कुटिलता की राजनीति बनीं राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल की दुर्दशा का कारण “

     कुटिलता, आरोप प्रत्यारोप, फरेब, झूठे वादे और रेवड़ी बांट का प्रयोग राजनीति की पुरानी परिपाटी है। क्योंकि जनता की गाढ़ी कमाई  सफेद झूठ के साथ मतदाता को काठ का उल्लू समझ कर रेवड़ी की तरह बांटने नेताओं का क्या जाता  !!     
      अक्सर अपने विरोधियों को हराने और अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कुटिलता का सहारा लेते हैं। लेकिन यह तरीका वास्तव में हमेशा सफल नहीं होता, यह दिल्ली के विधानसभा चुनाव से साबित हो गया है । क्या कुटिलता की राजनीति वास्तव में जीत की ओर ले जाती है या फिर ओंधे मुंह गिरा कर हार का मजा चखाती है ? बहुजन समाज पार्टी, समाज वादी पार्टी, जनता दल सेक्युलर, टीडीपी और कांग्रेस द्वारा बिना सिर पैर की कुटिलता से यह सिद्ध हो गया है कि प्रजातंत्र के नभ को  निर्मल रखने में ही जनता का , जनता के लिए , जनता द्वारा शासन की सार्थकता निहित है !!
 उदहारण के तौर पर दिल्ली चुनाव परिणामों को सामने रखकर यह कहा जा सकता है कि कुटिलता की राजनीति और आरोप- प्रत्यारोप की रणनीति बड़बोले 

राहुल, अखिलेश, अरविंद, मायावती और तेजस्वी जैसे नेताओं के कारण कुनबे के लिए हानिकारक साबित होती है। जनता सब जानती है कि पिछले दो-तीन दशकों से राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मायावती और लालू यादव किस तरह परिवारवाद को बढ़ावा देने की राजनीति कुटिलता पूर्वक जातिवादी और तुष्टिकरण की बल्लेबाजी कर रहे हैं । थोथा चना, शोर धना के चलते आम जनता में विश्वसनीयता तो कम हुई ही ,उनके समर्थक हताश-निराश के शिकार हो कर दूर चले गए !!
अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक जन्म अन्ना हजारे के सूचना का अधिकार आन्दोलन से होता है और देखते ही देखते दिल्ली की जनता द्वारा कांग्रेस और भाजपा के विकल्प के रूप में मुख्य मंत्री का ताज पहना दिया जाता है। कुछ समय तो केजरीवाल केंचुली में रहा और राज काज ठीक-ठाक चला । लेकिन बाद में उनके अंदर का लोभी, फरेबी , जनता को बेवकूफ बना कर राज करो वाला अरविंद जागृत हो गया और जनता की सेवा करने की बजाय कभी केंद्र सरकार , कभी मोदी तो कभी उपराज्यपाल पर नाकामयाबी का ठीकरा फोड़ने लग गए। दूसरे कार्यकाल में एक के बाद एक आम आदमी सरकार के मंत्री जेल जाने लगे और आखरी में वह भी शराब घोटाला में लिप्त पाए गए और तिहाड़ जेल की हवा खानी पड़ी !!
राहुल और केजरीवाल ने जो शीशमहल की ढ्यडी पर माथा टेकने वाली कुटिलता की ढ़ाई चाल इनको ले डूबी। पहले गुस्ताखी यह की कि दो माह तक अपनी खड़ाऊ से सरकार चलाई और बाद में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया। चुनाव प्रचार के दौरान जनता ने देखा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को पीछे रखा। दिल्ली की जनता को यह समझने में देर नहीं लगी की एक महिला मुख्यमंत्री को उन्होंने बिल्कुल भी तवज्जों नहीं दी। जबकि होना तो यह चाहिए था कि जेल जाने के पहले ही वह अपनी पार्टी के किसी विश्वसनीय को कुर्सी सौंप कर सुचिता का परिचय देते। ऐसा नहीं हुआ और दिल्ली की जनता ने उन्हें हांसिए पर ला दिया !!
इसी तरह की कुटिलता राहुल गांधी जब अध्यक्ष थे, तब से करते आ रहे हैं। उन्होंने कभी भी नहीं सोचा कि आखिर मेरी पार्टी की दुर्दशा क्यों हो रही है ? ऐसा विचार करने की जद्दोजहद उनकी माताजी और बहन ने भी नहीं की? गांधी परिवार ने वर्तमान अध्यक्ष खड़गे जी को हमेशा पीछा रखा। कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते पार्टी के अंदर और बाहर उन्हें जो इज्जत, शोहरत और रुतबा मिलना चाहिए था वह नहीं दिया ? देश के साथ-साथ दिल्ली के अनुसूचित जाति मतदाताओं ने इसे भांप लिया की माजरा कुछ ओर है। हाथी के दांत खानें के कुछ ओर और दिखाने के कुछ ओर ही हैं । यही कारण है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की इतनी बुरी दुर्गति हुई !! विपक्ष पार्टियों के प्रवक्ताओं ने आकाओं के तलवे चाटने में हद कर दी और आकाओं की कुचाल अपने को चौकड़ी भरना बेहतर समझा !!

राहुल और अरविंद हुतु तुतु का खेल खेलते रहे और कटाक्ष करते रहे । अल्पसंख्यकों की रक्षा करने का वादा किया था, लेकिन जब दंगा हुआ तब वे उनके साथ नहीं थे । इस दोगली नीति को मुसलमान ने भी भांप लिया और सत्ता सुख भोगने के सपनों को टांय-टांय फिश कर दिया !!
सबसे बड़ा धोखा उन्होंने यमुना को साफ न करके और कूड़े कचरे के पहाड़ को लेकर न तो कुछ किया न ही कुछ बोले। राहुल गांधी , प्रियंका वाड्रा ने राजस्थान , छत्तीसगढ़ और हिमाचल, कर्नाटक में फर्जी आंकड़े और झूठे दावे का खेला खेलते रहे। जनता को बरगलाते रहे और जो कहा वह नहीं किया !!
जिस तरह उद्धव ठाकरे की कांग्रेस और एनसीपी के साथ अप्रत्याशित गठबंधन सरकार ने महाराष्ट्र में तथा केजरीवाल ने दिल्ली में पूर्वांचलियों के प्रति उपेक्षित भाव और भावना रखी। उन्हें पहचान पत्र और सरकारी योजना से वंचित करने का प्रयास किया गया। दिल्ली को सड़क , पानी और सफाई का दर्द 10 साल से दूर नहीं हुआ? शाहीन बाग कांड से प्रेम एवं अयोध्या में श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा और प्रयागराज महाकुंभ से कांग्रेस ,आम आदमी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल सेक्युलर, वामपंथी एवं समाजवादी पार्टी ने मिलकर कृत्रिम आस्था का घिनौना खेल खेला , यह उसी थप्पड़ की गहरी चोट है जो अगले कई चुनाव तक इन्हें कराहने को मजबुर करती रहेगी !!
कथा कथित सेकुलर का दम भरने वाले राजनीतिक दलों के आका प्रयागराज महाकुंभ में आस्था का दिव्य दर्शन करें और कुटिलता से राजनीति करने पर बजना चाहिए!!
डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’
स्वतंत्र स्तंभकार तथा सदस्य विद्या भारती मध्य क्षेत्र एवं मध्यप्रदेश पाठ्य पुस्तक निर्माण एवं देखरेख समिति के स्थाई सदस्य हैं।

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