समस्या घुसपैठ की, भारतीय समाज पर संकट।
रिंकेश बैरागी,
भारत-बांग्लादेश की सीमा दुनिया की पांचवी सबसे लंबी सीमा है, यब सीमा 4096 किलोमीटर लंबी है, इस सीमा में घने जंगल, पहाड़, नदियां है, और यहीं से लाखों की संख्या में घुसपैठिये प्रतिवर्ष भारत की सीमा में प्रवेश करते है, चिंताजनक बात यह है कि वर्तमान में तीन से पांच करोड़ घुसपैठिये भारत देश में अवैधरुप से निवासरत है। बाग्लादेशी और रोहिग्या घुसपैठिये देश की संप्रभुता के लिए खतरा है, इन घुसपैठियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था, राजनीति, कानून व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था एक बहुत बड़े संकट के घेरे में है, वहीं बीते कुछ समय से रोहिग्या घुसपैठियों ने इस समस्या से उपजे संकट को और भी अधिक गंभीर रुप दे दिया है।
सन् 1972 से 1997 के मध्य वैध दस्तावेजो के साथ 9,91,031 बाग्लादेशी भारत आए किंतु वे वापस नहीं लौटे, वहीं वर्ष 2023 में करीब 16 लाख बांग्लादेशी वीजा लेकर भारत आए लेकिन इनमें से वापस कितने गए इसका कोई रिकार्ड नहीं है। बहुत बड़ी संख्या है जो अपने पासपॉट को छुपाकर भारत में ही रहने लगे। बढ़ते बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या के समाधान के तौर पर भारत में अवैध तरिके से निवासकर रहे बांग्लादेशियों को बाहर निकालने के लिए 1991 में तत्कालिन सरकार ने आपरेशन पुशबैक तैयार किया। 1992 में दिल्ली की झुग्गीयों से 132 बांग्लादेशी नागरिको को डिपोर्ट किया गया, उस समय बांग्लादेश ने भारत सरकार के इस कदम को एकपक्षिय, अवैध और दुर्भाग्यपूर्ण बताया, और उसी समय बंगाल के मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी की वे अप्रवासियों को बाहर नहीं करेगे। भारत सरकार पर घरेलु और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण नवंबर 1992 में ही आपरेशन पुशबैक को निलंबीत करना पड़ा।
देश की संप्रभूता के लिए संकट घुसपैठ को बढ़ावा दे रहे सिंडिकेट के उन्मुलन और घुसपैठ रोकने के उपाय देश में हो रही गंदी राजनीति के भेट चढ़ गए। सीमा के इस पार और उस पार यहां तक कि, सीमा के अंदर भी तस्करो का नेटवर्क शक्ति के साथ काम कर रहा है। भारत-बांग्लादेश बार्डर पर तस्करो ने अपने-अपने इलाके बांट लिए है। ये तस्कर बांग्लादेशी नागरिको से घुसपैठ कराने के प्रति व्यक्ति तीन हजार से पांच हजार बांग्लादेशी टका, लेते है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि, यह रकम इकठ्ठा होकर सीमा सुरक्षा बलो और दलालो के बीच बंट जाती है। जानकारी के अनुसार दलालो की जुबानी सीमा सुरक्षा बल के उच्च अधिकारी के ट्रांसफर और पोस्टींग का सीधा प्रभाव घुसपैठ पर होता है। यह विचारणिय बात है कि सीमा पर कड़ी सुरक्षा के बाद भी घुसपैठिये भारतीय सीमा पार कर भारत देश में आसानी से प्रवेश कर जाते है।
ऐसा नहीं है कि, घुसपैठ का यह रोग ताजा है, सीमा शुरु से ही घुसपैठ से संक्रमित है, 4096 किलोमीटर लंबी बार्डर जहां पहाड़, जंगल, नदिया हो वहां से बांग्लादेशी घुसपैठियों का आना गंभीर समस्या तो है ही यह हमारी सुरक्षा के लिए भी घातक है, इससे हमारी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था प्रभावशील होकर दुष्प्रचारित होती है। 2003-04 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की 25 लोकसभा सीटें और 120 विधानसभा सीटों को बांग्लादेशी घुसपैठिये प्रभावित करते है। 2003 तक दिल्ली में 6 लाख बांग्लादेशी घुसपैठियों ने भारतीय पहचान पत्र बनवा लिए थे। अनुमान है कि, देश के अन्य राज्यों में भी इनकी स्थिति इसी तरह गंभीर बनी हुई है क्योंकि, पूरे देश में बांग्लादेशी घुसपैठिये तीन से पांच करोड़ हो चुके है, जिसमें से बहुत से अनैतिक, गैरकानूनी और अवैध गतिविधियों में सम्मिलित होकर सक्रिय रहते है।
सन 2002 में जब कोलकाता से बहुत से आइएसआइ एजेंटो की गिरफ्तारी हुई थी वे सभी बांग्लादेश सीमा पार करते हुए भारत आए थे। तब भारत के तत्कालिन विदेश मंत्री यशवंत सिंहा ने संसद में कहा था कि, ढाका में पाकिस्तानी हाई कमिशन आइएसआइ का नर्व सेंटर है जो भारत के विरुद्ध आंतकी गतिविधियों में लिप्त है। अक्तूबर 2002 में बीएसएफ ने बांग्लादेश बार्डर गार्डस को बांग्लादेश में चल रहें, 99 आंतकी ट्रेनींग केंप की लिस्ट सौंपी थी। 2002 में बांग्लादेश में अल कायदा रोहिग्या और कट्टरपंथी ताकतो के नेक्सस की रिपोर्ट भी मिली थी। अल कायदा के 150 आतंकवादियों ने बांग्लादेश में शरण ली थी जिसे बांग्लादेश प्रशासन और सेना का समर्थन प्राप्त था। 2001 में कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी जैसे दलो के सहयोग से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) सत्ता में आई तो भारत में घुसपैठ की गति तेज होती चली गई, जिसके कारण आंतकवादी गतिविधियां और भी बढ़ गई।
सन् 2000 में भारत के गृह सचिव माधव गोडबोले ने भारत सरकार को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बताया कि 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत में अवैधरुप से रह रहे हैं, उसी रिपोर्ट में यह भी था कि, प्रतिवर्ष भारत में 3 लाख से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिये घुस रहे हैं। बिचौलिए पहले से ही उनका परिचय पत्र फर्जी तरिके बनवा लेते है।
हालांकि, 1974 में भारत-बांग्लादेश बार्डर गाइडलाइंस बनी थी, तब बाग्लादेश में माहौल अलग था और उस समय भारत को अंदाजा भा नहीं था कि, बांग्लादेश भारत के खिलाफ इस तरह षड़यंत्र रचेगा और घुसपैठियों को भेजकर भारत की अखण्डता को भंग करने के प्रयास प्रबल करेगा।
बहरहाल देश की सुरक्षा के लिए आइडेंटिफिकेशन ड्राइव चलाने की आवश्यकता है, सभी राज्य सरकारों, विशेषरुप से सीमा से सटे राज्यों की पुलिस और जिला प्रशासन को घुसपैठियो को पकड़ने और इनके फर्जी पमाणपत्र बनाने वालों पर सख्त कार्रवाही करनी चाहिए। भारत सरकार को एक्शन लेकर बार्डर गाइडलाइंस की समीक्षा करनी चाहिए।