मानव के हाथ में मोबाइल या मोबाइल के हाथ में मानव ?

डाॅ बालाराम परमार ‘हँसमुख’

     ‌ आधुनिक काल में मोबाइल फोन मानव के दैनिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। एक और जहां यह मानव को दुनिया भर की जानकारीयो से अवगत कराता है, वही दूसरी और प्रियजनों से जोड़कर रखता है।

जितना यह सत्य है कि मोबाइल ने मानव के दैनिक जीवन को आसान बनाया है, उतना ही कड़ुआ सत्य यह भी है कि यह यंत्र बड़ी ही चालाकी से मानव को गुलाम बना रहा है।

      इसकी संचार खुबियों के कारण यह मानव  जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया और मानव जीवन को 'चूल्हे से लेकर चक्की तक'  प्रभावित कर डाला है । रोजमर्रा के जीवन में इसके अत्यधिक उपयोग करते हुए लोग इतने अंधे होते जा रहे हैं कि इसके नकारात्मक पहलुओं की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है !!


    मोबाइल फोन की कहानी 1970 के दशक में शुरू होती है, जब पहली बार वायरलेस संचार प्रणाली की कल्पना  मार्टिन कूपर नामक एक अमेरिकी इंजीनियर ने मोटोरोला कंपनी में काम करते हुए पहला मोबाइल फोन 1.1 किलोग्राम  वजनी  से 3 अप्रैल 1973 को पहली बार बातचीत की थी।


  भारत में 1990 के दशक में, पहली बार टैक्स्ट मैसेजिंग (एसएमएस) की सुविधा शुरू हुई थी। लैंडलाइन युग को सेलफोन युग से जोड़ने वाला पेजर 90 के दशक में भारत के प्रौद्योगिकी रडार पर छोटी सी झलक के रूप में सामने आया जिसने बॉलीवुड में खूब धमाल मचाया।   कालांतर में मोबाइल फोन की कीमतें बहुत ही कम होने लगीं और लोगों के लिए यह एक आवश्यक वस्तु बन गया। 

आजकल, क्या गरीब! क्या अमीर!! पैसा उधार लेकर मोबाइल फोन खरीदते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि मोबाइल फोन सर्वसुलभ एक ऐसी वस्तु है जो लगभग हर किसी के पास है।

       जहां यह एक ओर वरदान साबित हो रहा है, वहीं अभिशाप भी बनता जा रहा है। अभिशाप के रूप में मोबाइल की शैतानियों की दास्तां थमने का नाम नहीं ले रही है। मोबाइल फोन ने मानव जीवन को बर्बाद करने का एक नया तरीका ईजाद कर लिया है। लोग घंटों मोबाइल पर समय बिताते हैं, जिससे  काम, अध्ययन और परिवार के साथ समय बिताने का समय ही नहीं मिलता है।

मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन से हमारे मस्तिष्क और शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ने लगा है।
मोबाइल फोन ने देखते ही देखते करीब दो दशक में ही मानव को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया है। सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याएं घर घर उत्पन्न हो रही हैं। बच्चों और युवाओं में वीडियो गेम्स और सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से एकाग्रता और अध्ययन क्षमता और नींद की गुणवत्ता कम होती जा रही है।

व्यसन की आदत विकसित होने के फलस्वरूप आर्थिक समस्याएं फन फैलाने में कामयाब हो रही है और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

मोबाइल की बुराइयों का विश्लेषण करते हुए आरएसएस के सर संघचालक डॉ मोहन भागवत को भी चैतावनी भरे लफ़्ज़ों में समाज से आवाहन करना पड़ा कि अब वक्त आ गया है के भारत के लोग मोबाइल का विवेकपूर्ण उपयोग करें। घर के मुखिया को चाहिए कि घर पर 24 घंटे में कुछ घंटे मोबाइल फ्री जोन बनाएं,जहां पर मोबाइल का उपयोग वर्जित  किया जा सकता है। जैसे कि रात खाने के समय मोबाइल का उपयोग नहीं करना। मोबाइल के विकल्प के रूप में किताबें पढ़ना, खेल खेलना शुरू किया जाना चाहिए। मोबाइल के नुकसानों के बारे में जागरूक रहें और अपने परिवार को भी जागरूक करें।


आजकल, मोबाइल फोन हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है, इसमें कोई दो राय नहीं है। यह हमें दुनिया भर के लोगों से जोड़ने, जानकारी प्राप्त करने और अपने दैनिक कार्यों को पूरा करने में मदद करता है। लेकिन, इसके साथ ही, हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि मोबाइल का उपयोग हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। सरसंघचालक के आव्हान को मार्गदर्शन मान कर मोबाइल का विवेक पूर्ण उपयोग करने की कला अपने दैनिक जीवन में सीखें और दुसरो को भी सिखाएं।

आइए हम मोबाइल का विवेकपूर्ण उपयोग करें और अपने जीवन को बेहतर बनाएं। मोबाइल को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं, लेकिन इसका गुलाम न बनें। अपनी दैनिक दिनचर्या में मोबाइल का उपयोग को संतुलित बनाएं और मोबाइल का उपयोग इस तरह से करें कि यह हमारे लिए एक वरदान बने।

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