कबीर वाणी में सृष्टि सृजन”
✍️ डॉ बालाराम परमार ‘हॅंसमुख’
जुलाई 2024 को चेन्नई से कतर की राजधानी दोहा के लिए उड़ान भरी। यह मेरी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान थी। हिंद महासागर पर उड़ान के बाद हजारों किलोमीटर लंबा सऊदी अरब के साथ कतर की सीमा के ठीक उत्तर में एक अलौकिक परिदृश्य देखने को मिला । खोर अल अदैद, या अंतर्देशीय सागर , दुनिया के उन बहुत कम स्थानों में से एक है जहाँ विशाल रेगिस्तानी रेत के टीले चमकते समुद्र को छूते हैं।
इसके पहले 1992 से चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर और बाद में कोलकोता से सिलचर, अहमदाबाद से मुम्बई, दिल्ली से गोवा, जम्मू से देहरादून, इन्दौर से हैदराबाद अंतर्देशीय भागों में हवाई जहाज में यात्रा करता रहा हूं।
आकाश से पृथ्वी पर सुंदर नजारे देखकर बार बार सोचता रहा हूं कि आखिर सृष्टि की रचना कैसे हुई होगी?
जब अंतरराष्ट्रीय उड़ान में 24 घंटे आकाश में रहने के बाद एशिया, युरोप, अफ्रीका की आकाशीय यात्रा के बाद उत्तरी अमेरिका महाद्वीप पहुंचा और यहां के 11 राज्य के प्राकृतिक नजारे को प्रत्यक्ष रूप में देखने का अवसर मिला। विश्व प्रसिद्ध वर्जिनिया स्थिति लूरै की प्राकृतिक गुफा, बफेलो प्रांत में स्थित दुनिया का सबसे बड़ा नियाग्रा जलप्रपात , उटाह प्रांत में स्थित आर्च नेशनल पार्क में हिम युग के बाद बाह्यम शक्ति के अपरदन, परिवहन और जमाव कार्य से निर्मित विशाल स्थलाकृतियों और संरचनाओं को देख कर आंखे फटी की फटी रह गई।
चुंकि कबीर साहब की वाणी का अध्ययन अध्यापन करता रहा हूं। एकाएक याद आया की कबीर ने इस दुनिया और सृष्टि को अपनी दिव्य दार्शनिक ज्योति से देखा परखा और दोहे के रूप में वाणी दी । यहां कबीर साहब को समर्पित पत्रिका के सुधी पाठकों को भी अवगत कराया जाना सौभाग्य मानता हूं।
“बिन कारण के कुछ नहीं होत,
ब्रह्मा विष्णु रूद्र से सृष्टि होत।”
इस दोहे में कबीर साहब ने दो महत्वपूर्ण बातें कही हैं।
पहली, कि हर चीज़ के पीछे एक कारण होता है, और दूसरी, कि सृष्टि की उत्पत्ति त्रिमूर्ति से हुई है। यह दोहा हमें यह समझने में मदद करता है कि सृष्टि में कोई भी घटना या चीज़ बिना कारण के नहीं होती, और सृष्टि की उत्पत्ति एक उच्च शक्ति से हुई है।
“पहिले अका उच्चल पुरुख के रूप, तब कुछ नहीं था ना कोई भूप। तब से ही सृष्टि का आरंभ हुआ, जगत का रचा गया रूप।”
इस दोहे में कबीर साहब यह कह रहे हैं कि शुरुआत में केवल एक परमात्मा (अका) का रूप था, जो सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान है। उस समय न तो कोई सृष्टि थी, न ही कोई जीव-जंतु, न ही कोई भूमि (भूप) थी। इस दोहे में कबीर साहब ने परमात्मा की एकता और सर्वोच्चता को दर्शाया है, और यह भी कहा है कि सृष्टि की उत्पत्ति परमात्मा से ही हुई है। यह दोहा हमें यह समझने में मदद करता है कि परमात्मा ही सृष्टि का मूल और सर्वोच्च शक्ति है।
कबीर साहब धरती पर धरती के ऊपर और धरती के नीचे के समस्त क्रियाकलाप को परमात्मा की सत्ता सत्ता निरूपित करते हैं।
“एक राम ही सृष्टि का आधार,
उससे ही सब कुछ प्रकाशार।
वही है जो सृष्टि को बनाता,
वही है जो सृष्टि को मिटाता।”
इस दोहे में, कबीर साहब यह कह रहे हैं कि भगवान राम (परमात्मा) ही सृष्टि का आधार और मूल है। परमात्मा से ही सृष्टि की सभी चीजें प्रकाशित होती हैं और उनकी शक्ति से ही सृष्टि की सभी चीजें चलती हैं।
परमात्मा ही सृष्टि को बनाता है और सृष्टि को विकसित करता है।
परमात्मा ही सृष्टि को मिटाता है और सृष्टि को समाप्त करता है।
इस दोहे में, कबीर साहब ने परमात्मा की सर्वोच्चता और सर्वशक्तिमान को दर्शाया है, और यह भी कहा है कि परमात्मा ही सृष्टि का मूल और सर्वोच्च शक्ति है। यह दोहा हमें यह समझने में मदद करता है कि परमात्मा ही सृष्टि का नियंता और संचालक है।
16वीं शताब्दी के महान समाज सुधारक और युग दृष्टा कबीर साहब सृष्टि का उद्देश्य निरूपित करते हुए कहते है :
“सृष्टि का उद्देश्य प्रेम है,
प्रेम से ही सब कुछ सुख है।
वही है जो सृष्टि को बनाता,
वही है जो सृष्टि को मिटाता।”
इस दोहे में, कबीर साहब यह कह रहे हैं कि: सृष्टि का मुख्य उद्देश्य प्रेम है, जो सभी जीवों को जोड़ता है। प्रेम से ही सृष्टि में सभी चीजें सुखी और समृद्ध होती हैं।
परमात्मा ही सृष्टि को बनाता है और सृष्टि को विकसित करता है।
परमात्मा ही सृष्टि को मिटाता है और सृष्टि को समाप्त करता है।
इस दोहे में, कबीर साहब ने प्रेम को सृष्टि का मूल और परमात्मा को सृष्टि का नियंता बताया है। यह दोहा हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रेम ही सृष्टि की मूल भावना है।
“सृष्टि अनंत है, अनंत ही रहेगी,
कोई नहीं जानता इसका अंत।
ना कोई इसका आदि जानता,
ना कोई इसका अंत जानता।”
इस दोहे में, कबीर साहब ने सृष्टि की विशालता और अनंतता को दर्शाया है, और यह भी कहा है कि सृष्टि का आदि और अंत कोई नहीं जानता। यह दोहा हमें यह समझने में मदद करता है कि सृष्टि का विस्तार और गति अनंत है, और इसका आदि और अंत केवल परमात्मा की ज्ञान में है।
इस तरह उपरोक्त दोहों से पता चलता है कि कबीर वाणी में सृष्टि आरंभ और अंत के बारे में गहरे विचार प्रस्तुत किए गए हैं।