिवार में उनको उजागर कर सकते है। युवा नशे के शुरुआती समय में होगा तो माता-पिता की समझाईश और अच्छी संगत में आ कर नशे से दूर हो सकता है, और यदि युवा नशे में आगे जा चुका है तो उसे नशा मुक्ति केंद्र भेजा जा सकता है या सामाजिक रुप से उसे सुधारने के विकल्पों को खोजा जा सकता है। जिसकी जिम्मेदारी सामाजिक संगठनों को लेनी चाहिए उन्हें सिर्फ सुधारक भाषण देने, समाचार पत्रो में नाम सहित फोटो छपवाने के साथ मुख्य कार्यों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

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