चुटकीभर नशे के लिए अपराध की ओर युवाओ के कदम। बेखबर पुलिस घटना स्थल के करीब होकर भी अंजान।

झाबुआ शहर के बस स्टेण्ड पर चोरो की प्रजाति में बड़ोत्तरी हुई है, जानकारी के अनुरुप मजदूरी के लिए दूर प्रदेश में जाने वाले ग्रामीण मजदूर बस स्टेण्ड पर बस की प्रतिक्षा में घंटो बिताते है तो उनके सामान पर नशीले चोरो की नज़र होती है जब कभी थोड़ा बहुत ध्यान बिखरता है या व्यक्ति कुछ सामान लेने या सुविधाघर जाता है तब ये नशीले चोर धाबा बोलते है, अगर किसी ने देख लिए या पीछे से आवाज लगा दी तो चोर सामान छोड़ भाग जाते है। शातिर नशीले चोर यह भी देखते है कि समान के साथ कितने लोग है, चोरो द्वारा अधिकतर अकेली या वृद्ध महिलाओ को निशाना बनाया जाता है।

इन नशीले चोरो को पकड़ने के लिए पुलिस के पास कोई साधन नहीं है क्योंकि जब बस स्टेण्ड पर सहायता करने वाले ग्रामीणों को पुलिस के पास जाने की सलाह देते है तो ग्रामीण अपनी मजबूरी के कारण जा नही पाते और इसी कारण चोरो की चोरी करने की मंशा को ज्यादा ताकत मिलती है। ग्रामीणों को बस का इंतजार रहता है और मजदूरी पर जाने की जल्दी के कारण लगभग सभी चोर भाग जाते हैं। फिर सहायता करने वालों की भी सीमा होती है कि वे किस स्तर तक सहायता कर सकते है, क्योंकि वो अगर चोर पकड़ भी ले तो ग्रामीण तो बस में बैठ कर चला जाएगा और चोर सबूत के अभाव में छुट जाएगा। बस की सवारी की गिनती कर पैसो का हिसाब किताब रखने वाले बस के एजेंट भी ऐसे चोरो से परेशान होते है, वो भी बहुत बार ऐसी शिकायतों को लेकर आगे आए मगर कोई बात नहीं बन पाई। बस स्टेण्ड के ट्राफिक को सुधारने के लिए पुलिस विभाग की तरफ से एक जवान की ड्युटी लगाई जाती है जिसके भी पते ठीकाने नहीं रहते, पल में दूर कहीं दिखाई देता है वो जवान तो कभी आंखों से ओझल हो जाता है।

बस स्टेण्ड के अलावा ये चोर शहर अन्य स्थानों पर भी चोरी करते है जहां कहीं दुकान के आस पास कोई भंगार या बेचने के लायक कोई वस्तु मिल जाती है तो उसे चोरी कर लेते है और उसे बेचकर नशीली दवा या ड्रग्स खरीदकर स्वयं को नशे में बर्बाद कर लेते है। चोरी के साथ में ये युवा नशा पाने के लिए लड़ाई झगड़ा करके हमउम्र युवाओ से पैसा छीनते है, बीते कुछ वर्ष पहले सिद्धेश्वर कॉलोनी से पहले ऐसे ही कुछ नशीले युवाओ ने पैसो के लिए विवाद किया और उस झड़प में एक युवा की मौत हो गई थी। ऐसा और भी अनेक छोटे-छोटे झगड़े है जो गिनती में नहीं है क्योंकि वो गिनती के बाहर है।

पुलिस स्थानीय बस स्टेण्ड पर चौकसी के लिए एक पुलिसकर्मी की तैनाती कर दे तो बाहर जाते ग्रामीणों को चोरो से होती परेशानी से छुटकारा मिल जाए और पुलिस भी पता चले की कौन से युवा नशा प्राप्त करने के लिए छोटी-छोटी चोरियों को अंजाम देते है। साथ ही ये भी पता चल जाए की कितने सटोरिये अपनी जेब लालच में आकर खईवाल को दे देते हैं।

हालांकि, मध्य प्रदेश का प्रत्येक जिला सफेद नशे के काले अंधकार में लिप्त होता जा रहा है, यहां तक कि, जनजाति क्षेत्र में भी ये नशा प्रभावी है, जनजाति क्षेत्र के ग्रामीण शराब के नशे में तो शुरु से अपना जीवन व्यर्थ कर रहे है मगर अब ड्रग्स और अन्य नशीली दवाओ का भी उपयोग होने लगा है। शहरी क्षेत्र में जिस गति से नशीली दवाओ और ड्रग्स ने अपनी पैठ जमाई है उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, 14 वर्ष से 25 वर्ष आयु के युवा स्वयं को नशे में धुर्त कर रहे है। जानकार लोगों की माने तो ऐसा कोई समाज ही नहीं बचा होगा जिसका युवक नशीली दवाओ या ड्रग्स की चपेट में न हो। सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकु, या बाजार में मिलने वाले तम्बाकु पान मसाला, इनका सेवन तो छोटे छोटे बच्चें तक कर रहे हैं।

बहरहाल, झाबुआ में एक नशा बाहर से शहर के भीतर घुस रहा है तो एक नशा पुलिस और आबकारी की चौकसी होते हुए भी जिले से बाहर गुजरात में बैखौफ जा रहा है। नशे में युवा अपना और आने वाली पीढ़ियों को भाविष्य को गर्त में डाल रहा है इस बात से वह स्वयं भी बेखबर है क्योंकि वह तो नशे में बेहोश है उसके लिए नशा ही सबकुछ है। लेकिन सामाजिक संगठन जो हर अवसर पर दिखावे के फोटो खिंचवाकर समाचार पत्रों की सुर्खिया बटोरने की कोशिश में लगे रहते है यदी वे इस मुद्दे पर विशेष रुप से ध्यान दे और इसे एक सामाजिक आंदोलन बनाए तो अवश्य ही इसमें पुलिस और स्थानीय प्रशासन सहयोग करेगे। वहीं पुलिस की चौकसी स्थानीय बस स्टेण्ड पर अवश्य होनी चाहीए।

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