आखिर कब तक होगी अतिथि विद्वानों के भविष्य की उपेक्षा।
अधूरें भविष्य में ही 55 से 59 साल की उम्र हो गई ‘
मध्य प्रदेश के शासकीय अतिथि विद्वान पिछले 25 सालों से सरकार की उपेक्षा का शिकार हो रहे है। अब उच्च शिक्षा विभाग अगर इनकी जगह नव चयनित सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति करता है तो एक बार फिर पिछली कमलनाथ सरकार में हुए फॉलेन आउट की बाढ़ जैसे हालात हो जाएंगे। क्योंकि सन 2019 में हुई सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति से लगभग तीन हजार अतिथि विद्वान फॉलेन आउट हो गए थे। तब बीजेपी के नेता इनके हितेषी बनकर आए दिन भोपाल में इनके आंदोलन स्थल पर दस्तक देकर इन्हें नियमित करवाने की बात कहते थे।

फिर शिवराज सरकार ने भोपाल में इनकी पंचायत करवाकर इन्हें उच्च शिक्षा विभाग का सबसे मजबूत अंग बताया था। उस समय वर्तमान सीएम डॉ. मोहन यादव उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री थे। वहीं पंचायत की घोषणाओं को नजरंदाज करते हुए विगत महीनों में सहायक प्राध्यापकों के ट्रांसफर से इन्हें फॉलेन आउट करने का काम किया गया। वास्तव में बीजेपी सरकार ने वादा करने के बाद भी इनका रोजगार छीन लिया। सन 2002 से आरंभ इस व्यवस्था ने इन उच्च शिक्षितों में अनेकों को 55 से 59 साल की उम्र में पहुंचा दिया। नेट, सेट, पीएचडी जैसी अनिवार्य योग्यता अब इनके लिए एकमात्र कागज़ का टुकड़ा साबित होती दिखाई दे रही है।
मध्य प्रदेश अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया का इस बारें में कहना है कि मध्य प्रदेश के शासकीय अतिथि विद्वानों का भविष्य सरकार की अनदेखी से चौपट हो गया है। हमारे 50 से अधिक साथी अनिश्चित भविष्य में ही मर चुकें हैं। अब मोहन सरकार भी हमारी परवाह नहीं कर रही है। ऐसी स्थिति में हम उच्च शिक्षितों का क्या होगा।

संघर्ष मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी मोर्चा दर्द जाहिर करते हुए बताया है कि एमपी में जितनी उपेक्षा अतिथि विद्वानों की हुई है, उतनी देश के किसी भी अन्य राज्य में नहीं हुई होगी। कितने ही राज्यों में वहां की सरकार ने उच्च शिक्षितों के लिए कैबिनेट से भविष्य सुरक्षा का समाधान निकाल दिया। मगर एमपी में 11 सितंबर 2023 की पंचायत भी एक छलावा मात्र ही लग रही है।