अतिथि विद्वानों का भविष्य केवल एक वादा
अतिथि विद्वानों का भविष्य केवल एक वादा बनकर रह गया :-
‘ रोजगार छीनने का डर बना हुआ है पीएससी की नियुक्ति से ‘
‘ सन 2002 से उच्च शिक्षा विभाग में जारी है अतिथि विद्वान व्यवस्था ‘सरकार के तमाम वादों, आश्वासनों और पंचायत में की गई घोषणाओं के बाद भी सरकारी महाविद्यालयों में कार्यरत 4800 से अधिक अतिथि विद्वानों का भविष्य केवल एक वादा बनकर रह गया है। इनको अब भी 2000 रूपए प्रति दिवस पर मानदेय मिलता है। पूर्व कमलनाथ सरकार में इन्होंने 4 माह तक भोपाल के शाहजहांनी पार्क में अपने नियमितीकरण के लिए घोषणा – पत्र के अनुसार आंदोलन किया था। उस समय वर्तमान बीजेपी सरकार इनको नियमित करवाने के लिए आतुर थी। पिछली शिवराज सरकार में तो अतिथि विद्वान पंचायत तक करवा दी गई। जिससे कुछ दिखावटी लाभ जरूर मिलें, मगर बगैर भविष्य सुरक्षा के उनसे क्या विशेष फायदा होगा। सोचनीय बात है।
पीएससी की नियुक्ति से बना हुआ है रोजगार छीनने का डर : सहायक प्राध्यापक भर्ती 2022 की नियुक्ति प्रक्रिया से इनका रोजगार खतरें में दिखाई दे रहा है। भले ही उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने विधानसभा में इनकी जगह नियमित नियुक्ति नहीं करने की बात कही हो। लेकिन रसूखदारों के प्रभाव के आगे अतिथि विद्वानों का ध्यान कहां रखा जाता है।
सन 2002 से जारी है उच्च शिक्षा विभाग में अतिथि विद्वान व्यवस्था :प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में सन 2002 से अतिथि विद्वान व्यवस्था जारी है। ऐसी व्यवस्था में अनेकों बीजेपी शासित राज्यों ने सुधार करके उच्च शिक्षितों का भविष्य उज्जवल कर दिया है। लेकिन मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षित युवा से बूढ़े हो चले हैं, फिर भी सरकार को इन पर दया नहीं आई है।मध्य प्रदेश अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रदेश संयोजक डॉ. सुरजीत सिंह भदौरिया ने इस संबंध में कहा कि मोहन सरकार अतिथि विद्वान को भविष्य सुरक्षा के साथ फिक्स वेतन दें और हमारी जगह नियमित नियुक्ति नहीं हो।
अतिथि विद्वान पंचायत में किए गए वादें जैसे – फॉलेन आउट नहीं करना, शासकीय सेवकों के समान लाभ आदि का भी ध्यान रखा जाए।संघर्ष मोर्चा के प्रदेश मीडिया प्रभारी शंकरलाल खरवाडिया ने भी इस बारें में बताया है कि हमने इतने वर्षों में अध्यापन द्वारा लाखों बच्चों का भविष्य उज्जवल किया है। लेकिन सरकार की अनदेखी ने हमारा और हमारे परिवार का भविष्य अब तक उज्जवल नहीं किया है। 50 साल की उम्र में अतिथि विद्वान कैसे नवीन युवा से सहायक प्राध्यापक भर्ती में मुकाबला कर पाएगा। अतः हमारे लिए मोहन सरकार को ठोस नीति बनाना चाहिए।